रांची (संवाददाता). सरना झंडा और धार्मिक चिह्नों के राजनीतिक कार्यक्रमों में इस्तेमाल और दुरुपयोग के मुद्दे पर रविवार को विभिन्न आदिवासी संगठनों की बैठक टैगोर हिल स्थित ओपन एयर थियेटर के पास हुई. बैठक में कहा गया कि हाल के दिनों में सरना झंडा और धार्मिक प्रतीक चिह्नों का उपयोग विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के कार्यक्रमों किया जा रहा है. यह धार्मिक झंडा और प्रतीक चिह्नों का दुरुपयोग है. इससे सरना समाज को क्षति हो रही है. इस मुद्दे पर समाज के बीच जागरूकता फैलाने और आंदोलन करने के लिए आदिवासी सरना धर्म संरक्षण समिति का गठन किया गया. इस अवसर पर समिति के लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहा कि सरना झंडा, धार्मिक अनुष्ठानों के कर्मकांड, रंपा-चंपा ये सभी सरना समाज की पहचान है. दुर्भाग्य है कि इनका उपयोग अब राजनीतिक पार्टियों के कार्यक्रमों में, सरकारी कार्यक्रमों, अधिकारियों के स्वागत आदि में किया जा रहा है. इसके अलावा इन प्रतीक चिह्नों का उपयोग अवांछित स्थानों पर भी किया जा रहा है. इसके अलावा सरना समाज की धार्मिक, सामाजिक, महत्व की जमीनो पर भी अतिक्रमण किया जा रहा है. श्री मुंडा ने कहा कि आज झारखंड में सरना समिति व आदिवासियों के नाम पर सैकड़ों संगठन चल रहे हैं, पर इनके मुद्दों में आदिवासियत, झारखंडी मुद्दे गौण हो गये हैं. यह सारी चीजें समाज के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं. सूरज टोप्पो ने कहा कि आदिवासियों पर चौतरफा हमला हो रहा है. समाज इस समय संकट के दौर से गुजर रहा है. जल, जंगल, जमीन के साथ साथ आस्था, विश्वास और धार्मिक प्रतीक चिह्नों पर भी चोट की जा रही है. सरना झंडा व प्रतीक चिह्नों से भी खिलवाड़ किया जा रहा है, इन पर अंकुश लगाया जाना चाहिए. मौके पर डबलू मुंडा, बहादुर मुंडा, सदन उरांव सहित अन्य ने भी विचार रखे. बैठक में अमित मुंडा, अरुण पाहन, अनिल मुंडा, अशोक मुडा, दिनकर कच्छप, शहदेव मुडा, मुन्ना मुंडा, शशि मुंडा, मोहन तिर्की, राजेश लोहरा सहित अन्य उपस्थित थे.
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