कोलकाता, नवीन राय : देश भर में सबसे अधिक सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा करके चुनाव लडने वाली एसयूसीआई(सी) एकलौती वामपंथी पार्टी बनकर उभरी है. पार्टी के राज्य सचिव चंड़ी दास भट्टाचार्य का दावा है कि वह लोग सभी सीटों पर जितने का जज्बा लेकर उतरे हैं. हार गये तो हार गये. जनता तक उनका सीधा संदेश पहुंचेगा तो सही. क्योंकि पूंजिवादी व्यवस्था व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के खिलाफ उन लोगों की जो लड़ाई चल रही है. वह जारी रहेगी. क्योंकि उन लोगों का आखरी लक्ष्य क्रांति मेहनतकश आवाम के लिए क्रांति लाना है. यही वजह है कि वह लोग देश के 42 राज्यों में कुल 151 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं.
I.N.D.I.A गठबंधन में रहने के बावजूद माकपा केवल 52 सीटोें पर ही लड़ रही है चुनाव
जबकि I.N.D.I.A गठबंधन में रहने के बावजूद माकपा केवल 52 सीटोें पर ही चुनाव लड़ रही है. माकपा की हालत तो यह है कि हिंदी पट्टी में उसका एक भी उम्मीदवार नहीं है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि एसयूसीआई (सी) को कितना वोट मिलेगा इसको लेकर संशय बना हुआ है. शायद उनका खाता भी नहीं खुले. इस पर चंड़ी भट्टाचार्य कहते हैं कि हमलोग जितने के लिए ही पूरे जी जान से लड़ते हैं. नतीजों की परवाह नहीं करते. लेकिन जो लोग जीत कर संसद में जाते हैं, वह लोग इस देश की व्यवस्था में परिवर्तन करने की बात नहीं करते.
JP Nadda : जेपी नड्डा ने कहा, ममता बनर्जी के कार्यों से ऐसा लगता है कि वे हमेशा रहती हैं अस्थिर
हमलोगों की लड़ाई व्यवस्था को परिवर्तन करने के लिये है : माकपा
हमलोगों की लड़ाई इसी व्यवस्था को परिवर्तन करने की है. इसलिए चुनाव को भी हमलोग उसी नजरिए से देखते हैं. यही वजह है कि जब भी संसद अथवा विधान सभा में उनके प्रतिनिधि को जाने का मौका मिलता है. वह वहां पर जनता के मुद्दे को उठाता है और जन आंदोलन को मजबूत करने की दिशा में पहल करता है. माकपा इतने दिनों तक राज्य की सत्ता में इसलिए टिकी थी. क्योंकि उसने माक्स व लेनिन के सिद्धांतों से समझौता कर लिया था. अगर वह ऐसा नहीं करते तो इस देश का पूंजिपति वर्ग उनको टिकने ही नहीं देता.
हमारे कार्यकर्ता सड़कों पर उतर कर आम लोगों से लेते हैं चंदा
क्योंकि पूंजिपतियों ने ही चुनावी व्यवस्था को बरकरार रखा है. जहां लोकतंत्र के नाम पर लोगों को मताधिकार प्रयोग करने का अधिकार दिया जाता है. वह लोग अर्थनैतिक व्यवस्था पर निर्भर होकर राष्ट्र व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहते हैं. इसके लिए असंख्य लड़ाई और संग्राम की जरूरत होती है. ऐसा करते हुए ही क्रांति आती है. इसके लिए लोगों का त्याग और बलिदान देना पड़ता है. इतनी बड़ी संख्या में अपना उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. इसके लिए चुनाव में खर्च कहा से लाएंगे. सवाल के जबाव में चंडी भट्टाचार्य कहते हैं कि हम लोगों को तो किसी ने चुनावी बांड नहीं दिया है. कोई भी कारपोरेट हाउस उन लोगों को चंदा नहीं देता है. हमारे कार्यकर्ता सड़कों पर उतर कर आम लोगों से चंदा लेते हैं. पार्टी का मुखपत्र जनता तक पहुंचाते हैं और उनसे सहयोग लेते हैं.
राज्य में अभी भी मुकाबला भाजपा बनाम तृणमूल कांग्रेस के बीच
माकपा भले ही चुनावी बांड के मार्फत चंदा नहीं लिया. लेकिन हकीकत यह है कि वह कारपोरेट घरानों से चंदा लेती है. एसयीसीआई(सी) का स्टैंड पहले से ही जन आंदोलन करने का है. यही वजह है 1977 में जब वामपंथियों का गठबंधन हुआ था. उस वक्त ज्योति बसु ने कहा था कि एसयूसीआई(सी) को लिया गया तो केवल आंदोलन ही होगा. सरकार चलाना नहीं होगा. चुनाव के ट्रेंड पर चर्चा करते हुए उन्होने कहा कि इस बार शार्प पोलराइजेशन नहीं हुआ है. राज्य में अभी भी मुकाबला मुख्य रुप से भाजपा बनाम तृणमूल कांग्रेस के बीच ही है. लोग अभी भी इन दोनों शक्तियों को हराने वाले ताकतों पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. यही वजह है कि आम लोग मतदान से दूर हो रहे हैं और वोट प्रतिशत में गिरावट आ रही है. उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर विमान बोस और प्रदीप भट्टाचार्य भले ही हाथ में हाथ डाल कर प्रचार करें. लोकसभा चुनाव को लेकर अर्द्धसैनिक बल के अधिकारियों को डीएम व एसपी ने किया ब्रीफ
माकपा दावा करती थी कि 1972 से 1977 तक कांग्रेस के हाथों उनके 11 सौ कार्यकर्ताओं की हत्या हुई
लेकिन हकीकत यह है कि माकपा के पुराने कार्यकर्ता जो लंबे समय तक कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन करते आये हैं वह लोग इस गठबंधन को नहीं मान पा रहे हैं. वजह बताते हुए उन्होने कहा कि माकपा भाजपा को फासीवादी कहती है. लेकिन लंबे समय से पूंजिपतियों का हित साधने वाली कांग्रेस को भी तो वह फासीवादी ही कहती रही है. ऐसे में कांग्रेस की नीति में क्या परिवर्तन आया कि वह अब फासीवादी नहीं रह गयी है. यह सवाल माकपा के निचले स्तर के लोग कर रहे हैं. क्योंकि उनका मानना है कि राज्य में पूंजिपति वर्ग का हिमायत करने वाली भाजपा व कांग्रेस एक ही सिक्के के दो पहलू है. इसके पहले माकपा दावा करती थी कि 1972 से 1977 तक कांग्रेस के हाथों उनके 11 सौ कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है. बाबरी मस्जिद का ताला खोलकर राजीव गांधी ने ही सांप्रदायिकता की हवा को तेज किया था. उस कांग्रेस के साथ माकपा कैसे गठबंधन कर सकती है चंडी भट्टाचार्य ने यह सवाल उठाया.साथ ही दावा किया कि इस देश में सही मायने में वामपंथा का परचम कोई बुलंद कर रहा है तो वह एसयूसीआई(सी) ही है. जो इतनी बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतार कर जन जन तक अपना संदेश फैलाना चाहती है