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कई राजनीतिक धुरंधरों के जीत-हार का गवाह है पुराना समाहरणालय

भारत गणतंत्र होने के बाद 1952 के पहले आम चुनाव से वर्ष 1990 तक हजारीबाग का पुराना समाहरणालय नामांकन से लेकर मतगणना तक प्रमुख केंद्र रहा है.

हजारीबाग.

भारत गणतंत्र होने के बाद 1952 के पहले आम चुनाव से वर्ष 1990 तक हजारीबाग का पुराना समाहरणालय नामांकन से लेकर मतगणना तक प्रमुख केंद्र रहा है. इस भवन ने कई सांसदों को जीत का प्रमाण पत्र देकर दिल्ली भेजा. वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव तक पुराना समाहरणालय परिसर में नामांकन कार्य किये गये थे. यह पहला लोकसभा चुनाव है, जिसमें चुनाव को लेकर कोई भी गतिविधि पुराने समाहरणालय भवन से संपादित नहीं किया गया. आज यह भवन वीरान है. इस भवन से मजबूत लोकतंत्र की कई कहानियां जुड़ी हुई है. वर्ष 1952 में छोटानागपुर संथाल परगना जनता पार्टी के रामनारायण सिंह, 1957 में छोटानागपुर संथाल परगना जनता पार्टी के ललिता राज लक्ष्मी, 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी बसंत नारायण सिंह, 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी बसंत नारायण सिंह, 1972 में कांग्रेस के दामोदर पांडेय, 1977 में भारतीय लोक दल के कुंवर बसंत नारायण सिंह, 1980 में कुंवर बसंत नारायण सिंह, 1984 में कांग्रेस के दामोदर पांडेय, 1989 में भाजपा के यदुनाथ पांडेय को जीत का प्रमाण पत्र पुराना समाहरणालय से मिला था.

वर्ष 1990 तक लोकसभा से विधानसभा की मतगणना होती थी :

पुराना समाहरणालय में पहला लोकसभा चुनाव 1952 से 1990 के विधानसभा चुनाव तक मतगणना होती थी. वरिष्ठ पत्रकार अभिजीत सेन उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि हजारीबाग लोकसभा बेरमो विधानसभा क्षेत्र भी शामिल था. उस समय हजारीबाग सदर, मांडू, बेरमो, बड़कागांव, बरही, रामगढ़ इस लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था. गिरिडीह लोकसभा परिसिमन के बाद बेरमो विधानसभा को हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र से अलग कर दिया गया. उस समय वोट बैलेट पेपर से दी जाती थी. पुराना समाहरणालय परिसर में मतगणना को लेकर टेंट लगाया जाता था. डीसी ऑफिस के अगल-बगल के कार्यालय मतपेटी रखने के लिए स्ट्रांग रूम होते थे. टेंट के नीचे मत पेटियों से निकले बैलेट पेपर की गिनती होती थी. पुराना समाहरणालय के पोटिको से निर्वाचन पदाधिकारी सह डीसी और एसपी विजय उम्मीदवारों की घोषणा करते थे. मतों की गिनती में 24 घंटों से अधिक समय लग जाता था. इसके बाद जीत की घोषणा होती थी.

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