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भीषण गर्मी का गहराता संकट

धरती का तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह समूची दुनिया के लिए खतरनाक संकेत है. बीते नौ सालों ने तो धरती के सर्वाधिक गर्म होने का रिकॉर्ड कायम किया है. यह भी कि दिन-ब-दिन, महीने दर महीने, साल दर साल तापमान वृद्धि के रिकॉर्ड टूट रहे हैं.

आजकल नौतपा के कहर और लू की भयावहता से लोग हर जगह परेशान हैं. नौतपा साल के सबसे गर्म नौ दिनों को कहते हैं, जिसका समय 25 मई से दो जून तक माना जाता है. इस दौरान सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं. हीटवेव या उष्ण लहर की तीव्रता में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, जिससे हर साल दुनिया भर में 1.53 लाख से ज्यादा लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं. जहां तक नौतपा का सवाल है, बीते 12 सालों में इस दौरान सबसे ज्यादा औसत तापमान 2018 में 43.8 डिग्री सेल्सियस रहा, जबकि 2019 में 43.7, 2015 में 43.2, 2012 में 42.7, 2014 में 42.3, 2013, 2017 और 2020 में 41.4, 2016 में 41.1, 2022 में 41, 2021 में 40.2, 2023 में 39.2 डिग्री सेल्सियस रहा.

ऐसा लगता है कि इस बार नौतपा का यह रिकॉर्ड भी टूटेगा. इस बार इसके जून माह के दूसरे हफ्ते तक रहने की आशंका व्यक्त की जा रही है. धरती का तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह समूची दुनिया के लिए खतरनाक संकेत है. बीते नौ सालों ने तो धरती के सर्वाधिक गर्म होने का रिकॉर्ड कायम किया है. यह भी कि दिन-ब-दिन, महीने दर महीने, साल दर साल तापमान वृद्धि के रिकॉर्ड टूट रहे हैं.

आजकल देश का बड़ा हिस्सा झुलसा देने वाली गर्मी की भीषण चपेट में हैं. बिजली की मांग पूरी न होने के कारण फॉल्ट बढ़ रहे हैं और ट्रांसफॉर्मर जल रहे हैं. बिजली कटौती से मुश्किल और बढ़ रही है. मौसम विज्ञान विभाग ने अपने रेड अलर्ट में गर्मी से बचने और शरीर में पानी की कमी न होने देने की सलाह दी है. बर्लिन स्थित मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट इन ग्लोबल कॉमंस एंड क्लाइमेट चेंज का अध्ययन संकेत देता है कि आने वाले दिनों में तापमान में कमी की उम्मीद बेमानी है.

अध्ययन के अनुसार, धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के प्रयास बेहद कठिन हैं और यदि योजनाओं को पूरी तरह लागू भी कर दिया जाए, तो भी कार्बन की वार्षिक मात्रा 2030 तक 0.5 गीगाटन और 2050 तक 1.9 गीगाटन बढ़ेगी, जबकि 2050 तक कम से कम 3.2 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन कम होना चाहिए. ऐसे में पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना नामुमकिन है.

कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उल्फ बंटगेन का मानना है कि यह तब तक जारी रहेगा, जब तक कि हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी नहीं करते. सिडनी विश्वविद्यालय के अध्ययन की मानें, तो धरती के गर्म होने के पीछे मंगल ग्रह है, जिसका गुरुत्वाकर्षण बल धरती को सूर्य की ओर खींचता है. जर्मन और स्विस वैज्ञानिक बढ़ते तापमान के लिए सागर के नीचे दबी मीथेन को एक बड़ा कारण मानते हैं. एक नयी रिपोर्ट के अनुसार, 1945 में अरब सागर में 8.1 तीव्रता का एक बड़ा भूकंप आया था.

उस समय समुद्र तल के नीचे गैस के एक विशाल भंडार में विस्फोट हुआ था. तब से करीब 74 लाख घनमीटर मीथेन बाहर निकली है. ‘नेचर’ पत्रिका की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी साइबेरियाई सागर के तट से 50 अरब टन मीथेन निकली है. यह इलाका आर्कटिक महासागर का हिस्सा है और ग्लोबल वार्मिग का सबसे ज्यादा असर यहीं हुआ है.
पिछले दस महीनों से लगातार धरती के तापमान में बढ़ोतरी से वैज्ञानिक चिंतित हैं कि हमारा ग्रह एक नये युग में प्रवेश कर रहा है.

उनकी चिंता यह भी है कि यदि साल के अंत में तापमान में गिरावट नहीं हुई, तो यह ग्रह किस दिशा में जायेगा, यह कहना बहुत मुश्किल है. तापमान में बढ़ोतरी के कारणों में अल नीनो भी है. साथ ही, ग्रीनहाउस गैसों और कार्बन का उत्सर्जन, सल्फर डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा, वनों का विनाश, जीवाश्म ईंधन का दहन आदि की भी भूमिका है. अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया विश्वविद्यालय के विज्ञानियों के मुताबिक सदी के अंत तक अत्यधिक गर्मी से 1.5 करोड़ लोगों की मौत हो जायेगी.

पिछले कुछ वर्षो में हीटवेव ने लगभग हर महाद्वीप को प्रभावित किया है. जंगल में आग लगने से हजारों लोगों की जान गयी है. जलवायु विशेषज्ञों के सर्वे की मानें, तो‌ वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ेगा. ऐसा होने पर बाढ़, विनाशकारी गर्मी और तूफान आयेंगे. डॉ हेनरी वाइसमैन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन में डिग्री का हर दसवां हिस्सा बहुत मायने रखता है. उस स्थिति में आप सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को देखते हैं.

अगर तापमान तीन डिग्री तक पहुंचा, तो दुनिया के कई शहर समुद्र में डूब जायेंगे. हिंद महासागर का गर्म होना केवल सतह तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समुद्र में गर्मी का भंडार भी बढ़ रहा है. इससे चक्रवात और भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ेंगीं. इससे वायुमंडल गर्म होगा तथा समुद्री जैव-विविधता पर भी खतरा बढ़ेगा.

बढ़ रही गर्मी के कारण दुनियाभर में दो अरब तथा भारत में साठ करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है. यदि तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है, तो भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा. भारत, ब्राजील, चिली, जर्मनी और केन्या की महिलाओं और वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने कम बच्चे पैदा करना चुना है.

इन बदलावों का असर हमारी अगली पीढ़ी पर भी पड़ेगा. एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि अगले कुछ दशकों में करोड़ों लोग इतने अधिक तापमान का सामना करेंगे, जो अभी तक केवल सहारा जैसे गर्म मरुस्थल में अनुभव किया जाता रहा है. केवल एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से ही दुनिया में विस्थापन की समस्या 10 गुना बढ़ सकती है. इस दशक के अंत तक 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर औसत वार्षिक तापमान पहुंच जायेगा. यह कई बीमारियों के साथ-साथ समय पूर्व मृत्यु और विकलांगता का कारण हो सकता है.

तापमान बढ़ने से वाष्पीकरण की दर में वृद्धि होने और इससे मिट्टी की नमी कम होने से कई क्षेत्र सूखे का सामना करेंगे. नतीजतन फसलों के पैदावार में कमी आयेगी, जिससे खाद्य असुरक्षा, गरीबी, बेरोजगारी और बाढ़ का खतरा बढ़ेगा. जलाशयों में पानी कम होने और भूजल का स्तर गिरते जाने से जल संकट गहरायेगा. इसलिए जरूरी है कि हम सतर्क रहें, अधिकाधिक वृक्षारोपण करें, प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करें.

प्लास्टिक का उत्पादन भी घटाना होगा. स्वच्छ ऊर्जा को प्रमुखता देनी होगी और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा. सबसे बड़ी बात यह कि हमें प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना होगा. उसकी रक्षा जीवन का ध्येय बनाना होगा और प्रकृति प्रदत्त संसाधनों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहना होगा. तभी धरती बची रह पायेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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