दीपक राव, भागलपुर: महर्षि मेंहीं आश्रम, कुप्पाघाट स्थित ऐतिहासिक गुफा को संरक्षित कराने का काम शुरू हो गया है. इसे लेकर तैयारी पूरी कर ली गयी. अखिल भारतीय संतमत सत्संग महासभा के तहत स्वामी प्रमोद बाबा गुफा को संरक्षित करने पूरा आर्थिक सहयोग देंगे. इस गुफा का ऐतिहासिक महत्व है और ये काफी दूर तक गयी है. ये गुफा भूलभूलैया सी दिखती है. अब इसके संरक्षण का काम शुरू हुआ है.
महर्षि मेंहीं ने साधना के बल किया आत्मसाक्षात्कार
महासभा के महामंत्री दिव्य प्रकाश ने बताया कि कुप्पाघाट का मूल अर्थ नदी के किनारे की गुफा होता है. इस गुफा का उपयोग संतमत के संस्थापक सद्गुरु महर्षि मेहीं परमहंस ने ध्यान के लिए किया था. मार्च 1933 से नवंबर 1934 तक इस गुफा में कठिन तपस्या उन्होंने की थी. यह गुफा आज भी लोगों के लिए एक रहस्य और कुप्पाघाट आस्था का केंद्र है. महर्षि को इसी गुफा में साधना के दौरान ईश्वर से साक्षात्कार हुआ. उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. साधना के बल पर आत्मसाक्षात्कार किया. कुप्पाघाट बाद के सालों में महर्षि मेहीं आश्रम के रूप में परिवर्तित हो गया. अब यह देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में फैले करोड़ों फॉलोअर्स के आस्था का केंद्र बन गया है. यह एक ऐतिहासिक गुफा है.
पेड़ों की जड़ाें व बारिश के पानी से हुआ प्रतिकूल असर
महामंत्री दिव्य प्रकाश ने बताया कि ऐतिहासिक महत्व वाला गुफा भागलपुर ही नहीं, बल्कि देश के लिए धरोहर है. गुफा के आसपास लगे पेड़ व ऊपर पर बारिश का प्रतिकूल असर देखने को मिल रहा था. पेड़ों की जड़ें अंदर तक पहुंच रही थी और नीचे नमी के कारण मिट्टी गिरने लगी थी.
10 लाख की राशि खर्च कर होगी संरक्षित
स्वामी प्रमोद जी महाराज की निजी राशि से गुफा के ऊपरी एवं बाहरी हिस्सों को संरक्षित करने के लिए फोम कंक्रीट ढलाई एवं अलकतरा सीट का इस्तेमाल किया जायेगा. इसे लेकर कार्य प्रगति पर है. लगभग 10 लाख की राशि खर्च होने का अनुमान है. पटना के विशेषज्ञ ईं उज्जवल कुमार का मार्गदर्शन मिल रहा है. बालू, गिट्टी, सिमेंट की ढलाई काफी वजनदार ना हो. गुफा पर अनावश्यक पर दबाब नहीं बढ़े. इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है. इसलिए छः इंच मिट्टी हटाकर फोम कांक्रीट की ढलाई और अलकतरा शीट से इसे पूरी तरह पैक कर दिया जायेगा. फिर हल्की मिट्टी डालकर घास लगा दिया जायेगा.
गुफा का रहस्य : भूलभूलैया सी दिखती है गुफा
इस गुफा को अक्सर बंद ही रखा जाता है. यह गुफा काफी रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए है. यह गुफा मुंगेर तक गयी है और अंदर प्रवेश करने के बाद लोग इसे आसानी से नहीं समझ पाते हैं कि कितनी जगहों पर ये अलग-अलग दिशा में निकली है. एक तरह यह भूलभूलैया ही है. बताया जाता है कि एक रास्ता इस गुफा के अंदर से विक्रमशिला तक भी जाता है. हालांकि इसका कोई प्रमाण नहीं है कि ये गुफा कब और किसने बनायी. इस कारण इस सुरंग की महत्ता काफी है. भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के भी ध्यान करने की चर्चा है. जबकि इस गुफा के अंदर प्रवेश करने पर कोई घुटन वगैरह महसूस नहीं होता है. मिट्टी की सुरंग है. लेकिन अभी तक पूरी तरह ठीक है. हर जगह स्वच्छ है. भूकंप का भी प्रभाव इस गुफा पर नहीं होता है. फिर भी यहा कई महान विभूतियों के यहां रहने के प्रमाण मिले हैं.