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कभी संसद में बुलंद करते थे झारखंड की आवाज, आज चुनावी चौखट से बाहर हैं ये पूर्व सांसद

Jharkhand MPs : एक वक्त के ऐसे राजनीतिक धुरंधर, जिनके बदौलत सरकारें बनती और बिगड़ती थी और जिन्हें झारखंड की राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता था. लेकिन आज वो तमाम नेता कहीं-न-कहीं सक्रिय राजनीति से दूर चले गए है. पेश है उनपर एक रिपोर्ट...

Jharkhand MPs : ये जब संसद में बोलते थे तो लगता था कि झारखंड दहाड़ रहा है.कभी लाखों लोगों की रहनुमाई करते थे. इनकी बदौलत सरकारें बनती और बिगड़ती थीं. संसद से लेकर सड़क तक इनकी आवाज के मायने तलाशे जाते थे. झारखंड की राजनीति का इन्हें चेहरा माना जाता था. लेकिन प्रदेश के ये पूर्व सांसद अब सियासी सीन से ही गायब दिख रहे हैं. राजनीतिक वनवास में आखिर ये कर क्या रहे हैं.

Jharkhand MPs : कई पूर्व सांसद अब केवल दर्शक की भूमिका में

चुनावी पन्नों में इतिहास बन चुके झारखंड के कई पूर्व सांसद अब भले ही केवल दर्शक की भूमिका में हैं, लेकिन इनकी सामाजिक सक्रियता अभी खत्म नहीं हुई है. अब पहले की तरह हजारों लोगों की भीड़ इनका स्वागत नहीं करती है. इन्हें सैकड़ों कार्यकर्ता अब अपनी मांगों की अर्जियां नहीं देते हैं. इनके आश्वासन भी अब लोगों के काम नहीं आते हैं. पर आज भी इनकी मौजूदगी के अहसास को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

शैलेंद्र महतो

साल 1984 में जेएमएम की टिकट पर पहली बार चुनाव मैदान में कूदने वाले शैलेंद्र महतो का राजनीतिक जीवन उठापटक से भरा रहा. जमशेदपुर लोकसभा सीट से पहली बार गोपेश्वर दास से हार का सामना करना पड़ा. हालांकि, 1989 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार चंदन बागची को हराकर जमशेदपुर से जीतकर संसद पहुंचे. दो साल बाद फिर हुए चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की और भाजपा उम्मीदवार अमर प्रताप सिंह को हराकर अपना दूसरा कार्यकाल बरकरार रखा. अब सक्रिय राजनीति से पूरी तरह दूरी बना चुके हैं.

”मैं अभी प्रकृति, धर्म और ईश्वर पर एक पुस्तक लिख रहा हूं. इससे पहले भी झारखंड आंदोलन पर कई पुस्तकें लिख चुका हूं. मेरा मन अब इसी में रम रहा है. – शैलेंद्र महतो, पूर्व सांसद”

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आभा महतो

शैलेंद्र महतो की पत्नी आभा महतो दो बार जमशेदपुर से भाजपा सांसद रहीं. वाणिज्य, कोयला, कपड़ा, महिला सशक्तीकरण और महिलाओं से संबंधित कानूनों पर विभिन्न संसदीय समितियों की सदस्य रह चुकी हैं. फिलहाल भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हैं, पर सियासी परिदृश्य में इनकी प्रभावी भूमिका कहीं नजर नहीं आती है.

क्या सांसद, विधायक रहना ही राजनीति में सक्रिय रहना है. मैं आज भी जनता के बीच ही रहती हूं और लोगों की समस्या का समाधान कराती हूं. पार्टी जब और जहां मुझे बुलाती है, जाती हूं. – आभा महतो, पूर्व सांसद

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रीता वर्मा

धनबाद से पांच बार सांसद रहीं. 1991, 1996, 1998 तथा 1999 के लोकसभा चुनाव में लगातार जीत का परचम लहराया. 1999 से 2004 तक एक के बाद एक कई मंत्रालयों में राज्यमंत्री भी रहीं. धनबाद से कुल 10 सांसद बने हैं, लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने का मौका केवल रीता वर्मा को ही मिला. ये तमाम उपलब्धि उस नेत्री की है, जो आज न तो झारखंड या केंद्रीय भाजपा में सक्रिय हैं और न ही क्षेत्रीय स्तर की राजनीति में. यहां तक कि सियासी सीन से ही पूरी तरह से गायब हैं. राजनीति से किनारा करने के बाद भी धनबाद के एक कॉलेज में इतिहास पढ़ाती रहीं. अब वहां से भी सेवानिवृत्त हो चुकी हैं.

धीरेंद्र अग्रवाल

चतरा लोकसभा सीट से 1996 और 1998 में भाजपा के टिकट पर सांसद बने. 1999 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव हार गए. 2004 में राजद के टिकट पर फिर सांसद बने. कुछ दिन चीनी मिल से जुड़ी धोखाधड़ी के आरोप में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में जेल में बंद रहे. जेल से निकलने के बाद कारोबार संभालते रहे. फिलहाल किसी राजनीतिक दल में सक्रिय नहीं हैं. इस बार भी चतरा से लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया था. बाद में नामांकन नहीं किया.

राजनीति को छोड़ किसी दूसरे काम को पेशा नहीं बनाया

झारखंड में इन नेताओं के अलावा भी कई ऐसे नेता हुए है जिनकी एक वक्त पर तूती बोलती थी और झारखंड की राजनीति के बड़े चेहरे माने जाते थे, लेकिन आज वह राजनीतिक रूप से पूरी तरह निष्क्रिय हो चुके है. किसी भी दल में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपी गयी है. सांसदी के बाद या तो उन्होंने खुद राजनीति से दूरी बना ली या फिर राजनीतिक दलों ने परोक्ष रूप से उन्हें किनारे किया. ये सभी नेता या तो अब समाज सेवा कर रहे है या कुछ और कर रहे है लेकिन, इन चारों में से किसी ने भी राजनीति को छोड़कर किसी दूसरे काम को अपना पेशा नहीं बनाया है.

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