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नीतीश के गढ़ नालंदा में होगी लाल झंडे की अग्निपरीक्षा, जदयू के कौशलेंद्र का मुकाबला माले के संदीप सौरभ से

नालंदा लोकसभा क्षेत्र के रण में इस बार जेडीयू के कौशलेंद्र कुमार और सीपीआईएमएल के संदीप सौरभ के बीच सीधी टक्कर हो रही है, दोनों गठबंधन ने अपने प्रत्याशियों के लिए यहां पूरी ताकत झोंक दी है

अजय कुमार/ रंजीत सिंह

Lok Sabha Election: ‘देखिए भाई हम तो नीतीसे कुमार को भोट देंगे. काहे कि ऊ इ क्षेत्र का नाम ऊंचा किये हैं. उनका आदमी से हमको का मतलब है?  हमको तो मतलब नीतीस कुमार से है.’ ये हैं नालंदा जिले के बराह पंचायत के दिनेश पासवान. 27 और 28 तारीख को नालंदा लोकसभा क्षेत्र के तकरीबन सभी इलाके में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रोड शो किया. कहीं-कहीं सभा भी की.

दिनेश पासवान कहते हैं कि हमें ही नहीं बहुत सारे लोगों को कौशलेंद्र बाबू से शिकायत है. लेकिन यहां के लोग नीतीश बाबू का मुंह देखकर भोट करते हैं’. कौशलेंद्र कुमार लगातार तीन बार से संसदीय चुनाव जीत रहे हैं और अब चौका मारने की बाउंड्री पर हैं. यहां एक जून को सातवें व अंतिम चरण में मतदान होना है.

नालंदा के ज्यादातर लोग यही कहते हैं कि यहां न तो पीएम मोदी के चेहरे पर वोट पड़ेगा और न ही उम्मीदवार के. वोट तो नीतीश कुमार के चेहरे पर पड़ेगा. लेकिन नूरसराय के दुखी राम और लेखा पासवान कुछ दूसरी ही बात करते हैं. यहां की लकड़ी मंडी के विश्वकर्मा मंदिर पर कुछ बुजुर्ग बैठे हैं. तीसरे पहर के बावजूद उमस भरी भारी गर्मी में कोई कमी नहीं है. बुजुर्ग लोग से हम मिलते हैं. चुनाव के बारे में बात करते हैं. लेखा पासवान यह नहीं बताते कि वह किसे वोट करने जा रहे हैं. उनका कहना है कि यह गुप्त मतदान है और इसका बयान करना ठीक नहीं.

नीतीश कुमार के उम्मीदवार के अलावा और किसी उम्मीदवार के बारे में आपने कुछ सुना है? दुखी राम कहते हैं: तीन सितारा वाले के बारे में सुनते हैं कि वह पढ़ा-लिखा आदमी है. डॉक्टर है. दरअसल, दुखी राम भाकपा माले के उम्मीदवार डॉ संदीप सौरभ के बारे में अपनी राय रख रहे थे. माले ने जेएनयू से पीएचडी किये हुए पार्टी विधायक संदीप सौरभ को उतारा है. इसी बीच दस-पंद्रह लोग नारे लगाते हुए सड़क के किनारे से गुजरते हैं. वह तीर छाप पर वोट देने की अपील करते हुए परचा बांट रहे हैं. वोट मारे तीर पर….

गोलगप्पे की दुकान पर दो नौजवान इस नारे को सुनकर कहते हैं: कोनो नहीं मारेगा. मेरे गांव में सब लोग तेजस्वी को वोट देगा. लेकिन तेजस्वी प्रसाद तो यहां से खड़े नहीं हैं? लड़के इस सवाल पर कहते हैं: मालूम है सर. तीन सितारा वाला है न? यह बताते हुए वह झट से एक परचा दिखाता है. यह माले का चुनाव परचा है. दोनों हरे रंग का गमछा कंधे पर डाले हुए हैं. हम गोलगप्पे वाले से पूछते हैं: ये लड़के ठीक कह रहे हैं. वह अपनी दांत निपोर देते हैं. हमको इस ठेला से फुर्सत कहां है? उनकी इस हंसी के पीछे का दर्द भी झलक पड़ता है: पेट का जुगाड़ हो तब न, पार्टी-पउवा की बात करें?

मुख्य मार्ग से नूरसराय मुड़ने के ठीक कोने पर माले का केंद्रीय कार्यालय बना हुआ है. यहां हमारी मुलाकात पार्टी के वरिष्ठ नेता धीरेंद्र झा और विधायक सत्यदेव राम से होती है. दोनों नेताओं ने दावा किया कि इस चुनाव में खास बात यह है कि हमें सभी सामाजिक समूहों में समर्थन मिल रहा है. इसकी बड़ी वजह निवर्तमान सांसद का एनपीए (नन परफॉर्मिक एसेट) के तौर पर उनकी छवि का बनना है.

झा कहते हैं कि जैसे-जैसे चुनाव बढ़ता जा रहा है, लोगों के जीवन से जुड़े मुद्दे केंद्र में आते जा रहे हैं. बेरोजगारी और महंगाई से लोग त्रस्त हैं. कई दलित बस्तियों में बैठकों का हवाला देते हुए वह कहते हैं कि लोग बदलाव चाहते हैं. पर मोहम्मद सिराज दूसरी तस्वीर पेश करते हैं. उनका कहना है कि 1996 से नीतीश कुमार के प्रतिनिधि ही यहां से जीत हासिल करते रहे हैं. इस बार भी ऐसा ही होगा. उनका कहना है कि सामाजिक समीकरण के लिहाज से नीतीश जी के उम्मीदवार बीस ही पड़ेंगे, उन्नीस नहीं.

बिहारशरीफ में मिले बीरेंद्र कुमार शर्मा कहते हैं: देश में भले मोदी जी के चेहरे पर वोट मिल रहे हों, पर यहां तो नीतीश कुमार का चेहरा ही काफी है.

नालंदा में राज्य में सबसे अधिक 29 उम्मीदवार मैदान में हैं. यहां की सड़कों पर कई दूसरे उम्मीदवारों की प्रचार गाड़ियां भी दिखती हैं. पर चुनाव को लेकर चर्चा केवल दो उम्मीदवारों पर हो रही है. एनडीए और इंडिया के उम्मीदवार ही आमने-सामने हैं. आम लोग इन्हीं दो उम्मीदवारों को केंद्र में रखकर दुनिया भर के समीकरण और पॉलिटिक्स समझाने लगते हैं.

कल्याण बिगहा में क्या चल रहा है?

कल्याण बिगहा अभी अलसाया हुआ लग रहा है. यह राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गांव है. बुधवार की सुबह यहां के सरकारी स्कूल में बच्चे और टीचर पहुंच चुके हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर के दरवाजे पर ताला लगा हुआ है. घर के ठीक सामने के तालाब के किनारे बैठे मिले पप्पु ठाकुर. 1993 में वह काम की तलाश में बांबे भाग गये थे. कुछ कमाई-धमाई शुरू हुई. गांव आना-जाना शुरू हुआ. घर वालों ने यह कहते हुए शादी करा दी कि अब लड़का कमाने लगा है. 2014 में स्थायी तौर पर मुंबई से कल्याण बिगहा लौट आये. उनके तीन बच्चे हैं. एक बेटी की शादी हो चुकी है.

वह बताते हैं कि गांव का नक्शा बदल गया है. सड़क है, बैंक का ब्रांच खुल गया है. बिजली रहती है. गांव के कई लड़के पटना, पुणे और गुड़गांव में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. राहुल राज कैट की तैयारी कर रहे हैं. गर्मियों की छुट्टी में घर आये हैं. वोट देने के सवाल पर कहते हैं: इसके बारे में क्या पूछना? सब लोग जानते हैं कि यहां का वोट किसको जायेगा. पर पप्पू कहते हैं: कोई जरूरी नहीं कि सबका वोट एक ही पार्टी को जायेगा.

यहां आये हैं तो अवधेश सिंह से भी मिल लीजिए

गांव के लोग यहां के बारे में बहुत सारी जानकारी देते हैं. कुछ और जानकारी चाहिए तो अवधेश बाबू से मिल लीजिए. ये कौन हैं? गांव के लोगों ने बताया कि उनका नीतीश जी से सीधे संपर्क है. वह गांव की सार्वजनिक जरूरत-बेजरूरत की बातें नीतीश जी तक पहुंचाते हैं और इस तरह गांव के लोगों का काम हो जाता है.

अवधेश सिंह स्कूल में नीतीश कुमार से चार क्लास पीछे थे. वह उन्हें भैया या माननीय कहकर संबोधित करते हैं. हम उनके इसी स्कूल से 10 कदम दूरी पर बने उनके घर पर मिलते हैं. उनके जरिये पता चल पाता है कि किस तरह गांवों की सड़कें ठीक हो गयी हैं. पहले जहां बख्तियारपुर जाने में दस-पंद्रह किलोमीटर की दूरी एक सड़क बन जाने से केवल सात किलेामीटर में सिमट गयी. पहले सड़क नहीं थी कि कादो-कीचड़ में जाना पड़ता था. खेती के लिए मशीन भी नहीं जा पाती थी. अब वैसी हालत नहीं है.

गांव के अस्पताल में एक्स-रे वगैरह की सुविधा मिल रही है. यह हरनौत के अस्पताल से भी अच्छा है. डॉक्टर और नर्स तो हैं ही. अवधेश सिंह कहते हैं: महतबर, सिरसी, बलवापर जैसे गांव के लोग भी इसी अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं. यहां के मध्य विद्यालय में 410 बच्चे नामांकित हैं. आठ टीचर हैं.

नीतीश जी के गांव के घर में कोई नहीं रहता? अवधेश सिंह बताते हैं: मां जब तक जीवित थीं, वही रहती थीं. लेकिन उनके निधन के बाद कोई नहीं रहता. खेतीबारी अब बटइया पर है. गांव में बने रामलखन सिंह स्मृति वाटिका स्थल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने परिवार के सदस्यों के साथ साल में तीन बार जरूर आते रहे हैं. यहां माता-पिता और पत्नी की प्रतिमाएं लगी हैं.

(साथ में निरंजन)

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