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जेठ की दुपहरी में पांव जले हैं…

जेठ की दुपहरी में पांव जले हैं...

मधेपुरा. जेठ की पहचान ही साल के सर्वाधिक गर्म महीने से है. शुक्रवार से शुरू होते ही जेठ ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिये हैं. अधिकतम पारा 39 डिग्री सेल्सियस तक उछला, लेकिन लोगों को 50 डिग्री सेल्सियस की गर्मी का एहसास करा दिया. हालांकि धूप व गर्मी में लोगों को सड़क पर निकलने की हिम्मत नहीं हुई और अधिकतर सड़कें वीरान बनी रही. आवश्यक कार्य से बाहर निकलने वाले पूरी तरह ऐहतियात बरतते दिखे. पुरुष छाते या गमछे से बचाव करते दिखे तो युवती व महिलाएं छाते या स्ट्रॉल का सहारा लेती रही. अधिक लगती है प्यास और हो जाती है सर्दी- जेठ की गर्मी का आलम यह है कि एक तो भूख नहीं लगती, दूसरी खाना खाने के बाद वह जल्दी पचता भी नहीं है. भोजन से अधिक रूचि ठंडा पानी पहने की ही होती है और यदि फ्रिज का ठंडा पानी अधिक पी लिया तो, सर्दी का होना तय समझा जाता है. कड़ी धूप में राह चलते लोगों को भी प्यास अधिक लगती है और धूप में होने के तुरंत बाद कोल्डड्रिंक्स या शीतल पेय पी लें, तो सर्दी भी उतनी ही जल्दी दस्तक दे देती है. शरीर को ठंडक देने के लिए आइस्क्रीम भी लोगों की पसंद है, लेकिन यह भी लोगों को बीमार कर रहा है. इन दिनों स्कूली बच्चे व शिक्षक-शिक्षिकाओं भी इसी कारण खूब बीमार पड़ रहे हैं. खौल जाता है टंकी का पानी- टंकी में पानी चढ़ाने के कुछ ही देर बाद वह खौल जाता है. वह पीने के योग्य तो रहता ही नहीं है. स्नान या अन्य किसी काम का नहीं रह जाता है. गर्म और ताजा खाना गर्म लगता है, तो ठंडा खाना अच्छा नहीं लगता है. सीलिंग या टेबुल फैन या फिर कूलर से हवाखोरी कर लोग राहत पाने का प्रयास करते हैं, लेकिन इन दिनों उससे भी गर्म हवा ही निकल रही है. जिनके घर एयर कंडीशन (एसी) लगा है, उन्हें थोड़ी राहत है, लेकिन कमरे से बाहर निकलते ही उन्हें जेठ की तपिश का सामना करना पड़ा है. ऐसी ही स्थिति में समृद्ध परिवार के लोग भी तेजी से बीमार हो रहे हैं. बच्चे व शिक्षक-शिक्षिकाएं परेशान- धूप व गर्मी में स्कूली बच्चे व शिक्षक-शिक्षिकाएं सर्वाधिक परेशान हैं. ग्रीष्मावकाश के बाद 16 मई से स्कूल संचालन की अवधि में किये गये फेरबदल के बाद शिक्षकों को सुबह पौने छह बजे तक और बच्चों को छह बजे तक स्कूल पहुंचने की जल्दबाजी होती है. बच्चों के लिए छुट्टी का समय 12 तो शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिए डेढ़ बजे का समय निर्धारित है. निर्धारित समय पर पहुंचने की बाध्यता में स्कूली बच्चे और शिक्षक या तो भूखे पहुंचते हैं या बिस्कुट-ब्रेड खाकर. ऐसे बच्चों के टिफिन में भी रेडिमेड सामग्री ही भरी जा रही है. छुट्टी के बाद घर वापसी के समय सिर पर तीखी धूप होने से बच्चे व शिक्षक दोनों परेशान हो जाते हैं. वे पसीने से तर-बतर हो घर पहुंचते हैं.

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