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धड़ल्ले से काटे जा रहे पेड़. इमारतों की बढ़ रही संख्या

चिलचिलाती धूप व तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की जा रही है. जिसकी वजह से जनजीवन बेहाल है

सुपौल. चिलचिलाती धूप व तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की जा रही है. जिसकी वजह से जनजीवन बेहाल है. लोग गर्मी व धूप से परेशान होकर ईश्वर को ही कोसने लगे हैं. लेकिन ऐसे लोग यह कभी नहीं सोचते हैं कि इन सारी समस्याओं के लिए प्रकृति नहीं, हम भी जिम्मेदार हैं. कल तक गांव सा दिखने वाला सुपौल जिला अब धीरे-धीरे शहर सा दिखने लगा है. कल तक चारों ओर हरे-भरे पेड़ व जगह-जगह तालाब दिखता था. वर्तमान समय में हरे-भरे पेड़ व तालाब की जगह आलीशान भवन नजर आ रहे हैं. यही कारण है कि अब कोसी के इस इलाके में भी दिनों-दिन यहां की हरियाली में कमी देखी जा है. धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं. इमारतों की संख्या बढ़ रही है. घरों में एसी का इस्तेमाल बढ़ रहा है. पक्की सड़कों का विस्तार तेज़ी से हो रहा है. यही वजह है कि तापमान भी उसी रफ्तार में बढ़ रहा है. जानकार बताते हैं कि वर्ष 1990 से पूर्व सुपौल जिले में एनएच तो दूर पीडब्ल्यूडी की सड़कें महज 150 किमी थी. लेकिन वर्तमान समय में 850 किमी पीडब्ल्यूडी और 250 किमी एनएच की सड़कें सुपौल जिले में बनी है. इन सड़कों को बनाने में हरे-भरे पेड़ भी काटे गये होंगे. इसके अलावा लोगों ने निजी प्रयोग के लिए पेड़ों की कटाई भी की जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण है. पेड़ न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं. वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही हैं, वह काफी चिंतनीय है. पेड़ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्रकृति यंत्र के रूप में कार्य करते हैं और उनकी समाप्ति के साथ हम वह प्राकृतिक यंत्र भी खो रहे हैं. यही कारण है कि कोसी के इस इलाके में अचानक मौसम का रुख तेजी से बढ़ने लगा है. अगर समय रहते सचेत नहीं हुए तो गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है.

प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से पैदा हो रही समस्या

जल विशेषज्ञ भगवान जी पाठक ने कहा कि जब कोसी में तटबंध नहीं थे, तब भी बाढ़ आती थी. तब बड़ी नदियों का पानी छोटी सहायक नदियों, पोखरों और इनसे जुड़ी झीलों में चला जाता था, जिससे बाढ़ का प्रभाव कम हो जाता था. गर्मियों में बड़ी नदी में पानी घटता तो ये छोटी नदियां और पोखर बड़ी नदियों को पानी वापस कर देते थे. यह प्राकृतिक विनिमय था. नैसर्गिक व्यवस्था के साथ छेड़खानी ने समस्याएं पैदा की है. हमारे जल-प्रबंधन को प्रकृति-सम्मत और विज्ञान-सम्मत होना चाहिए, हमारा नगर-प्रबंधन की व्यवस्था भी ठीक नहीं है.

29 व 30 अप्रैल को अधिकतम तापमान था 43 डिग्री सेल्सियस

इस साल का सबसे अधिक तापमान 29 एवं 30 अप्रैल को रिकॉर्ड किया गया. अगवानपुर कृषि विज्ञान केंद्र के मौसम वैज्ञानिक देवन कुमार चौधरी ने बताया कि 29 एवं 30 अप्रैल को अधिकतम तापमान 43 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया. जबकि न्यूनतम तापमान 22.05 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया. उन्होंने बताया कि पिछले पांच साल में उक्त तिथि को सबसे अधिकतम तापमान रहा. लोगों को हिट वेव के कारण बेवजह घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए. धूप से बचकर रहना चाहिए. कहा कि मंगलवार को अधिकतम तापमान 38 डिग्री व न्यूनतम 26.06 डिग्री दर्ज किया गया.

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