डीटीओ कार्यालय में हावी दलालों का खेल सिर्फ कार्यालय परिसर तक सीमित नहीं है. आसपास के इलाकों में लगी कुछ गुमटियों और दुकानों में बैठकर ये दलाल आराम से अपना काम चलाते हैं. केवल डीटीओ कार्यालय के बाबुओं तक ही इनके द्वारा कमीशन नहीं पहुंचाया जाता है, बल्कि जिस व्यक्ति के जरिये ग्राहक/आवेदक इन दलालों तक पहुंचता है उन्हें भी कमीशन दिया जाता है. वहीं काम करने की प्रक्रिया की बात करें तो डीटीओ कार्यालय के दलालों में कुछ कथित ब्रांडेड दलाल भी शामिल हैं. उनके महज एक छोटे से इनिशियल या हस्ताक्षर से सारा काम आसान हो जाता है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुछ दलालों ने डीटीओ कार्यालय के बाबूओं के साथ सांठगांठ कर उन्हें अपना इनिशियल याद करवा दिया है. आवेदकों के आने के बाद मनचाहा पैसा लेने के बाद ये दलाल अपने नाम या पहचान का एक इनिशियल आवेदन या दस्तावेज के किसी कोने में दर्शा देते हैं. आवेदक को फलना बाबू के पास जाकर उक्त इनिशियल को दिखाने को कहते हैं. फिर क्या उक्त इनिशियल देखते ही बाबू आवेदन को एक अलग कोने में रख लेते हैं. इसके बाद सारा खेल शुरू हो जाता है. उक्त इनिशियल वाले दलालों से बातचीत कर अपना कमीशन फिक्स करते हैं और आवेदक को आराम से सोने के लिए कह कर भेज दिया जाता है. उसके बाद जिस दस्तावेज की भी जरूरत होती है, उसके लिए बाबू लोग इनिशियल वाले दलालों को पकड़ते हैं और उनसे फर्जी या असली जो भी दस्तावेज हो वह पहुंचाने को कहते हैं. न तो इसके लिए आवेदक को दौड़ाया जाता है और न ही आवेदकों को परेशान होने की जरूरत होती है. डीटीओ कार्यालय संबंधित किसी भी काम के लिए यह सिंडिकेट काम करता है. वहीं इन दलालों में एकता भी होती है. अगर किसी दलाल का काम अटकता है तो कुछ और दलाल उनके काम कराने की पैरवी कराने पहुंच जाते हैं. इस वजह से इन दलालों के बीच किसी प्रकार का विवाद भी नहीं होता है.
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