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यंग एन्टरप्रेन्योर आदिवासी युवा उज्जवल देमता करते हैं ट्रेडिशनल स्वाद का कारोबार

उज्जवल देमता ने 2 साल पहले होम मेड चॉकलेट बनाने का स्टार्टअप शुरू किया था. महज 2 साल में ही उन्‍होंने अपने हुनर के दम पर अपना बिजनेस को शहर से लेकर गांव तक पहुंचा दिया है.

success story:झारखंड जमशेदपुर के बागुनहातु क्रॉस रोड नंबर-5 के रहने ले 40 साल के यंग एन्टरप्रेन्योर उज्जवल देमता ने 2 साल पहले होम मेड चॉकलेट बनाने का स्टार्टअप शुरू किया था. महज 2 साल में ही उन्‍होंने अपने हुनर के दम पर अपना बिजनेस को शहर से लेकर गांव तक पहुंचा दिया है. उनके ट्रेडिशनल स्वाद चॉकलेट का क्रेज कोल्हान में ही नहीं, बल्कि राजधानी रांची में भी सिर चढ़ चढ़कर बोल रहा है. कोल्हान की धरती पर मेनेसा चॉकलेट ने अच्छा धाक जमा लिया है. उनके होम मेड चॉकलेट शादी, बर्थडे व पार्टी समेत अन्य अवसरों में लोगों के बीच प्रेम व मिठास को बांट रहा है. उनका लक्ष्य है कि अगले डेढ़ साल में अपनी उत्पादन क्षमता मौजूदा स्तर से दाेगुना करेंगे. इसके लिए वे लोगों की एक बड़ी चेन तैयार कर रहे हैं. ताकि वे मार्केट की डिमांड को पूरा कर सके.अपने इस प्रोडक्ट को लेकर उज्जवल देमता हमेशा चर्चा का केंद्र बिंदु बने रहते हैं. यकीनन शून्य से शिखर पर पहुंचने वाले उज्जवल देमता की कहानी बेहद दिलचस्प है.
कुछ अलग करने की चाह में चॉकलेट कारोबार में उतरे
उज्जवल देमता बताते हैं कि 2 साल पहले उनके मन में ख्याल आया था कि कुल अलग तरीके का बिजनेस किया जाये, जिससे थोड़ी बहुत आमदनी भी हो और पारंपरिक पकवान का टेस्ट भी घर-घर पहुंच जाये. उनका सोच यह था कि कई पारंपरिक पकवान है, जो बहुत ही स्वादिष्ट होता है. लेकिन वे उसका टेस्ट केवल पर्व त्योहार में चख सकते हैं. नयी पीढ़ी तो पारंपरिक चीजों से दूर भागते नजर आते हैं. ऐसे मेें उन्होंने पारंपरिक पकवान के स्वाद को हर दिन का स्वाद बनाने की सोची. फिर क्या था उसने मेनेसा चॉकलेट बनाकर इसका स्वाद की कड़ी को आगे बढ़ाने का काम शुरू कर दिया. मजे की बात तो यह है कि पारंपरिक पकवान का फ्लेवर मार्केट में भी चल पड़ा.
उज्जवल अपनी पत्नी सुशीला नाग के सहयोग से चलाते हैं कारोबार
उज्जवल देमता अपनी पत्नी सुशील नाग के सहयोग से चॉकलेट का कारोबार चलाते हैं. चॉकलेट कारोबार की परिकल्पना भले ही उज्जवल देमता ने देखा हो. लेकिन मेनेसा चॉकलेट की असल मालकिन सुशीला नाग ही है. सुशीला ने ही मेनेसा चॉकलेट कारोबार के लिए फूड लाइसेंस लिया है. सुशीला नाग पेशे से नर्स है. वह जमशेदपुर मेहरबाई टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पीटल में स्टॉफ नर्स है. उसे अपने कामकाज से फूर्सत नहीं मिलती है. इस वजह से उज्जवल देमता ही सारा कारोबार को देखते हैं. लेकिन उसे विभिन्न कामाें में उसका हाथ जरूर करती है.
होम मेड चॉकलेट है लोगों में अच्छा क्रेज
उज्जवल देमता बताते हैं कि वे अपने कारोबार के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजी-रोजगार उपलब्ध कराना चाहते हैं. ताकि उनके साथ-साथ अन्य लोगों का भी पारिवारिक आर्थिक स्थिति मजबूत हो. शुरूआती दौर में ख्याल आया कि मशीन लगाकर कारोबार को झटपट बड़ा कर लिया जाये. लेकिन उन्हें लगा कि यदि वे मशीन लगाते हैैं तो कारोबार से केवल उसे ही मुनाफा होगा. लेकिन वे नहीं चाहते थे कि ऐसा कोई कारोबार करें जिससे उनका ही घर परिवार चले. वे बताते हैं कि उसने काफी सोच समझकर चॉकलेट का नाम मेनेसा रखा है. मेनेसा का अर्थ ही है एक-दूसरे के सहयोग से अर्थात मिलजुलकर है. मेनेसा समूह को दर्शाता है. मशीन को स्थापित करने से समूह का भाव खत्म हो जायेगा. इसलिए उसने होम मेड व्यवस्था को ही प्राथमिकता दिया.
महिला समूहों के साथ मिलकर कर रहे काम
उज्जवल बताते हैं कि ट्रेडिशनल स्वाद को बनाये रखने के लिए उसने होम मेड चॉकलेट को प्राथमिकता दिया. उनका मानना है कि ट्रेडिशनल स्वाद केवल होम मेड माध्यम से ही मिल सकता है. मशीन में बनी चीजें मीठा स्वाद दे सकते हैं लेकिन उसमें ट्रेडिशनल वाली चीज नहीं रह जाती है. लोगों को ट्रेडिशनल स्वाद चखाने की मकसद से वे कोल्हान के विभिन्न महिला समूह के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. वे महिला समूह को चॉकलेट बनाने की सारा विधि की ट्रेनिंग देते हैं. फिर उन्हेें रॉ-मेटेरियल भी उपलब्ध करा देते हैं. महिला समूह को अपना एक भी पैसा इसमें इंवेस्ट नहीं करना होता है. महिला समूह अपने हाथों से चॉकलेट बनाती हैं और पैकेजिंग करती है. फिर उस चॉकलेट को बाजार तक पहुंचाने का सारा काम उज्जवल ही करते है. महिला समूह को काम के एवज में अच्छी खासी आमदनी हो रही है.
पांच जनजातीय भाषाओं में निकालते हैं ट्राइबल कैलेंडर
उज्जवल देमता भले ही शहर में रहते हैं. उनका मन सुदूर गांव में बसता है. वे अपनी भाषा, संस्कृति, लिपि व माटी से अथाह प्रेम करते हैं. उनके हरेक काम में माटी की खुशबू महकती है. वे अपनी पूर्वजों की दिये धरोहर को लेकर ही सफलता की कहानियों को लिखना चाहते हैं. वे हर साल एक कैलेंडर निकालते हैं. जिसका नाम है ट्राइबल कैलेंडर. यह आदिवासी जनजातीय समूह की पांच भाषाओं को प्रतिनिधित्व करता है. इनमें हो, संताल, मुंडारी, कुडूख व पंच परगनिया है. वे चाहते हैं कि लोग अपनी-अपनी परंपरा व संस्कृति से जुड़े रहे. लोग अपनी मातृभाषा व माटी से प्रेम करे. इसी उद्देश्य को केंद्र बिंदु मानकर ही कैलेंडर में तसवीरें भी रहती है. यह कैलेंडर पांच राज्यों में बिकता है.

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