14.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

काराकाट में विकास के मुद्दे पीछे, जातीय समीकरण पर हर निगाह

काराकाट लोकसभा क्षेत्र में बढ़ी राजनीतिक तपिश के बीच चुनावी सरगर्मी तेज

दाउदनगर. धान का कटोरा कहे जानेवाले काराकाट लोकसभा क्षेत्र में बढ़ी राजनीतिक तपिश के बीच चुनावी सरगर्मी तेज है, लेकिन क्षेत्र के विकास के मुद्दे पीछे है. वैसे तो नामांकन पत्रों की जांच के बाद 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में रह गये हैं. यदि किसी प्रत्याशी द्वारा नामांकन वापस नहीं लिया जाता है, तो इतनी संख्या में ही प्रत्याशी रह जायेंगे. जदयू के निवर्तमान सांसद महाबली सिंह का टिकट कट चुका है. एनडीए गठबंधन से राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा चुनाव मैदान में है. जबकि इंडिया गठबंधन से भाकपा माले के पोलित ब्यूरो सदस्य एवं पूर्व विधायक राजाराम सिंह चुनाव मैदान में है. दोनों एक ही जाति से आते है. इन दोनों के बीच भोजपुरी फिल्मों के स्टार कहे जाने वाले निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह ने चुनावी मुकाबले को अत्यंत ही रोचक बना दिया है. उपेंद्र कुशवाहा जहां दूसरी बार प्रतिनिधित्व करने का लक्ष्य लेकर चुनाव मैदान में है. वहीं, राजाराम सिंह काराकाट से पूर्व में चुनाव लड़ चुके है, लेकिन इस बार वे महागठबंधन के प्रत्याशी है. इन दोनों के बीच पवन सिंह की उपस्थिति ने काराकाट क्षेत्र को बिहार का एक प्रकार से हॉट सीट बनाकर रख दिया है. बसपा के धीरज कुमार सिंह व एआइएमआईएम के प्रियंका प्रसाद समेत कुल 14 उम्मीदवारों के नामांकन पत्र वैध पाये गये है. जातीय समीकरण साधने की कोशिश: दाउदनगर-नासरीगंज के बीच सोन नदी पर पुल निर्माण के बाद इस क्षेत्र के विकास को नया आयाम मिला है. बिहटा-औरंगाबाद रेलवे लाइन, हमीदनगर बराज परियोजना, इंद्रपुरी जलाशय(कदवन डैम), डालमियानगर कारखाना, लंबित पनबिजली परियोजना, लुप्त हो चुके लघु उद्योगों को पुर्न स्थापित करना जैसे कई बड़े-बड़े मुद्दे इस क्षेत्र में है, लेकिन मुददों की बात पीछे दिख रही है. बात मोदी पक्ष और मोदी विपक्ष की हो रही है. अप्रत्यक्ष रूप से जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की जा रही है. विकास के मुद्दे गौण दिख रहे हैं. जहां भी चर्चा सुनने को मिल रही है, तो वह सिर्फ यही कि किस जाति का वोट किस ओर जा सकता है. इसी तरह की चर्चाएं सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं से लेकर चौक-चौराहों व चौपालों में सुनने को मिल रही है. परंपरागत वोट को बनाये रखना चुनौती: हालांकि प्रत्याशियों व उनके समर्थकों द्वारा इस भीषण गर्मी में भरपूर पसीना बहाया जा रहा है. एनडीए और महागठबंधन प्रत्याशियों के लिए अपने परंपरागत वोट को अपने पाले में बनाये रखना एक बड़ी चुनौती मानी जा रही है. पवन सिंह के भ्रमण के दौरान उनके समर्थकों भी चुनावी मैदान में वोट को अपने पक्ष में करने के लिए पसीना बहा रहे है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दोनों गठबंधनों के उम्मीदवारों के लिए स्वजातीय वोटरों के साथ-साथ दलित, महादलित व अति पिछड़ा वोट निर्णायक हो सकता है. दोनों गठबंधनों के पास अपने-अपने परंपरागत वोट हैं. एनडीए गठबंधन को जहां मोदी फैक्टर और एनडीए के परंपरागत वोट का भरोसा है, वहीं, महागठबंधन उम्मीदवार को महागठबंधन के परंपरागत वोटों का भरोसा है. एक जून को मतदान होना है. मतदाताओं की आवाज अब धीरे-धीरे मुखर होने लगी है. किसी भी प्रत्याशी को कम करके नहीं आंका जा सकता. यह कहना गलत नहीं होगा कि कोई भी प्रत्याशी परिणाम को उथल-पुथल करने में भूमिका निभा सकते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें