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कम लागत, ज्यादा कमाई; ड्रैगनफ्रूट बदल रहा बिहार के किसानों की किस्मत, जानिए कैसे साबित हो रहा है फायदेमंद?

ड्रैगन फ्रूट की खेती अब किसानों की हालत बदल रही है. एक-दो किसानों से शुरू हुई इसकी खेती अब पूर्णिया जिले में जोर पकड़ने लगी है. ऐसे कई किसान हैं जिन्होंने ड्रैगनफ्रूट की खेती शुरू करके अपना भविष्य मजबूत किया

Agriculture News: पारंपरिक खेती से इतर कुछ नया करने की चाहत में ड्रैगन फ्रूट की खेती अब किसानों की दशा को बदल रहा है. एक दो किसानों से शुरू हुई इसकी खेती, पूर्णिया जिले में अब रफ़्तार पकड़ने लगी है. कई ऐसे किसान हैं जिन्होंने ड्रैगनफ्रूट की खेती शुरू कर अपना भविष्य सुदृढ़ किया है. उनकी ड्रैगन फ्रूट की पैदावार स्थानीय बाज़ारों से लेकर दूर-दूर तक जा रही है. इस फल का सेवन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहद फायदेमंद भी है. इस वजह से इसका बाजार व्यापक है. बताते चलें कि धमदाहा के किसान अंजनी चौधरी, भवानीपुर के मो० खुर्शीद आलम तथा जलालगढ़ के राजीव सिंह कई एकड़ जमीन पर ड्रैगनफ्रूट की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

मई से नवंबर तक होता है ड्रैगनफ्रूट का फलन

किसान अंजनी चौधरी ने बताया कि उन्होंने चार वर्ष पूर्व सात सौ ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए थे जिनमें अगले ही वर्ष से फूल फल आने शुरू हो गये. मई माह से नवम्बर माह तक इसमें फलन होती है. पहले दो साल फलन कम होता है, तीसरे साल से ज्यादा फलने लगता है. पांच वर्षों के बाद प्रति पौधे से लगभग दस किलो फल की प्राप्ति होती है. पूर्णतः जैविक खेती है तीन माह पर गोबर, वर्मीकम्पोस्ट, खल्ली डालते हैं. दस बाई दस की दूरी है तो बीच में सब्जी भी लगाते हैं.

वहीं भवानीपुर के मो० खुर्शीद आलम ने पारंपरिक खेती से हट कर कुछ अलग करना चाहा. अनेक फसलों का चयन किया लेकिन कुछ ख़ास सफलता नहीं मिल पायी. दो साल पूर्व दो एकड़ जमीन में इन्होने ड्रैगन फ्रूट लगाया. इसके लिए एक हजार पिलर बनवाकर प्रति एकड़ चार सौ पौधे लगाए, पटवन के लिए सरकारी अनुदान हासिल कर ड्रिप लगाया. इन्हें दो एकड़ जमीन में कुल दस लाख रुपये की लागत आयी. अंतरवर्ती फसल के रूप में ये भी सब्जियों की खेती करते हैं. बताते हैं कि इस एक बार के बड़े खर्च के बाद प्रति वर्ष बेहद मामूली सा खर्च आता है. इसकी खेती में आनेवाले कम से कम बीस सालों तक सिर्फ आमदनी ही है.

इस साल मिले आठ लाख, अगले साल 15 लाख की आस

अपने खेत पर ही ये ड्रैगन फ्रूट को एक सौ पचास रुपये प्रति किलो बेच देते हैं. इस साल आठ लाख रुपये की प्राप्ति हुई है और अगले साल पंद्रह लाख की उम्मीद है. इनका कार्य इतना प्रेरक है कि कृषि विभाग के अधिकारी, यहां तक कि जिलाधिकारी कुंदन कुमार भी अन्य किसानों को इनसे प्रेरणा लेने की सलाह देते हैं.

गौरतलब है कि हाल ही में बिहार सरकार के मुख्य कृषि सचिव और पूर्णिया डीएम ने जलालगढ़ का दौरा कर ड्रैगनफ्रूट उत्पादन कर रहे किसान से मुलाक़ात की और फसल का मुआयना किया और इसकी खेती को बढ़ावा देने तथा मार्केट उपलब्ध कराने की दिशा में एक फार्मर प्रोडूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) बनाकर उसे ई पोर्टल से जोड़ने का आश्वासन भी दिया है.

प्रशासन दे रहा प्रयोगात्मक खेती पर जोर

बीते दिनों रबी महोत्सव के दौरान डीएम ने युवाओं को उद्यम से जुड़ने की सलाह देते हुए किसानों से भी अपील की कि वे अपनी खेती की पद्धति को प्रयोगात्मक खेती का रूप दें और अस्सी बीस का अनुपात रखें. यानि अस्सी प्रतिशत वैसी खेती जिसे वे करते आ रहे हैं उसे करें और बीस प्रतिशत स्थान नयी फसलों को दें. जिसमें बागवानी फसलों को अपनायें.

आम, अमरुद, पपीता, टिश्युकल्चर केला, मखाना, स्ट्रॉबेरी, ड्रैगन फ्रूट आदि की भी खेती करके देखें अगर सफलता हाथ लगे तो आगे इसका रकवा बढ़ा सकते हैं. इससे नुकसान का जोखिम कम हो जाएगा और लाभ का दायरा बढ़ जाएगा. वहीँ इस दिशा में सरकार भी विभिन्न बागवानी की फसलों के लिए बीज से लेकर पटवन संयंत्र, फसल उत्पादन आदि पर अनुदान दे रही है.

क्या कहते हैं अधिकारी

जिले में 25 एकड़ भूभाग में ड्रैगन फ्रूट की खेती की जा रही है. सबसे ज्यादा एरिया रुपौली में है जहां भविष्य के लिए कलस्टर निर्माण का कार्य किया जा रहा है. इसके अलावा धमदाहा, जलालगढ़, पूर्णिया पूर्व और भवानीपुर प्रखंडों में भी खेती हो रही है. इस साल 10 से 20 एकड़ और बढ़ने की संभावना है. अब तो इंजीनियर भी अपनी सेवा छोड़कर इसकी जबरदस्त खेती कर रहे हैं. इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की सब्सीडी भी दी जाती है. बिक्री में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है. यहां टिश्यु कल्चर केला, मखाना और ड्रैगनफ्रूट की अपार संभावना है.

डॉ राहुल कुमार, जिला उद्यान पदाधिकारी.

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