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Supaul news : कुसहा त्रासदी के 16 साल : किसानों ने अपने दम पर बालूवाली धरती को पहना दी धानी चुनर

Supaul news :किसानों ने अपनी कर्मठता से कोसिकन्हा की इस बालू भरी धरती को हरी चुनर पहना दी है.

Supaul news : डेढ़ दशक यानी 16 साल किसी भी चीज के लिए कम नहीं होता. इतने वर्षों में बहुत कुछ बदल जाता है. कुसहा त्रासदी के बाद भी सब कुछ बदल गया था. जहां चार दिन पहले खेत में फसल लहलहाती थी, वहां दूर-दूर तक अंतहीन बालू का पिंड दिख रहा था. यहां की सैकड़ों आबादी का जीवन जैसे बालू सा हो गया. लोग हताश हुए, निराश हुए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और अब यह मैला आंचल की धूल-धुसरित जमीन बदलने लगी है. किसानों ने अपनी कर्मठता से कोसिकन्हा की इस बालू भरी धरती को हरी चुनर पहना दी है और वह अब नयी नवेली दुल्हन सी दिखने लगी है.

2008 में आयी बाढ़ से बंजर हो गये थे खेत

कुसहा त्रासदी के दिये दर्द को सुपौल के बसंतपुर प्रखंड के किसानों ने मेहनत रूपी मरहम लगा कर कम कर लिया है. 05 से 07 फीट तक बालू भरे खेतों में फिर से खेती कर किसानों ने बेहतर पैदावार करने में सफलता हासिल की है. 2008 की कुसहा त्रासदी के बाद बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के खेतों में बालू का अंबार लग गया था. माना जा रहा था कि बालू भरे इन खेतों में अब खेती करना मुश्किल है, लेकिन किसानों ने कड़ी मेहनत के बल पर बालू में भी सोना उपजा कर दिखा दिया. परमानंदपुर, रानीपट्टी, मोहनपुर, बनैलिपट्टी, शंकरपुर, बलभद्रपुर, कोचगामा, कुशहर आदि की लगभग 30 हजार हेक्टेयर जमीन में बालू की मोटी चादर जमा हो गयी थी. किसान हतोत्साहित हो गए थे. पर, किसानों ने हिम्मत नहीं हारी और परिणाम हुआ कि बालू भरे खेत भी उर्वर होने लगे. खेतों में विभिन्न प्रकार की फसलें लहलहाने लगीं और किसानों की खुशहाली फिर लौट आयी. एक की देखा-देखी दूसरे किसान भी खेतों में मेहनत करने लगे. किसानों द्वारा इन खेतों में अब पारंपरिक फसलों के अलावा फल, सब्जी व मकई की खेती की जा रही है. यहां के किसान केले की भी अच्छी खेती कर रहे हैं. फिलहाल यहां लगभग 150 हेक्टेयर में केले की खेती हो रही है. यहां के किसानों के उत्पादित केले के लिए नेपाल का बाजार उपलब्ध है.

पिपराही नाग ग्राम को कृषि विभाग ने जैविक ग्राम किया घोषित

पिपराही नाग ग्राम को कृषि विभाग ने जैविक ग्राम घोषित किया था, ताकि जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सके. इस ग्राम में हर परिवार के पास आज अपना वर्मी बेड उपलब्ध है. यहां के किसान अपने द्वारा उत्पादित वर्मी कंपोस्ट का ही उपयोग अपने खेतों में करते हैं. हालांकि इस क्षेत्र के किसानों के समक्ष अब भी उन्नत बीज एवं पटवन की समस्या बरकरार है. किसान हरिलाल मंडल, मनमन दास समेत अन्य ने कहा कि किसानों को सिर्फ दिशा दिखाने और मदद की जरूरत है. खेतों में बालू जमा होने के कारण यहां खेत में अधिक पानी देने की जरूरत पड़ती है. अगर यहां सिंचाई की जरूरत को पूरा कर दिया जाये, तो किसान और अच्छी पैदावार कर सकते हैं.

तबाही के मंजर को याद कर किसानों के चेहरे हो जाते हैं मायूस

किसान हरिलाल मंडल कहते हैं कि जब 2008 में बाढ़ आयी, तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि बर्बादी की इतनी बड़ी कहानी लिखी जायेगी. उस वक्त यहां के खेतों में अच्छी पैदावार होती थी. पर, त्रासदी के बाद आयी रेत ने उपजाऊ खेतों को बंजर बना दिया. हमने अपनी मेहनत के बल पर फिर से खेतों को उपजाऊ बनाया. खेतों में चार से पांच फीट बालू जमा था, जिसे हटाकर फिर से उपजाऊ बनाया. हमारे जैसे अधिसंख्य किसान हैं, जो अपनी मेहनत के बल पर बंजर भूमि को उपजाऊ बना दिये हैं.

पहले जैसे नहीं होती है फसल

2008 से पहले खेतों में अच्छी पैदावार होती थी, लेकिन 2008 के बाद फसल की पैदावार में कमी आयी है. हालांकि मेहनत उतनी ही करनी पड़तीहै. किसान हरिनंदन साह कहते हैं कि पहले धान, गेहूं, मूंग समेत अन्य फसल उपजा लेते थे. पर, अब धान, मक्का ही उपजता है. पुश्तैनी जमीन है, तो छोड़कर भी नहीं जा सकते हैं.

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