कोईलवर. पटना-बक्सर रेलखंड पर यात्री सुविधाओं की घोर कमी है. यात्रियों को मिलनेवाली सुविधाओं के मामले में कोईलवर की हालत हाॅल्ट से भी बदतर है. जबकि राजस्व के मामले में यह स्टेशन बेहतर स्थिति में है. इस स्टेशन से यात्रा करनेवाले लोगों के लिए न ही पर्याप्त शेड है, न ही पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था और शौचालय की भी कमी है. कुल मिलाकर कोईलवर स्टेशन पर यात्री सुविधाओं के नाम पर व्यवस्था जीरो है. स्टेशन के दोनों प्लेटफाॅर्म का प्रवेश एवं निकास सोन नदी के कोईलवर पुल पर है, जहां अति व्यस्ततम यातायात व्यवस्था रहती है. प्लेटफाॅर्म पर आने-जानेवालों की जरा सी असावधानी या हड़बड़ी से मोटर वाहनों से कुचल जाने का खतरा रहता है. अप प्लेटफाॅर्म पर एक छोटे से कमरे में बुकिंग ऑफिस चलता है. एक से दूसरे प्लेटफाॅर्म पर जाने के लिए फुट ओवरब्रिज भी यहां नहीं है. लोग रेल लाइन पार कर आते-जाते हैं. इसमें महिलाओं, बुजुर्गों एवं बच्चों को अधिक परेशानी और खतरा रहता है. कोईलवर स्टेशन से आसपास के इलाके के अलावा जिले के बड़हरा और संदेश के साथ-साथ सोन नदी पार पटना जिले के ग्रामीण और गंगा पार छपरा के ग्रामीण भी यहां से रेल यात्रा करते हैं. हजारों यात्रियों से लाखों रुपये मासिक राजस्व रेलवे को यहां से मिलता है, बावजूद यात्री सुविधा नगण्य है. एक चापाकल के भरोसे हजारों यात्री : इस भीषण गर्मी में स्टेशन पर पीने के पानी की व्यवस्था भी पर्याप्त नहीं है. अप और डाउन लाइन मिलाकर एक ही चापाकल है. जो अप लाइन प्लेटफॉर्म पर है. गर्मी से राहत पाने के लिए डाउन लाइन के यात्री अपनी जान को दांव पर लगा पानी के लिए रेलवे ट्रैक पार करने को मजबूर हैं. यात्री शेड के अभाव में धूप में ट्रेन का इंतजार करते हैं यात्री : कोईलवर रेलवे स्टेशन पर स्टेशन निर्माण के समय का ही एक यात्री शेड डाउन लाइन पर है. जबकि अप लाइन पर टिकट काउंटर समेत एक और यात्री शेड है, जिसके भरोसे लोग ट्रेन का इंतजार करते हैं. सबसे ज्यादा समस्या डाउन प्लेटफॉर्म पर है जहां एक छोटे से यात्री शेड से ही धूप से बचने की जुगत में लोग मजबूर होकर खड़े रहते हैं. शौचालय की स्थिति बदहाल : स्टेशन के अप और डाउन दोनों प्लेटफॉर्म पर शौचालय की स्थिति बद से बदतर स्थिति में है. शौचालय में दरवाजे नहीं हैं और वे गंदगी से भरे पड़े हैं. जबकि एक अन्य शौचालय में ताला बंद है. ऐसे में महिला यात्रियों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ता है. अत्यधिक मजबूरी में झाड़ियों का सहारा लेना पड़ता है.
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