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जिले में ढाई हजार टीबी मरीजों के लिए चार माह से दवा उपलब्ध नहीं, एमडीआर होने की आशंका

जिले में ढाई हजार टीबी मरीजों के लिए चार माह से दवा उपलब्ध नहीं, एमडीआर होने की आशंका

प्रभात खबर पड़ताल फोटो सिटी में टीबी मरीज नामक- टीबी मरीजों के लिए सरकारी अस्पतालों से चार तरह की नि:शुल्क दवा मिलती थी गौतम वेदपाणि , भागलपुर भारत सरकार ने देश से 2025 तक ट्यूबर कुलोसिस यानी टीबी बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन टीबी मरीजों को इलाज के लिए दवा उपलब्ध नहीं हो रही है. जिले में इस समय करीब ढाई हजार मरीज हैं. यह मरीज बीते चार माह से दवा के लिए सरकारी अस्पतालों का चक्कर काटते-काटते थक गये हैं. दरअसल टीबी मरीजों के लिए सरकारी अस्पतालों से चार तरह की नि:शुल्क दवा मिलती थी. लेकिन मजबूरीवश कुछ मरीजों को बाजार से महंगी दवा खरीदकर इलाज कराना पड़ रहा है. वहीं अधिकांश गरीब मरीज दवा का सेवन नहीं कर पा रहे. गुरुवार को मायागंज अस्पताल के ओपीडी के टीबी एंड चेस्ट विभाग में दर्जनों लोग टीबी की जांच व इलाज के लिए आये. ओपीडी में टीबी मरीजों का इलाज कर रहे रेस्पेरेटरी एंड टीबी विभाग के एचओडी डॉ शांतनु घोष ने बताया कि जिला स्वास्थ्य समिति की ओर से मायागंज अस्पताल को दवा उपलब्ध कराने का नियम है. इनमें आइसोनियाजिड, रिफामपीसीन, इथामबिटोल व पाइराजिनामाइड दवा है. बीते चार माह से हमें दवा नहीं मिली है. मायागंज अस्पताल से जांच में मिले टीबी मरीजों का रजिस्ट्रेशन कर एक सप्ताह की दवा देने का नियम है. उसके बाद रोगी निकट के सरकारी अस्पताल से दवा ले सकता है. शिवनारायणपुर निवासी 24 वर्षीय टीबी मरीज ने बताया कि इलाज के नाम सिर्फ जांच व डॉक्टर की सलाह मिल रही है. लेकिन दवा का अतापता नहीं है. वहीं सबौर के रानीतालाब से इलाज के लिए आयी 60 वर्षीय महिला ने बताया कि चार माह पहले डॉक्टर ने बताया कि आपको टीबी हो गया है. इस दौरान एक बार भी दवा नहीं मिली है. बिना दवा के कहीं टीबी मरीजों को एमडीआर न हो जाये : रेस्पेरेटरी एंड टीबी विभाग के एचओडी डॉ शांतनु घोष ने बताया कि अगर कोई टीबी मरीज दवा का सेवन नहीं करता है तो उसे एमडीआर टीबी होने की आशंका रहती है. मायागंज अस्पताल स्थित कल्चर एंड डीएसटी लैब की जांच प्रक्रिया रुकी हुई है. ऐसे में टीबी मरीजों का एमडीआर जांच भी प्रभावित हो रहा है. उन्होंने बताया कि एमडीआर टीबी के मरीजों के लिए काबेडक्विलिन व डेलानामाइट दवा उपलब्ध है. दोनों दवा के छह माह के डोज की कीमत सात लाख रुपये हैं. इस दवा के सेवन से एमडीआर से मौत का प्रतिशत कम होकर तीन रह गया है. 2023 में मायागंज अस्पताल में एमडीआर टीबी के 450 मरीजों का इलाज शुरू हुआ. इनमें से महज 15 मरीजों की ही मौत हुई. कम संसाधन के बावजूद मायागंज अस्पताल में टीबी व एमडीआर मरीजों का सबसे बेहतर इलाज हो रहा है. जिले के 20 प्रतिशत टीबी मरीजों की पहचान नहीं : बीते दिनों आइएमए भवन में टीबी पर आयोजित वर्कशॉप में जानकारी दी गयी थी कि भागलपुर जिले में 2022 में जांच के बाद सरकारी अस्पताल में 3305 व प्राइवेट क्लिनिक में 4070 टीबी मरीज की पहचान हुई. 2023 में सरकारी अस्पताल में 3259 व निजी क्लिनिक में 4123 मरीज मिले. जिले में अबतक 80 प्रतिशत मरीजों की पहचान हुई है, जबकि 20 प्रतिशत मरीजों को ढूंढना शेष है. दवा खरीदने का प्रस्ताव भेजा गया : जिला यक्ष्मा पदाधिकारी जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ दीनानाथ ने बताया कि पटना मुख्यालय से दवा की आपूर्ति नहीं हो रही है. दवा के लिए मुख्यालय पत्र लिखा गया है. वहीं स्थानीय स्तर से दवा की खरीद की जायेगी. पूर्व में शेष बची दवा को टीबी मरीजों को दिया जा रहा है. कुछ अस्पतालों से दवा खत्म होने की जानकारी मिली है. ————————- टीबी फैक्ट – भारत में एक लाख जनसंख्या पर 199 टीबी मरीज हैं. जबकि दुनियां का औसत 133 है. – टीबी से मल्टी ड्रग रसिस्टेंट एमडीआर होने और टीबी से मरने वालों में भारत दुनियां में पहले स्थान पर है. – 2025 तक देश से टीबी बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य है, एचआइवी मरीजों में टीबी होने की आशंका – दुनियां के 27 प्रतिशत टीबी मरीज भारतीय, भारत में हर साल 28 लाख नये टीबी मरीज मिल रहे हैं. – पांच हजार साल पहले मिस्त्र के पिरामिड में रखी ममी में भी टीबी के रोगाणु पाये गये – 10 साल पहले तक एमडीआर से ग्रसित 35 प्रतिशत मरीज की मौत होती थी

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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