Lok Sabha Elections 2024: सिंदरी(धनबाद), अजय उपाध्याय-लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर जहां प्रत्याशियों में जोर-आजमाइश तेज है, वहीं धनबाद की सिंदरी बस्ती के लोगों में चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं दिख रहा है. ग्रामीणों ने सामूहिक बैठक कर अपनी पीड़ा व्यक्त की. उन्होंने कहा कि ये बस्ती विकास से कोसों दूर है. लोग गुमनामी का दंश झेल रहे हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को वे अपना दु:ख बता चुके हैं. इसके बाद भी उस बस्ती के लोगों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया. वे आजाद देश के उपेक्षित नागरिक हैं.
गुमनामी की जिंदगी जीने पर मजबूर
सिंदरी बस्ती के भोलानाथ रजवार ने कहा कि पिछले 50 वर्षों से वे गुमनामी की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं. एफसीआई सिंदरी को वर्ष 1946 में उनके पूर्वज अपनी जमीन दे चुके हैं. उनके वंशजों को आज तक विस्थापित का दर्जा नहीं मिला है. इसके कारण आवासीय, जाति और अन्य प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं. सरकारी सुविधाओं से सिंदरी बस्तीवासी वंचित हैं. इस पर अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति को 9 अक्टूबर 2017 को पत्र भेजा गया था. उन्होंने इस पर कार्रवाई के लिए झारखंड के मुख्य सचिव को निर्देश दिया था, परंतु आज तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
77 साल बाद भी विस्थापितों को नहीं मिला मुआवजा
लोकसभा चुनाव 2024 की सरगर्मी के बीच सिंदरी बस्ती के भक्तिपद पाल कहते हैं कि इसी बस्ती में सिंदरी विधानसभा के तीन बूथ हैं और 7 टोलों के 3400 मतदाता अपने मतों का प्रयोग करते हैं, परंतु देश को हमारी जरूरत सिर्फ चुनाव के समय महसूस होती है. उन्होंने कहा कि आजादी के सात दशक और भूमि अधिग्रहण के 77 वर्ष बाद भी विस्थापितों को कोई मुआवजा नहीं मिला है. आजाद देश के उपेक्षित नागरिकों में हम सभी शामिल हैं. उन्होंने प्रबंधन और प्रशासन से मांग की है कि मौलिक अधिकारों और मूलभूत सुविधाओं से सिंदरी बस्ती वालों को महरूम नहीं रखा जाए.
रैयत या विस्थापित स्पष्ट करे प्रशासन
सिंदरी बस्ती के मेघनाथ गोराई ने बताया कि एफसीआई प्रबंधन द्वारा हर्ल कारखाने को जमीन स्थानांतरण के समय झरिया सीओ ने 6600 एकड़ भूमि को रैयती भूमि बताया था. इसका स्थानांतरण अभी तक नहीं हुआ है, परंतु ना तो हमें रैयत की श्रेणी में रखा जाता है और ना ही विस्थापित की श्रेणी में ही जगह दी जा रही है. उन्होंने जिला प्रशासन से पूछा है कि क्या हमें हमारा अधिकार नहीं मिलेगा?
बेरोजगारी का दंश झेलने पर मजबूर युवा
सिंदरी बस्ती के युवा आनंद कुमार गोराई ने रोजगार की समस्या पर कहा कि सरकारी सुविधाओं से वंचित रहने के कारण सिंदरीबस्ती के युवा यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते हैं. इसका जिम्मेदार कौन है? लोकसभा चुनाव में युवाओं को रोजगार की गारंटी सभी दल दे रहे हैं, फिर हमारी व्यथा सुननेवाला कौन है?
बुनियादी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं है
महिलाओं की ओर से प्रतिनिधित्व कर रहीं बस्ती की पारो सोरेन ने कहा कि स्कूल में केंद्र सरकार की अटल क्लिनिक चल रही है, परंतु एलोपैथिक चिकित्सक की अनुपस्थिति में होम्योपैथिक चिकित्सक पैसा लेकर दवा दे रहे हैं. चिकित्सकों का कहना है कि सरकार दवा उपलब्ध कराने में असमर्थ है. महिलाओं को सुदूर दामोदर नदी से सिर पर रखकर पानी ढोना पड़ता है. एक कुआं तक नहीं है. एक चापाकल पर आश्रित 2000 परिवारों को इसके खराब होने पर भीषण गर्मी में तपती रेत पर पानी लाना मजबूरी है. उन्होंने कहा कि पांच वर्ष में एक बार आनेवाले नेता सिर्फ वादा करके बिना बोए खेती काटकर अपना वोट बैंक बनाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि अब ऐसा नहीं होगा. वोट देने को लेकर ग्रामीण विचार कर रहे हैं.
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