Nalanda Lok Sabha Election Result 2024: नालंदा लोकसभा क्षेत्र से जदयू के कौशलेंद्र कुमार ने लगातार चौथी जीत दर्ज कर ली है. उन्होंने माले के उम्मीदवार और पालीगंज से विधायक संदीप सौरव से 132077 वोटों से हराया हैं. कौशलेंद्र कुमार को यहां 436143 वोट मिले हैं. वहीं दूसरे नंबर पर रहे संदीप सौरभ को 304066 वोट मिले हैं.
S.N. | Candidate | Party | Total Votes | % of Votes |
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1 | KAUSHALENDRA KUMAR | Janata Dal (United) | 436143 | 49.05 |
2 | DR. SANDEEP SAURAV | Communist Party of India (Marxist-Leninist) (Liberation) | 304066 | 34.2 |
3 | SUDHIR KUMAR | Sanyukt Kisan Vikas Party | 18984 | 2.14 |
नालंदा में इस बार चुनाव मुद्दाविहीन रहा. यहां एनडीए की ओर से जेडीयू के कौशलेंद्र कुमार और महागठबंधन की ओर से सीपीआई-एमएल के संदीप सौरभ आमने-सामने थे. एनडीए उम्मीदवार कौशलेंद्र कुमार ने जहां राष्ट्रवाद और विकास के नाम पर, वहीं महागठबंधन के उम्मीदवार संदीप सौरभ ने संविधान बचाओ, महंगाई और बेरोजगारी के नाम पर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया.
2009 से लगातार चुनाव जीत रहे कौशलेंद्र
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गृह लोकसभा सीट होने की वजह नालंदा हमेशा से हॉट सीट रही है. नालंदा लोकसभा सीट को समता पार्टी और जदयू का गढ़ माना जाता है. यहां 1996 से 1999 तक पहले समता पार्टी के टिकट पर जॉर्ज फर्नांडिस और फिर उसके बाद 2004 से 2019 तक जदयू का कब्जा रहा है. खुद नीतीश कुमार भी 2004 के चुनाव में यहां से जीत हासिल कर चुके हैं. वहीं, 2009 से लेकर पिछले तीन टर्म से जदयू के टिकट पर कौशलेंद्र कुमार लगातार सांसद चुने जाते रहे हैं. इस बार महागठबंधन ने माले के पालीगंज से विधायक संदीप सौरव को उम्मीदवार बना कर कौशलेंद्र कुमार को चुनौती दी.
2019 में कौशलेंद्र कुमार ने हम सेक्यूलर के अशोक कुमार आजाद को 2.56 लाख वोटों के अंतर से हराया था. 2014 में कौशलेंद्र ने लोजपा के सत्यानंद शर्मा को मात्र साढ़े नौ हजार वोटों के अंतर से मात दी थी. उससे पहले 2009 में भी कौशलेंद्र ने लोजपा के सतीश कुमार को करीब 1.52 लाख वोटों के अंतर से हराया था.
नालंदा में कब किस पार्टी ने दर्ज की जीत
1952 के पहले लोकसभा चुनाव में नालंदा लोकसभा सीट का नाम पटना सेंट्रल हुआ करता था. 1957 में जब दूसरी बार आम चुनाव हुए तो इस सीट का नाम बदलकर नालंदा लोकसभा कर दिया गया. जिसके बाद 1962 से 1971 तक कांग्रेस यहां से जीतती रही. लेकिन इमरजेंसी के बाद 1977 में जब यहां चुनाव हुए तो पहली बार जनता पार्टी ने जीत दर्ज की. इसके बाद 1980 और 1984 में सीपीआई के सांसद चुने गए.
वहीं, 1989 में एक बार फिर कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की. लेकिन ये सिर्फ एक कार्यकाल के लिए ही रहा. इसके बाद 1991 में सीपीआई ने फिर से जीत दर्ज की. इसके बाद से 1996 से ये सीट पहले समता पार्टी और फिर 2004 से जेडीयू के कब्जे में रही.