रमना प्रखंड मुख्यालय सहित आसपास के ग्रामीण इलाकों में माइक्रो फिनांस समूह के चंगुल में फंसकर ग्रामीण खासकर महिलाएं शोषण का शिकार हो रही हैं. ग्रामीण व एसएचजी की महिलाएं छोटे व्यवसाय करने के लिए फिनांस कंपनियों से ज्यादा ब्याज दर पर ऋण लेते हैं. फिर लंबी किस्तों में ऋण का भुगतान करते-करते इनकी हालत पस्त हो जाती है. बेरोजगारी व पलायन की लगातार मार झेल रहे गरीबों का भरपूर फायदा उठाते हुए माइक्रो फिनांस कंपनियां भी अपने जाल में फंसा रही हैं. इसका नतीजा कुछ किस्तें चुकाने के बाद समझ में आ रहा है. पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. इस दौरान कुछ महिलाएं जैसे-तैसे पैसे चुका रही हैं. वहीं कई महिलाएं पैसा नही दिये जाने के बाद अपने घर परिवार छोड़ने पर विवश हो रही हैं. सबसे बड़ी बात कि पहले लिये गये ऋण का पांच-10 किश्त जमा करने के बाद ही ये फिनांस कंपनियां दोबारा उन्हें नये कर्ज देने को तैयार हो जाती हैं. उधर ग्रामीण लगातार इसकी चपेट में पड़ते जा रहे हैं.
छपरदगा निवासी मंजू दवी, शीला देवी व अनीता देवी, करवा निवासी कुलवंती देवी, मनोरमा देवी, व राधिका देवी सहित करचा निवासी संचूर बियार व अजय बियार, टंडवा निवासी जगदीश राम, कुलदीप राम, अजय राम, गुड्डू बियार, कल्लामुद्दीन अंसारी, अफरोज अंसारी व राजेंद्र यादव ने बताया कि उन जैसे गरीब के पास कोई विकल्प नहीं होने के कारण अपनी पत्नी के नाम से इस तरह का कर्ज लेने पर मजबूर होते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि जरूरत पड़ने पर पारिवारिक व सामाजिक दायित्व जैसे शादी-विवाह, चिकित्सा, त्योहार व घर के अन्य कार्यों में कर्ज के पैसे खर्च करने पर ये मजबूर हो जाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें नियमित रूप से रोजगार मिलता, तो इस तरह का कर्ज नहीं लेना पड़ता. इधर स्थानीय किराना दुकानदार सुनील प्रसाद, राजू कुमार, बबलू गुप्ता व गुड्डू प्रसाद तथा कपड़ा दुकानदार जितेंद्र कुमार, गोलू गुप्ता तथा अन्य दुकानदार विश्वजीत कुमार, रवि कुमार, मनोज कुमार, अनिल कुमार, संदीप कुमार व श्याम किशोर प्रसाद ने बताया कि गांव सहित आसपास के कई परिवार ऋण लेकर फंस गये हैं. ऋण चुकाने के फिराक में ये लोग मानसिक रूप से हमेशा परेशान रहते हैं.
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