पूसा : डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर पादप रोग व नेमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष सह अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ एसके सिंह ने कहा कि लीची उत्पादक किसानों को लीची में बढ़ती सनबर्न एवं फल फटने की समस्या से बचाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इस साल सन वार्निंग एवं फ्रूट क्रैकिंग से लीची के फल का 25 से 30 फीसदी तक नुकसान हो सकता है. जिसका कारण अप्रैल माह में 40 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक तापमान का कई दिनों तक होना है. उन्होंने कहा कि यह तापमान अधिक रहने के कारण लीची फल के छिलके की कोशिकाएं सूर्य की किरण के वजह से जल गया है. वहीं फल तुड़ाई के समय बारिश होने से फल फटने की समस्या ज्यादा बढ़ गया है. इसका मुख्य कारण फल के अंदर के गुदा का वर्षा के पानी की वजह से बढ़ना है. जबकि छिलका नहीं बढ़ सका क्योंकि उसकी कोशिकाएं सूर्य की तेज किरणों की वजह से पहले मर गया था. इससे बचाव से जुड़े वे अपनी सुझाव देते हुए कहा कि साल दर साल लीची के बाग में तापमान में वृद्धि न हो इसके लिए ओवर हेड स्प्रिंकलर से सिंचाई करने की सलाह किसानों को दिया. कहा कि दिन में जब भी तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाये, उस दिन कम से कम चार घंटे ओवर हेड स्प्रिंकलर से सिंचाई कर लीची बाग के तापमान को पांच डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि फल के विकास की पूरी अवधि में हल्की हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए. जिससे बाग की मिट्टी में नमी बनी रहती है. लेकिन किसान को यह ध्यान रखना चाहिए कि पेड़ के आसपास जलजमाव न हो.
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