अभिलाष चौधरी, गौड़ाबौराम. प्रखंड के मनसारा पंचायत स्थित एक गांव को झोपड़ी का गांव कहा जाता है. वर्तमान में स्थिति ऐसी है कि इस गांव में न जाने के लिए रास्ता है, न पीने के लिए नल-जल योजना से पानी, बिजली है, लेकिन आंख-मिचौनी करती रहती है, न गांव में अस्पताल, न सरकारी राशन की व्यवस्था के लिए पीडीएस दुकान. अत्याधुनिक दौर में पिछड़ेपन की कहानी का दर्द बयां करते इस गांव में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. इस गांव का नाम मलई है. यह मनसारा पंचायत में है. दरभंगा व सहरसा जिला की सीमा पर बसे इस गांव में जाने के लिए स्टेट हाइवे 17 से दो किमी की दूरी तय करना पड़ता है. स्टेट हाइवे से इस गांव में जाने वाली सड़क पूरी तरह खेत की पगडंडी बन चुकी है. इस सड़क निर्माण में दोनों जिलों की लाखों-करोड़ों की विभिन्न योजनाओं से सरकारी राशि भी ख़र्च की गयी, परंतु अभी तक यह पगडंडी ही बनी हुई है. इस गांव में मतदाताओं की संख्या छह सौ और आबादी लगभग तीन हजार है. मुख्य बाजार सुपौल से इस गांव की दूरी 12 किमी है. इस गांव में घर-घर पानी पहुंचाने के लिए बने जल-नल योजना बंद पड़ा हुआ है. गांव के अंदर की ग्रामीण सड़कों की भी दुर्दशा अलग ही दर्द बयां करती है. ग्रामीण बताते हैं कि बिजली का यह हाल है कि सिर्फ खंबे ही लगे हैं. कब आती है और कब जाती है, इसका किसी को पता नहीं चलता. सबसे ज्यादा परेशानी बीमार लोग व प्रसव के लिए महिलाओं को गांव से बाहर ले जाने में होता है. गांव आने- जाने के लिए रास्ते नहीं है, इस वजह से कंधों पर उठाकर मुख्य बीमार या प्रसव पीड़ा से तड़प रही महिलाओं को मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है. ऐसे में हमेशा अनहोनी घटना का खतरा बना रहता है. कई बार उच्च अधिकारियों से इस समस्या की शिकायत की गयी, लेकिन इसकी सुधि लेने वाला आजतक कोई नहीं है. गांव वालों ने भी समस्या को नियति मान लिया है. ग्रामीण नारायण मुखिया बताते हैं कि पानी टंकी से लोगों को कभी एक बूंद भी पानी नहीं मिला है. सात निश्चय योजना में सरकार को कितना पैसा लग चुका है, लेकिन इसका कोई लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है. हाल ही में पानी टंकी का मरम्मत कार्य किया गया है. इसमें भी लाखों रुपये लगाए गए हैं, बावजूद गांव के लोगों को एक बूंद पानी नहीं मिला है. उन्होंने बताया कि गांव में बिजली का कनेक्शन सहरसा से जुड़ा है. खासकर खाने व बच्चों की पढ़ाई के समय बिजली चली जाती है. लोगों ने कनेक्शन के लिए बिरौल में आवेदन भी दिया. सौ लोगों ने बिरौल विद्युत कार्यालय का घेराव भी किया, लेकिन अभी तक इसका कोई समाधान नहीं निकला. इस गांव में सभी समस्या गंभीर हैं. वहीं जगनारायण मुखिया बताते हैं कि गांव में सड़क नहीं बना है. बच्चों की पढाई के लिए महज प्रावि है. इससे उच्च शिक्षा के लिए गांव से चार किमी दूर दूसरे पंचायत जाना पड़ता है. इस गांव में आज भी महज 10 फीसदी लोगों के पास मक्के मकान व शौचालय है., जबकि 90 प्रतिशत लोग झोपड़ी में निवास करते हैं. गांव की महिला जंगली देवी बताती हैं कि सरकारी राशन जब लाना होता है तो पूरे एक दिन का समय बर्बाद हो जाता है. 12 किमी पैदल यात्रा कर राशन लाते हैं. इस संबंध में संपर्क करने पर बीडीओ शेफाली ने बताया कि वे अभी इस प्रखंड में आये हैं. महज कुछ दिन पहले चार्ज लिये हैं. इसके बाद से अभी तक इलेक्शन ड्यूटी में रहे. जल्द ही इस गांव का विजिट किया जायेगा. जो भी समस्या होगी, उच्च अधिकारी व संबंधित विभाग को निराकरण के लिए लिखा जायेगा.
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