संवाददाता, चाईबासाजेष्ठ की शुरुआत में उरांव समुदाय की ऐतिहासिक जतरा पूजा शुक्रवार को आयोजित हुई. पूजा-अर्चना पाहन (पुजारी) फागू खलखो ने सहयोगी पनभरवा (पुजारी) मंगरू टोप्पो संग की. इसके साथ ही समाज के इष्ट देवता, ग्राम देवता की पूजा कर अच्छी वर्षा की कामना की. इस दौरान चाईबासा के सातों अखाड़ा में क्षेत्रीय कमेटी के दिशा-निर्देश के अनुरूप नाच-गान धूमधाम से किया गया. मौके पर मुखिया लालू कुजूर, दुर्गा कुजूर, राजू तिग्गा, खुदिया कुजूर, सीताराम मुंडा, शंभु टोप्पो, राजेन्द्र कच्छप, जगरनाथ लकड़ा, कृष्णा तिग्गा, जगरनाथ टोप्पो, तेजो कच्छप, मथुरा कोया, शंभु तिर्की, कृष्णा कच्छप, बिरसा लकड़ा, रवि तिर्की, बिरसा लकड़ा, बंधन खलखो, दीपक टोप्पो, सुनील खलखो, करमा कुजूर, पिन्टू कच्छप, उमेश मिंज, संजय तिग्गा, नवीन कच्छप आदि मौजूद थे.
विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है जतरा
मालूम हो कि जतरा त्योहार उरांव समुदाय का ऐतिहासिक त्योहार है. इस त्योहार को विजय का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. जब रोहतासगढ़ जो उरांव समुदाय का संपन्न साम्राज्य था, उस समय के उरांवों के राजा उरूगन ठाकुर हुआ करते थे. राज्य की खुशहाली व संपन्नता को देखकर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा राज्य को अपने अधीन कब्जा करने की नियति से तीन बार आक्रमण किया गया, लेकिन तीनों ही बार उन आक्रमणकारियों को पराजय का सामना करना पड़ा. इन तीनों युद्ध में दुश्मनों को पराजित करने में महिलाओं का हाथ था, जिनमें दो महिला सिनगी दाई व कुईली दाई का अहम योगदान था. सभी महिलाएं लड़कों के वेष में युद्ध की थीं. महिलाओं द्वारा तीन बार विजय प्राप्त करने के बाद विजय का प्रतीक मानकर जीत के उपलक्ष्य में जतरा त्योहार मनाया जाने लगा. इस त्योहार में जिस ध्वज का उपयोग किया जाता है (जो नीले रंग की होती है) उस ध्वज के बीच में सफेद वृताकार के बीच तीन सफेद लकीर आज भी जीत के प्रतीक का चिह्न मौजूद है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है