चांदी-धनुषी (वैशाली) से लौटकर अजय कुमार
Loksabha Elections: कुआरी चौक से हम चार कदम बढ़े थे. सड़क की बायीं ओर पूजा हो रही है. गोल बनाकर लोग खड़े हैं. बच्चे-बूढ़े सब हैं. बांस की सीढ़ियों से महिलाएं अपने घर की छत पर चढ़ रही हैं. छत के लिए यही सीढ़ी होती है. अलग से पक्के की सीढ़ी नहीं होती ऐसे घरों में. महिलाओं ने नये कपड़े पहन रखे हैं. वे गीत गा रही हैं. अपने देवता को पूज रही हैं. पूजास्थल के पास आग जल रही है. हम किससे बात करें? नजर फेरी.
कुछ ही दूरी पर एक महिला दिखीं. सामान्य कद-काठी. सड़क की दायीं ओर उनका घर है. अपने घर के बाहर और सड़क के किनारे चुपचाप पास में चल रहे पूजा के विधि-विधान को निहार रही हैं. एकटक. हमने उन्हें टोका. पूछा, ये क्या कर रहे हैं? किस भगवान की पूजा हो रही है? वह बोलीं, नान्ह लोग हैं. नान्ह मतलब? पसवान- उन्होंने कहा. ये राही बाबा की पूजा कर रहे हैं. कोई ”मन्ता” होगी. उनकी मुराद पूरी हुई, तो ये लोग पूजा कर रहे हैं. वह आग देख रहे हैं न? उस पर पूजा करनेवाले चलेंगे. अपने इष्ट देव के प्रति आभार प्रकट करने की उनकी यह परंपरा है. न जाने कब से चल रही है यह परंपरा.
हमारी बातचीत के दौरान चुनाव की प्रचार गाड़ी गुजरती है. हम अपना विषय बदलते हैं. इधर किसका माहौल है चुनाव में? महिला सकुचाती हैं. हम उनसे अपना सवाल दोहराते हैं. बैठने को वह प्लास्टिक की कुर्सी देती हैं. खुद भी दूसरी कुर्सी लाकर बैठ जाती हैं. हम चुनाव के माहौल के बदले रास्ते के बारे में पूछते हैं. वह बताती हैं: यही सड़क राघोपुर-वाजितपुर चली जाती है. एकदम सोझे (सीधा). आठवीं तक पढ़ी इस महिला का नाम मालती देवी है. अपने कौन आसरे (बिरादरी) की हैं? ठाकुर. जवाब मिलता है. ठाकुर माने राजपूत? ना. तब? नाई.
मालती के बेटा लोहा-छड़ी ढ़ालने का काम करते हैं. हम अपने असली सवाल पर लौटते हैं. चुनाव में किसका पलड़ा भारी लग रहा हैं? वह धीरे से कहती हैं: मोदिए जी का है इधर तो. क्यों? अब क्या कहें. ठीके चला रहे हैं. गरीब का ध्यान रखते हैं. अनाज मिल रहा है. पेंसनओ भी मिल रहा है. अनाज पांच किलो देता है कि चार किलो? अब हम क्या कहें? यह तो उसके इमान पर है. बाकी इस बार का अनाज बड़ा गंदा दिया है. पहले वाला ठीक था. तो मोदी जी का इधर कैंडिडेट कौन है? रामविलास जी का बेटा- उनका जवाब था.
हम आगे बढ़ते हैं. रास्ते में चाय की दुकान मिलती है. हम वहां रुकते हैं. अखबारवाले हैं हम. बात करनी है आपलोगों से. पटरी पर बैठे तीन लोगों में से एक खड़े हो जाते हैं. वहां बैठे एक बुजुर्ग खाली हुई जगह पर बैठने को कहते हैं. आवाज लगाते हैं: महेसर, चाह देना. मेरा नाम सुरेश सिंह हैं. सिंह का मतलब राजपूत मत समझ लीजिएगा. हम यादव हैं. उनके बगल में बैठे तीसरे व्यक्ति कहते हैं: मेरा नाम अरुण कुमार सिंह हैं. हम भी यादव हैं. मेरा घर हुआ सड़क के उस पार राघोपुर दियरा में. हमारे विधायक तेजस्वी बाबू हैं. तो इधर वोट का क्या हाल है? हम पूछते हैं.
अरुण कहते हैं: तीस परसेंट चिराग को मिलेगा. सत्तर परसेंट ”ललटेन” में जायेगा. रामविलास जी ने बहुते काम किया है. लेकिन यादव लोग चिराग को वोट देंगे? काहे नहीं देंगे? वह प्रति सवाल करते हैं. नित्यानंद जी यहीं के न हैं. उजियारपुर में चुनाव खत्म होने के बाद वह हाजीपुर में ही डटे हैं. उनके चलते यादव लोग भी टूट रहा है.
सुरेश सिंह कहते हैं: अरे हमको भी बोलने देगा कि मुंहजोरी करेगा? वहां खड़े लोग हंसने लगते हैं. सुरेश बाबू कहते हैं: ई अइसहीं बोल रहा है. एक्को वोट इधर-उधर नहीं होगा. खाली हम यादवे का बात नहीं कर रह रहे हैं. दूसरी जात वाले लोग भी लालू जी के साथ हैं. का जी? पास में खड़े एक व्यक्ति को वह बुलाते हैं. किसको वोट देगा? उसके जवाब देने के पहले सुरेश बाबू कहते हैं: देखिए इ दलित है. किसको वोट देगा जी? वह हमारे सामने आते हैं. पतली-दुबली काया. बोलते ही उनके दोनों गाल धंस जाते हैं. मुंह से आवाज आती है: हमलोग ललटेने को देते आ रहे हैं. अब इस उमिर में कहां जायेंगे?
सुरेश सिंह कहते हैं: देस का नास कर दिया सरकार ने. यहीं से गांव में जाने की सड़क है. अलग-अलग टोले में जातियों के लोग रहते हैं. हम अन्तंय पिछड़ी जाति वाले गांव में पहुंचते हैं. चकबीबी गांव है. गांव में घुसते ही मोहित राय मिलते हैं. सीधे हम वोट के बारे में बात करते हैं. उनके पास भी जवाब हाजिर है. उससे पता चलता है कि उनका वोट किधर जाने वाला है.
करीब पैंसठ साल के मोहित राय समझाने के अंदाज में कहते हैं: केतना आदमी को मार दिया सुईया लगा के. अलग-बगल में तीस-पैंतीस आदमी चले गये. कहां चले गये? महराज. जानते नहीं हैं. करोनवा में जे सूईया लगाइस, उसी में. केतना जान ले लिहिस. हमने जानना चाहा: ऐसे मरनेवाले लोगों के परिवारों का नाम बताएं. मोहित बोला-गऊ खिलाने का बेर हो गया है साहब!
हम गांव में और भीतर जाते हैं. ताड़ के पेड़ पर चढ़ने की तैयारी कर रहे दिलेसर मिलते हैं. आसपास रखे लबनी में ताड़ी भरी हुई है. मक्खियां भिनभिना रही हैं. उमस भरी गर्मी में उसकी महक नथूनो को बेध रही है. दिलेसर से जब कहते हैं कि चुनाव के बारे में बात करनी है, तो वह बताते हैं: कल रात मुखिया जी आये थे. वह लालू जी के आदमी हैं.
आपका वोट किसको जायेगा? देखिए यह तो गुप्त मतदान होता है. हमको जिसे मन करेगा, वहां दे आयेंगे. फिर भी कुछ तो सोचा होगा? दिलसेर थोड़ी मुस्कान के साथ कहते हैं: हम तो चिरागे को देंगे. क्या है चुनाव चिह्न? हेलीकॉप्टर छाप है. पहले झोपड़ी थी. लेकिन चाचा से लड़ाई के बाद नया छाप मिला है.
हम गांव के अंदर जाते हैं. अत्यंत पिछड़े लोगों की बस्ती है. यहां कुम्हार, तेली, कानू, मल्लाह, पासी जातियां हैं. हमें देखकर गांव के बच्चे नजदीक आते हैं. फिर महिलाएं. दो-चार नौजवान भी चौकी से कूद कर हमारे नजदीक आते हैं. सर्वे वाले हैं क्या? एक युवा हमसे सवाल करता है. नहीं हम अखबार वाले हैं और चुनाव के बारे में जानने आये हैं.
हम उसकी निरंतरता में एक महिला से पूछते हैं, इस बार किसका हवा है? महिला का नाम गौरी देवी है. वह अंचरा के एक कोर से अपना मुंह ढंकती हैं. कहती हैं: मोदी जी को. क्यों? गरीबन का ध्यान रख रहे हैं. अनाज दे रहे हैं. इंदिरा आवास दे रहे हैं. पानी मिल रहा है. बाकी हमलोग कमाते-धमाते हैं. महंगाई भी तो बढ़ी है? यह सुनते ही एक युवा कहता है: कमाई भी तो बढ़ी है. पहले दो सौ कमाते थे, अब चार सौ कमा रहे हैं.
कुछ और लोग वहां जुटने लगते हैं. का है जी? का है? उन्हें बताया जाता है कि चुनाव के बारे में ये लोग पूछ रहे हैं कि इधर किसका वोट है? इस बातचीत में अभी-अभी शामिल हुए बिनोद कहते हैं: देखिए भाई मोदी जी ने दुनिया में भारत का नाम बहुते बढ़ाया है. आज सभे देस के लोग अपने देश को परनाम कर रहा है. इसको महमूली समझते हैं का?
शाम होने को थी. हम कुछ और लोगों से मिलना चाहते थे. हम लालगंज जाने वाली सड़क पकड़ते हैं. रास्ते में गढ़ाई सराय बाजार में रुकते हैं. एक महिला अपने बेटे के साथ खड़ी हैं. हम उनसे चुनाव पर चर्चा करते हैं. कौन उम्मीदवार अच्छा है और किसको वोट देने की तैयारी है? महिला कहती हैं: हमलोग मोदी जी को देंगे. साथ में खड़ा उनका बेटा नौंवी क्लास में पढ़ता है. उसकी उम्र वोट देने की नहीं है. पर चुनाव और राजनीति में उसकी गहरी दिलचस्पी दिखती है. वह चंद्रयान की सफलता की कहानी बताता हैं. उस नन्हे बच्चे की बातों में कांग्रेस के प्रति बेरुखी बताती हैं कि सूचनाओं की उसके पास कोई कमी नहीं है.
हम आगे बढ़ते हैं. करताहां थाने के नजदीक चांदी धनुषी गांव के पास कुछ लोगों से बात करते हैं. शाम अब रात होने की ओर बढ़ चुकी थी. गुमटी की बत्ती बुझायी जा रही थी. हमारे सवाल पर एक ने कहा: इधर तो पूछने की जरूरत ही नहीं है आपको. 2014 का पॉपुलर नारा दोहराते हैं: हर-हर मोदी, घर-घर मोदी. लेकिन वैशाली में क्या होगा? उधर तो टक्कर सुन रहे हैं. मुन्ना शुक्ला और वीणा देवी में जबरदस्त लड़ाई सुने हैं.