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उच्च रक्तचाप बीमारी नहीं, लक्षण है

हमारी सभ्यता एक जटिल जंजाल में उलझ गयी है. बीमारियों का सीधा संबंध हमारी जीवनशैली और आदतों से हो गया है. सरल और सादा रहन-सहन हमें स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन दे सकता है.

हमारी नसों में खून के समुचित प्रवाह के लिए एक दबाव या तनाव की जरूरत होती है, जो सीमा से अधिक होने पर उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन कहा जाता है. आम तौर पर उच्च रक्तचाप को एक बीमारी के रूप में देखा जाता है और चिकित्सक भी उसी का उपचार कर रहे हैं. पहले यह मान्यता थी कि सामान्य ब्लड प्रेशर की सीमा 80 और 120 होनी चाहिए. अमेरिकी हार्ट एसोसिएशन ने इसमें बदलाव करते हुए सीमा को 70 और 110 निर्धारित किया है.
एथलीटों और अच्छी जीवनशैली वाले लोगों में ब्लड प्रेशर 60 और 100 पाया जाता है. इसे भी उनके लिए सामान्य माना जाना चाहिए. इस सीमा से अधिक या कम होने पर जांच की आवश्यकता होती है. यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि हाइपरटेंशन एक बीमारी नहीं है, बल्कि कुछ बीमारियों का लक्षण है. 

लक्षण के निर्धारण के लिए रक्तचाप को दो प्रकारों में बांटा गया है- प्राइमरी हाइपरटेंशन और सेकेंडरी हाइपरटेंशन. भारत में अधिकतर लोगों को प्राइमरी हाइपरटेंशन की समस्या है. यह वह स्थिति है कि डॉक्टर ने देखा कि व्यक्ति का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है, पर इसका कोई खास कारण नहीं मिला. इसे एसेंशियल हाइपरटेंशन भी कहा जाता है. सेकेंडरी हाइपरटेंशन में बीमारी, जैसे- किडनी की समस्या, हार्ट की कोई खराबी, कोई ट्यूमर आदि- का पता चलता है. इस श्रेणी में ऐसे लोग भी होते हैं, जो दुकान से दवा, खासकर दर्दनिवारक, खरीद खाते हैं.

कई दवाओं में ब्लड प्रेशर बढ़ाने वाले तत्व होते हैं. खाने में नमक की मात्रा अधिक होना भी सेकेंडरी हाइपरटेंशन का कारण हो सकता है. अक्सर ऐसा होता है कि आपकी जीवनशैली ठीक नहीं है, पर आपका हृदय ठीक काम कर रहा है. वैसे में खून की नालियों में संकुचन आ जाता है और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. आधुनिक चिकित्सा में उपाय यह निकाला जाता है कि दवा देकर खून को पतला कर दिया जाए और हाइपरटेंशन कम हो जाए. उस स्थिति में एड्रीनलिन शरीर के अन्य हिस्सों- मस्तिष्क, हार्ट, किडनी आदि- पर असर करेगा. लेकिन देखा तो यह जाना चाहिए कि नसों में संकुचन क्यों हुआ.
अगर व्यक्ति मोटापा का शिकार हो, तो उसे उच्च रक्तचाप की शिकायत हो सकती है. बहुत अधिक कैलोरी के भोजन, जैसे- पिज्जा, बर्गर आदि प्रोसेस्ड फूड, अधिक वसा, नमक और चीनी के सेवन से भी ब्लड प्रेशर की समस्या होती है. ऐसे व्यक्ति को हृदय रोगों, डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. मोटापा बढ़ने से शरीर अधिक इन्सुलिन बनाने लगता है. इन्सुलिन का काम ग्लूकोज कम करना होता है, पर आप उसे बार-बार बढ़ायेंगे, तो वह शरीर में सोडियम और पानी जमा करने लगेगा, जो हाइपरटेंशन का एक कारण बनता है.

साठ से अस्सी किलो वजन के व्यक्ति को हर दिन छह ग्राम नमक खाना चाहिए. बहुत अधिक चीनी खाना भी इन्सुलिन स्पाइक करेगा और ब्लड प्रेशर बढ़ेगा. इन आदतों के साथ-साथ लोगों की जीवनशैली सुस्त है. आम तौर पर हमें हर दिन आधे घंटे व्यायाम करना चाहिए. यहां व्यायाम से मतलब जिम नहीं है. सामान्य कसरत, जैसे टहलना, दौड़ना, तैरना, साइकिल चलाना आदि, से उच्च रक्तचाप की स्थिति को पैदा होने से रोका जा सकता है. लोग अगर हर दिन 10-12 हजार कदम पैदल चलें, तो ब्लड प्रेशर ही नहीं, कई घातक रोगों से बचाव हो सकता है.
तनाव हाइपरटेंशन का एक बड़ा कारण है. जैसी शहरी जिंदगी की आपाधापी है, उसमें तनाव होना स्वाभाविक है. इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि तनाव से एड्रीनलिन के साथ-साथ एक हार्मोन और निकलता है, जो सोडियम और पानी जमा करता है तथा मोटापे का कारण बनता है.

इसमें भोजन की खराब आदत और सुस्त होने के पहलुओं को जोड़ लें, तो तनाव एक बेहद चिंताजनक कारक बन जाता है. शराब और धूम्रपान भी उच्च रक्तचाप के बड़े कारण हैं. यह समझना आवश्यक है कि उच्च रक्तचाप सभ्यता के अनियोजित विकास का एक अभिशाप है. जैसे जैसे हमारी वर्तमान सभ्यता और लापरवाह जीवनशैली आगे बढ़ेगी, हाइपरटेंशन की समस्या गंभीर होती जायेगी तथा बीमारियों का बोझ बढ़ता जायेगा.
कभी पहले मिट्टी, लोहे, पीतल आदि के बर्तनों में भोजन बनाया जाता था. अब पॉलिश वाले और नॉन-स्टिक बर्तनों का चलन बढ़ता जा रहा है. ऐसे बर्तनों में कुछ तत्व मेटाबॉलिक सिंड्रोम का कारण बनते हैं. इस सिंड्रोम में हाइपरटेंशन के साथ-साथ डायबिटीज आदि को गिना जाता है. प्लास्टिक में पैक किये गर्म खाने की चीजें भी खतरनाक हैं. यही स्थिति फास्ट फूड के साथ है.

ऐसी वस्तुओं को संरक्षित करने के लिए उनमें नमक का अधिक इस्तेमाल होता है. स्वाद में नमक का असर कम करने के लिए चीनी डाली जाती है. चीनी धूम्रपान की तरह लत लगने वाली चीज है. ऐसी वस्तुओं को जब हम बासी के रूप में खाते हैं, तो और भी रसायन निकलते हैं. इस प्रकार हमारी सभ्यता एक जटिल जंजाल में उलझ गयी है. बीमारियों का सीधा संबंध हमारी जीवनशैली और आदतों से हो गया है. सरल और सादा रहन-सहन हमें स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन दे सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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