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पत्रकारिता वही ठीक, जो देश हित से बंधी हुई हो : डॉ कृपाशंकर चौबे

हिंदी पत्रकारिता का अधिकांश हिस्सा अपनी पहली प्रतिज्ञा को भूल गया है.

कोलकाता. हिंदी पत्रकारिता का अधिकांश हिस्सा अपनी पहली प्रतिज्ञा को भूल गया है. युगल किशोर शुक्ल द्वारा 30 मई 1826 को कलकत्ता में निकाले गये हिंदी के पहले समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ की पहली संपादकीय टिप्पणी की पहली ही पंक्ति में कहा गया है-हिंदुस्तानियों के हित के हेत. हिंदी पत्रकारिता की वह पहली प्रतिज्ञा है. यानी पत्रकारिता वह है जो देशवासियों के हित से बंधी हो. ये बातें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में जनसंचार के विभागाध्यक्ष डॉ कृपाशंकर चौबे ने कहीं. वह यहां हिंदी पत्रकारिता दिवस पर राजस्थान सूचना केंद्र में छपते छपते द्वारा ‘हिंदी पत्रकारिता : विकास और चुनौतियां’ विषय पर आयोजित एक विचार गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. प्रो. चौबे ने कहा कि आज मुद्रित माध्यम और दृश्य-श्रव्य माध्यम की पत्रकारिता से लेकर डिजीटल मीडिया तक को हर तरह की विकृति से मुक्त रखने के लिए जरूरी है कि हिंदी पत्रकारिता की देश हित चिंता से जुड़ी आरंभिक प्रेरणा, प्रयोजन और प्रतिज्ञाओं को याद रखा जाये. वैसा करने पर ही पत्रकारिता जनोन्मुखी रह सकेगी. इसी कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार संतन कुमार पांडेय ने हिंदी भाषियों की संख्या अधिक होने के बावजूद हिंदी अखबारों की प्रसार संख्या कम होने पर गंभीर चिंता जतायी. उन्होंने नीर-क्षीर के अंतर को समझने के लिए पत्रकारीय विवेक होने की आवश्यकता पर बल दिया. कोलकाता प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष राज मिठौलिया ने कहा कि हिंदी भाषा और हिंदी पत्रकारिता के विकास और संरक्षण में कोलकाता की बड़ी भूमिका रही है. यह भी कि तमाम चुनौतियों के बीच प्रिंट मीडिया पर पाठकों का भरोसा बना हुआ है और बना भी रहेगा. ऊपरोक्त कार्यक्रम में अपनी बातें रखने के क्रम में भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डॉ शंभुनाथ ने हिंद के पहले समाचार पत्र उदंत मार्तंड को याद करते हुए कहा कि तब की पत्रकारिता का फलक अत्यंत विस्तृत और विश्वव्यापी था. भारतीय संस्कृति संसद के सलाहकार प्रियंकर पालीवाल ने शिकायती लहजे में कहा कि आज पत्रकारिता ने कृषि को लगभग विस्मृत ही कर दिया है. ताजा टीवी के प्रधान निदेशक विश्वम्भर नेवर ने कहा कि हिंदी का पहला समाचार पत्र उदंत मार्तंड है, जो 30 मई, 1826 को कोलकाता में प्रकाशित हुआ था. वह हिंदुस्तानियों के हित में निकला था. उस समय पत्रकारिता में जो अनेक चुनौतियां थी, वे आज भी हैं, पर उनका स्वरूप बदल गया है. राजस्थान सरकार के सूचना विभाग के सहायक निदेशक हिंगलाज दान रतनू ने स्वागत वक्तव्य दिया. कार्यक्रम में सीताराम अग्रवाल, अजयेंद्र नाथ त्रिवेदी, अंजू सेठिया, जयप्रकाश मिश्र, पुरुषोत्तम तिवारी, रावेल पुष्प, रवि प्रताप सिंह, शकुन त्रिवेदी, सुरेश साव, सुरेश चौधरी, मीनाक्षी सांगानेरिया, काली प्रसाद जायसवाल, गोविंद इंदौरिया आदि की उपस्थित भी खास थी. फेक न्यूज की चुनौतियों के बावजूद बना रहेगा प्रिंट मीडिया का वजूद : डॉ सोमा बंद्योपाध्याय मोबाइल और सोशल मीडिया द्वारा बड़े पैमाने पर फेक न्यूज के जरिये पेश की जा रही चुनौतियों के बावजूद प्रिंट मीडिया (अखबार व पत्र-पत्रिका आदि) का वजूद बना रहेगा. मेरा विश्वास है कि सूचनाओं की विश्वसनीयता के लिए प्रिंट मीडिया ही सबसे मजबूत माध्यम के तौर पर अपनी जगह बनाये रखेगा. ये बातें संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहीं बीआर आंबेडकर एजुकेशन यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर डॉ सोमा बंद्योपाध्याय ने कहीं. हिंदी पत्रकारिता की चर्चा के क्रम में उन्होंने कहा कि हिंदी उन्हें प्रादेशिक क्षुद्रता से मुक्त रखी है. डॉ बंद्योपाध्याय ने अध्यक्षीय वक्तव्य प्रस्तुत करने के क्रम में पत्रकारों के लिए अपने सुझाव में कहा कि उन्हें समाचारों की विश्वसनीयता का हरदम खास ख्याल रखना चाहिए. उनकी राय में अच्छी पत्रकारिता के लिए अच्छे पत्रकार के साथ ही अच्छे पाठक भी होने चाहिए.

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