झारसुगुड़ा. राज्य सरकार ने चुनाव से पहले हीराकुद के विस्थापितों को जमीन का पट्टा प्रदान करने की घोषणा की थी. इसके लिए बड़े-बड़े कार्यक्रम भी आयोजित कर वाहवाही लूटी गयी. लेकिन चलित वर्ष रवि धान की खरीद शुरू होने के बाद इसकी सत्यता सामने आयी. अभी तक हीराकुद जल भंडार की सूखी जमीन पर रवि धान की खेती करने वाले 900 किसानों को उनकी जमीन का पट्टा नहीं मिला है और ना ही उनको धान की बिक्री के लिए अनुमति दी गयी है. इससे पहले भी उक्त अंचल के डेढ़ हजार से अधिक किसान अपना धान नहीं बेच पा रहे थे. चलित वर्ष भी यही हाल है.
इस वर्ष केवल 1132 किसान धान बेचने के लिए हुए पंजीकृत
चलित वर्ष कुल 1132 किसान ही धान बेचने के लिए पंजीकृत हुए थे. जिसने सभी को चकित किया था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वर्ष कुल 1800 किसान पंजीकृत थे. चलित वर्ष जिन किसानों को पट्टा दिया गया, उन्हें धान बेचने के लिए पंजीकृत क्यों नहीं किया गया, यह किसी को समझ नहीं आ रहा है. वहीं जांच के समय पूर्व वर्ष की तरह इस बार भी रवि धान की खेती करने वाले 900 किसान अपना धान नहीं बेच पा रहे हैं. इनमें से झारसुगुड़ा ब्लॉक के एक, लखनपुर ब्लॉक के सात आरआइ सर्कल के अंतर्गत आने वाले 40 गांव के किसान शामिल हैं. इसमें लखनपुर ब्लॉक के 19 खंड मौजा, पिथिंडा, लुहाबगा, कुसेमेल, बड़धरा, आमापाली, कदमघाट, बड़सेनपाली, रेमता, सरधा, सागर पाली, चिखली, सुखासोड, सेमलिया, महदा, केडईकेला, धुलंडा व दलगां के किसान शामिल हैं.
पट्टा पाने से वंचित रह गये कई विस्थापित
सरकार ने हीराकुद डैम के लिए उक्त किसानों से उनकी जमीन ली थी. बाद में उक्त गांवों का सर्वे कर सेटलमेंट में पट्टा वितरण किया गया. लेकिन अनेक विस्थापित पट्टा पाने से वंचित रह गये हैं. इसी कारण हीराकुद जल भंडार की सूखी जमीन में रवि धान की खेती करने वाले किसान हताश व निराश हैं. उक्त सभी सूखी जमीन वर्तमान सरकार के जलसंपदा विभाग के पास है. इसके बाद भी उनका धान नहीं खरीदा जा रहा है. इसी कारण हीराकुद डैम से विस्थापित सैकड़ों किसान अपना धान अति कम मूल्य पर छत्तीसगढ़ के मिलर्स को बेचने को मजबूर होते हैं. इस संबंध में जब अतिरिक्त जिलाधीश किशोर चंद्र स्वांई से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि पट्टा वितरण के समय लखनपुर गांव के रंपालुगा गांव को पट्टा नहीं मिला था. उन्होंने कहा कि चलित वर्ष कोई भी किसान अपना धान को बेचने से वंचित नहीं होगा. जिनका पट्टा नहीं है वह भी कैसे अपना धान आराम से बेच सकेंगे. इसके लिए प्रयास जारी है.
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