Geeta Updesh: श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण के बहुमूल्य उपदेशों का वर्णन है. गीता के इन को उपदेशों को श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन के माध्यम से संसार पुरे संसार को दिया था. गीता में दिए उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं और मुसीबत या परेशानी में परे मनुष्य को जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं. गीता लिखी बातों को जीवन में अपनाने से व्यक्ति को अपने जीवन में सफलता मिलती है.
कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश तब दिया था, जब उनके कदम महाभारत के युद्ध में अपने ही परिजनों को देख डगमगाने लगे थे. लेकिन भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों को सुनकर अर्जुन अपने लक्ष्य को पूरा करने की ओर अग्रसर हुए. ऐसा कहा जाता है कि गीता में जीवन की हर एक परेशानी का हल मिल जाता है. आज के अपने इस लेख में हम आपको भगवान श्रीकृष्ण के कुछ ऐसे ही उपदेशों के बारे में बताने वाले हैं.
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
श्री कृष्ण कहते हैं कि जब भी ब्रह्मांड में धर्म की हानि होती है, अर्थात अधर्म बढ़ता है,
तब मैं धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेता हूं
जो अधर्म करते हैं, भगवान उनका नाश करते हैं, इसलिए धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो. कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे
जो पुरुष सीधे साधे होते उन के लिए कल्याण के लिए और जो पापी होते हैं, उनके विनाश के लिए,
धर्म की स्थापना के लिए, मैं (भगवान श्री कृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया
कृष्णचित्तस्थिता राधा राधाचित्स्थितो हरिः
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम
श्री राधारानी के मन में भगवान श्रीकृष्ण निवास करते हैं और श्री राधारानी भगवान श्रीकृष्ण के मन में निवास करते हैं,
इसलिए अपने जीवन का प्रत्येक क्षण श्री राधा-कृष्ण की शरण में व्यतीत करना चाहिए
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति
क्रोध करने से व्यक्ति की बुद्धि मर जाती है अर्थात मूढ़ हो जाती है। इस कारण उसकी स्मृति भ्रमित होती है
इससे पूर्ण बुद्धि समाप्त हो जाती है। बुद्धि नष्ट होने से व्यक्ति खुद का ही नाश कर देता है
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हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:
हे अर्जुन तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाओगे तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और युद्ध विजय कर लोगे तो धरती का सुख प्राप्त होगा. इसलिए उठो हे अर्जुन उठो और निश्चय रूप से युद्ध करो