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अपने उत्तराधिकारी को जिताने के लिए बिरमित्रपुर व राजगांगपुर में पिता, तो रघुनाथपाली में पति बहा रहे पसीना

सुंदरगढ़ जिला में इस बार तीन विधानसभा सीटों पर बीजद ने पुराने नेताओं के उत्तराधिकारियों को टिकट दिया है. अपने उत्तराधिकारियों को जिताने के लिए ये हैवीवेट नेता जमकर पसीना बहा रहे हैं.

राउरकेला. सुंदरगढ़ जिला में इस बार तीन विधानसभा में परिवारवाद की राजनीति देखी जा रही है. जिसमें दो विधानसभा में पिता के स्थान पर पुत्र, तो एक विधानसभा में पति के स्थान पर पत्नी को उम्मीदवार बनाया गया है. यह तीनों ही उम्मीदवार एक ही राजनीतिक दल बीजद से हैं. जिससे दशकों तक अपनी राजनीति चमकाने के बाद जहां पिता अपने पुत्र को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. वहीं एक विधायक पति भी अपनी पत्नी को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

बिरमित्रपुर से रोहित जोसेफ तिर्की, राजगांगपुर से अनिल बरुआ मैदान में

बिरमित्रपुर विधानसभा में बीजद ने पूर्व विधायक जॉर्ज तिर्की ने बेटे रोहित जोसेफ तिर्की को अपना उम्मीदवार बनाया है. जहां रोहित तिर्की इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, वहीं जॉर्ज तिर्की भी उन्हें अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित करने के लिए जी-जान से लगे हैं. वहीं राजगांगपुर में पूर्व विधायक, पूर्व राज्यसभा सांसद व पूर्व मंत्री मंगला किसान के बेटे अनिल बरुआ को बीजद ने अपना उम्मीदवार बनाया है. अनिल बरुआ जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लगे हैं. वहीं उनके पिता मंगला किसान भी उनके लिए जमकर पसीना बहा रहे हैं.

सुब्रत तराई की जगह पत्नी अर्चना रेखा बेहरा को बीजद ने दिया टिकट

रघुनाथपाली में बीजद विधायक सुब्रत तराई की पत्नी अर्चना रेखा बेहरा को बीजद ने उम्मीदवार बनाया है. जिससे उनके लिए विधायक पति सुब्रत तराई भी हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. वैसे देखा जाये, तो इन तीनों उम्मीदवारों में से रोहित जोसेफ तिर्की ज्यादा अनुभवी हैं. वे गत 2019 में विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं तथा उन्होंने 40 हजार से भी ज्यादा वोट हासिल किये थे. इसके बाद वे विगत पांच साल से अपने पिता जॉर्ज तिर्की से राजनीति की काफी बारीकियां सीख चुके हैं. जबकि अनिल बरुआ व अर्चना रेखा बेहरा ने अभी राजनीतिक में कदम रखा है. जिससे उनके लिए क्रमश: पिता मंगला किसान व पति सुब्रत तराई काफी मेहनत कर रहे हैं. अब आगामी चार जून काे ही चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद ही पता चल पायेगा कि वे इन्हें अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित करने में कितना सफल होंगे.

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