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Lok sabha Chunav: वो शख्सियत जो अब सक्रिय राजनीति में नहीं रहे, दो बार रहे सांसद आज जी रहे एकाकी जीवन

Lok sabha Chunav: एक समय था जब सभी पार्टियां अपने नीति, सिद्धांत एवं कार्यक्रमों के आधार पर चुनाव लड़ती थीं, लेकिन आज नीति एवं सिद्धांत धीरे-धीरे गौण होते चले गये. राजनीति में अब नेताओं की जाति एवं धर्म की प्रमुखता हो गयी है. अपने नीति, सिद्धांत एवं कार्यक्रमों के आधार पर चुनाव लड़ने वाले मुखिया से लेकर विधायक व सांसद का चुनाव जीतने वाले बेगूसराय जिले की राजनीति के भीष्म पितामह कहे जाने वाले रामजीवन सिंह से प्रभात खबर के लिए विपिन कुमार मिश्र ने खास बात की.

Lok sabha Chunav: बेगूसराय. पूर्व सांसद रामजीवन बाबू कहते हैं कि पहले चुनाव लड़ने में बहुत कम खर्च होता था. आज चुनाव लड़ने में काफी पैसे की आवश्यकता होती है. गरीब व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है. जिसका व्यापक स्वरूप आज देश भुगत रहा है. पहले राजनीति में लोग सेवा एवं त्याग की भावना से आते थे. आज राजनीति में लोग पद एवं धन कमाने आते हैं. पहले जमात की राजनीति होती थी आज जाति एवं धर्म की राजनीति होती है. लोगों को ऐसा विश्वास था कि नेताजी हैं तो ईमानदार, चरित्रवान एवं त्यागी जरूर होंगे. आज राजनेताओं पर से लोगों का भरोसा एवं विश्वास कम हो चुका है. रामजीवन बाबू कहते हैं कि मेरी राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1960 में 28 वर्ष की उम्र में मंझौल गांव के मुखिया से हुई. प्रथम बार मुखिया चुनाव 32 वोटों से, तो दूसरी बार 600 वोटों से जीता. 1952 से19 67 तक लोकसभा एवं विधानसभा का चुनाव एक साथ होता था. 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय जीत का लाभ भुनाने के लिए इंदिरा जी ने एक वर्ष पूर्व भी लोकसभा चुनाव करवा दिया. उस दिन से लोकसभा एवं विधानसभा का चुनाव अलग-अलग होने लगा.

पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने में सात हजार रुपये खर्च आया

रामजीवन बाबू कहते हैं कि सन 1962 ई में मैंने चेरियाबरियारपुर विधानसभा का चुनाव प्रथम बार लड़ा एवं हार गया. प्रथम बार विधानसभा चुनाव लड़ने में मुझे 7000 खर्च आया. साइकिल पर घूम-घूम कर मैं कार्यकर्ताओं के साथ जन संपर्क अभियान चलाता था. टमटम पर माइक से प्रचार होता था. दूसरी बार 1967 में मैं पुनः चुनाव लड़ा. 6000 रुपये चुनाव खर्च आया मैं जीत गया.

पोलिंग पार्टी को गांव के लोग चूड़ा दही खिलाते थे

उस समय पोलिंग पार्टी को खिलाने के लिए देहात में लोग चूड़ा कुटवाते थे एवं दही जमाकर खिलाते थे. कारण उस समय कहीं दुकान या होटल नहीं था. डेढ़ वर्ष में असेंबली भंग हो गया. 1969 के चुनाव में मैं पुनः जीत गया. 1971 में पुनः असेंबली भंग हो गया. 1972 के चुनाव में मैं पुनः जीत गया. 1974 जेपी आंदोलन शुरू होने के साथ ही कर्पूरी ठाकुर, धनिक लाल मंडल, हुकुमदेव नारायण यादव, सच्चिदानंद सिंह, पूरन चंद ने एक साथ विधानसभा में विधायक पद से इस्तीफा दे दिया तथा जेपी आंदोलन में कूद गये. 100 से अधिक विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. 1975 में श्रीमती गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया था. सभी विरोधी दल के नेता जेल चले गए. मैं भी जेल चला गया.

बिना खर्च के लोकसभा चुनाव जीते रामजीवन बाबू

रामजीवन बाबू बताते हैं कि 1977 का चुनाव में मैने हजारीबाग जेल से ही बलिया लोकसभा क्षेत्र के लिए नामांकन किया था. चुनाव के 10- 12 दिन पूर्व जेल से छूटकर आया था. बिना खर्च का मैं लोकसभा चुनाव जीता. किसने प्रचार किया मैं यह भी नहीं जान सका. 1980 के जनवरी में पुनः चुनाव हुआ. मेरी हमारी पार्टी टूट गयी. सभी नेता हार गये मैं भी हार गया. सूरज बाबू चुनाव जीते.

चुनाव लड़ने में दो बीघा जमीन लग गया बंधक

रामजीवन बाबू कहते हैं कि चुनाव लड़ने में मेरी दो बीघा जमीन बंधक लग गयी. पिताजी का श्राद्ध तथा पारिवारिक जिम्मेदारी संभालने के कारण मैं राजनीति से 80 प्रतिशत निष्क्रिय होकर घर संभालने में लग गया. घर संभालने के बाद बंटवारा हो गया. बेटी की शादी की.1985 में विधानसभा का चुनाव मैं हार गया. 1990 में विधानसभा का चुनाव जीता तथा लालूजी की सरकार में मंत्री बना. 1995 में विधानसभा का चुनाव हुआ. पुनः जीता एवं मंत्री बना. 1997 में शरद यादव एवं लालू यादव के बीच विवाद के कारण पार्टी टूट गयी. पुनः 1999 का लोकसभा चुनाव लड़ा एवं जीता. 2004 में गैर राजनीतिक व्यक्ति से चुनाव में हार के बाद मुझे राजनीति से विरक्ति हो गयी.

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कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्रित्व काल में कृषि मंत्री रहे रामजीवन बाबू

92 वर्ष की उम्र में रामजीवन बाबू राजनीति को याद करते हुए कहते हैं कि मैं दो बार मुखिया, पांच बार विधायक, दो बार सांसद, तीन बार मंत्री बना. सर्वप्रथम 1971 में कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्रित्व काल में मैं कृषि राज्य मंत्री बना. इसके अलावा लालू जी के मुख्यमंत्रित्व काल में कैबिनेट मंत्री बना. कृषि मंत्री एवं पशुपालन मंत्री के अलावे अन्य कई विभागों की जिम्मेदारी भी मिली. इसके अतिरिक्त राज्य पार्टी का अध्यक्ष दो बार रहा. ऑल इंडिया के अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडीज और मैं तीन बार उपाध्यक्ष रहा. बलिया लोकसभा क्षेत्र का में प्रथम एवं अंतिम संसद रहा. पार्टियों का नाम का नाम बदलते रहा लेकिन मैंने समाजवाद नहीं छोड़ा. मेरी मान्यता है कि पिता एवं पार्टी बदलने की चीज नहीं होती है.

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