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रामायण एक महाकाव्य ही नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है : राम प्रियदास शास्त्री

रामायण एक महाकाव्य ही नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है. इससे मनुष्य को जीने की कला का ज्ञान होता है.

कुशेश्वरस्थान पूर्वी. रामायण एक महाकाव्य ही नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है. इससे मनुष्य को जीने की कला का ज्ञान होता है. भगवान श्रीराम की कथा केवल सुनना नहीं, बल्कि जीवन में धारण करना चाहिए. रामकथा जीवन में उतारने पर ही धर्म, देश व सनातन की रक्षा कर सकेगें. साथ ही आने वाली युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन दे सकेगें. ये बातें केवटगामा राम-जानकी मंदिर परिसर में श्रीसीताराम महायज्ञ पर सातवें दिन गुरुवार को श्रीराम कथा में चित्रकूट के कथावाचक राम प्रियदास शास्त्री ने कही. उन्होंने कहा कि लोगों को भगवान श्रीराम से माता-पिता की सेवा, भाई से प्रेम, निषाद प्रेम, सबरी के नवधा भक्ति तथा जटायु से पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम की सीख लेनी चाहिए. कथावाचक ने कहा कि मनुष्य को झूठ का सहारा लेकर कभी भी लोगों को दिगम्रमित नहीं करना चाहिए. झुठ बोलने वालों को भगवान भी माफ नहीं करते. एक दिन सभी को मिट्टी में मिल जाना है. इसलिए छल-प्रपंच को त्यागकर पीड़ित मानव का सेवा करने से ही मनुष्य हमेशा खुश रह सकता है. संगीतमय प्रवचन की प्रस्तुति के दौरान प्रसंग आधारित भजन-कीर्तन से श्रोता मंत्रमुग्ध होते रहे. इधर यज्ञ में दिन-प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. श्रद्धालु यज्ञ मंडप की परिक्रमा कर यज्ञ परिसर में स्थापित विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन कर चढ़ावा चढ़ाते हैं. बच्चे विभिन्न प्रकार के झूले पर चढ़ तथा मिठाई व नमकीन के दुकानों पर अपने पसंदीदा स्वाद का लुत्फ उठाते हैं.

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