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नौ माह में सेवा से बर्खास्त किए गए थे 19 शिक्षक व कर्मी

किसान कॉलेज, बरियारपुर में शिक्षक व कर्मियों को सेवा से बर्खास्त करने का एक दौड़ चला था. ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई थी.

सीतामढ़ी. किसान कॉलेज, बरियारपुर में शिक्षक व कर्मियों को सेवा से बर्खास्त करने का एक दौड़ चला था. ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई थी. इतनी तेजी में यह कार्रवाई चल रही थी कि शिक्षक और कर्मी हैरान एवं परेशान थे. उन्हें समझ में नही आ रहा कि प्राचार्य सह सचिव की इस कार्रवाई से कैसे निबटा जाए. यह जान कर हर किसी को हैरानी होगी कि नौ माह में कॉलेज के एक नही, बल्कि 19 शिक्षक/कर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था. बहरहाल, अब एक ही फैसले में सभी को बड़ी राहत मिली है. यानी सेवा को बर्खास्त करने के तमाम आदेशों को रद्द कर दिया गया है.

— जिला अपीलीय प्राधिकार से मिला न्याय

उक्त शिक्षक व कर्मियों ने जिला अपीलीय प्राधिकार में अलग-अलग व संयुक्त रूप से नौ वाद दायर किए थे. वादों में कहा गया था कि कॉलेज प्रबंधन मनमाने ढंग से कॉलेज का संचालन किया जाता है. प्राप्त आय का 30 फीसदी कॉलेज संचालन व 70 फीसदी शिक्षक व कर्मियों ने एक समान वितरण करना था, जिसका भी पालन नही किया जाता है. अनुदान का वितरण ढंग से नहीं जाता है. इसका विरोध करने पर कर्मियों को प्रताड़ित किया जाता है. रसायन शास्त्र के व्याख्याता प्रो गजेंद्र सिंह व प्रो राम एकवाल सिंह ने कॉलेज की मनमानी की शिकायत बोर्ड से की थी. दोनों को सेवा मुक्त ही कर दिया गया था.

— शिकायत के तीसरे दिन कार्रवाई

पांच सितंबर 18 को शिकायत की गई थी. इसके मात्र तीसरे दिन यानी सात सितंबर को प्रो राम एकवाल सिंह को एवं 10 अक्तूबर को प्रो गजेंद्र सिंह को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. इसके खिलाफ शिक्षक व कर्मियों ने सामूहिक हड़ताल कर दिया था. बाद में प्राचार्य सह सचिव ने उन दोनों को योगदान करा लिया था. फिर इन हड़ताली शिक्षक/कर्मियों पर कार्रवाई की गई थी. शिक्षकों ने प्राधिकार को बताया था कि तत्कालीन शासी निकाय सह प्रबंध समिति को सेवा मुक्त करने की कार्रवाई का अधिकार नही था. कारण कि यह समिति नियमावली के तहत गठित ही नही था. नियमावली में है कि उक्त समिति में किसी सदस्य का कोई संबंधी न हो, जबकि संबंधी शामिल है. खास बात यह कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के नियम के अनुसार सेवा मुक्त का निर्णय/आदेश से पूर्व बोर्ड से अनुमति लेनी है, लेकिन न तो अनुमति ली गई और न ही बाद में कार्रवाई पर स्वीकृति प्राप्त की गई. इस कार्रवाई को प्राधिकार ने अवैध करार देते हुए निरस्त कर दिया है.

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