पूसा : डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विवि पूसा के स्नातकोत्तर पादपरोग विभागाध्यक्ष सह अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ एसके सिंह ने कहा कि पोटैशियम की कमी केले के उपज को बुरी तरह से प्रभावित करती है. इसकी कमी से केले की उपज काफी घट जाती है. जिससे किसानों को प्रत्येक वर्ष व्यापक स्तर पर नुकसान पहुंचता है. बिहार के केला उत्पादक किसान केले के बागों का वैज्ञानिक तकनीक से प्रबंधन कर पोटैशियम की कमी को दूर करते हुए केले से उच्च स्तरीय व गुणवत्तापूर्ण फल का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि पोटेशियम की कमी से केले के पौधे पीला पड़ने लगते हैं. उसमें लगने वाले फल भी खराब हो जाते हैं. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि पोटेशियम की कमी से केले की वृद्धि में उल्लेखनीय कमी आती है. इसकी कमी से पौधे पीले पर जाते हैं. पेटीओल्स यानी (डंठल) के आधार पर बैंगनी भूरे रंग के पैच दिखाई पड़ने लगते हैं. गंभीर मामलों में प्रकंद (कॉर्म) का केंद्र भूरा व पानी से लथपथ विघटित कोशिका संरचनाओं का क्षेत्र जैसा दिखने लगता है. उन्होंने बताया कि पोटैशियम की कमी से विभाजन द्वितीयक शिराओं के समानांतर विकसित होते हैं. लैमिना नीचे की ओर मुड़ जाती है. इसके अलावा पौधों की मध्य शिरा झुक जाता है. टूटकर गिर जाता है. जिससे पत्ती का बाहर का आधा भाग नीचे लटक जाता है. उन्होंने बताया कि पोटेशियम की कमी को दूर करने के लिए केला उत्पादक किसान केले की खेती में खाद एवं उर्वरकों के निर्धारित मात्रा का प्रयोग समय-समय पर करने की सलाह दी. पौधे के पीले पड़ने और पेटीओल्स यानी (डंठल) के आधार पर बैंगनी भूरे रंग के पैच दिखाई पड़ने की स्थिति में किसानों को साप्ताहिक अंतराल पर केसीएल के 2 प्रतिशत पर्ण का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है