किशनगंज .गर्भधारण के साथ ही हर महिला में ससमय सामान्य एवं सुरक्षित प्रसव होने की पहली चाहत होती और गर्भावस्था के दौरान मन में तरह-तरह के सवाल के साथ खुशियां भी रहती हैं . इस दौरान थोड़ी सी अनदेखी और लापरवाही बड़ी मुश्किल बन जाती और महिलाओं को तरह-तरह की परेशानियां का सामना करना पड़ सकता है. ऐसी ही एक परेशानी समय पूर्व प्रसव होना है, जो जच्चा-बच्चा दोनों के लिए परेशानी बन जाती है. सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया कि समय पूर्व प्रसव होने के कई कारण हैं. किंतु सामान्यतः कमजोर महिलाएं खासकर इस दायरे में आ ही जाती और समय पूर्व प्रसव में जन्म लेने वाले शिशु भी बेहद कमजोर होते हैं. क्योंकि, समय पूर्व प्रसव होने के कारण शिशु गर्भ के दौरान मानसिक और शारीरिक रूप से संबल नहीं हो पाता है. इसलिए, ऐसी स्थिति में जच्चा-बच्चा की योग्य चिकित्सकों से तुरंत जांच करानी चाहिए और चिकित्सा परामर्श के अनुसार ही इलाज कराएं. क्योंकि, ऐसे शिशु जन्म लेने के साथ कई तरह की समस्याओं से घिर जाते हैं. इसलिए, ऐसे शिशु के स्वस्थ शरीर निर्माण के लिए उचित और समुचित इलाज जरूरी है.
कम उम्र में गर्भधारण से भी होता है समय पूर्व प्रसव
सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया, समय पूर्व प्रसव होने के कई कारण हैं. जैसे कि, माता का 40 किलोग्राम से कम वजन होना, शरीर में खून की कमी, गर्भावस्था के दौरान या प्रसव पूर्व ब्लीडिंग होना, गर्भाशय मुख का बेहद कमजोर होना आदि. इसलिए गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर चिकित्सकों से जांच करानी चाहिए एवं उनके चिकित्सा परामर्श के अनुसार आवश्यक इलाज भी कराना चाहिए. हालाँकि, इसमें कम उम्र में गर्भधारण करना और गर्भावस्था के दौरान उचित खान-पान का सेवन नहीं करना आदि मुख्य कारण हैं. क्योंकि, ऐसी स्थिति में महिलाएँ काफी कमजोर हो जाती है. जिसके कारण सुरक्षित प्रसव नहीं हो पाता है.गर्भधारण के लिए सही उम्र होना जरूरी
गर्भधारण के लिए महिलाओं का सही उम्र होना भी बेहद जरूरी है. क्योंकि, कम उम्र में गर्भधारण होने से हमेशा समय पूर्व प्रसव होने की संभावना बनी रहती है. जिससे महिलाओं को कई प्रकार की जटिल परेशानियों से जूझना पड़ जाता है. इसलिए, गर्भधारण के लिए महिलाओं का कम से कम 20 वर्ष का होना जरूरी है. इसलिए, इस उम्र में ही गर्भधारण कराना चाहिए. ताकि किसी प्रकार की अनावश्यक परेशानी उत्पन्न नहीं हो.गर्भावस्था के दौरान प्रोटीन, आयरन और कैल्सियम युक्त खाने का सेवन ज्यादा करना चाहिए
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को प्रोटीन, आयरन और कैल्सियम युक्त खाने का ज्यादा से ज्यादा सेवन करना चाहिए. इस दौरान दाल, पनीर, अंडा, पालक, सोयाबीन, नॉनवेज, गुड़, अनार, नारियल, चना, हरी सब्जी आदि का सेवन करना चाहिए. साथ ही व्यक्तिगत साफ-सफाई का भी विशेष ख्याल रखना चाहिए. सुरक्षित और सामान्य प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं को समय-समय पर जांच कराते रहना चाहिए. प्रसव पूर्व जांच के लिए सरकार द्वारा पीएचसी स्तर पर भी मुफ्त जांच की व्यवस्था की गई है. जहाँ हर माह नौ तारीख को गर्भवती महिलाओं की निःशुल्क जांच होती और जांचोपरांत आवश्यक चिकित्सा परामर्श दी जाती है.क्या है समय से पूर्व प्रसव
गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ उर्मिला कुमारी ने बताया की 37 हफ्ते के बाद होने वाले प्रसव को सामान्य एवं परिपक्व प्रसव कहा जाता है. कितु, इससे पूर्व प्रसव होने पर समय पूर्व प्रसव कहा जाता है. इस स्थिति माँ के साथ-साथ जन्म लेने वाले शिशु काफी कमजोर होते हैं और दोनों को कई तरह की परेशानियाँ का सामना करना पड़ जाता है. दरअसल, समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चे मानसिक एवं शारीरिक रूप से तो बेहद कमजोर होते ही हैं. इसके अलावा ऐसे शिशु में स्तनपान के लिए माँ की छाती को चूसने एवं साँस लेने की क्षमता भी नहीं होती है. जिसके कारण बच्चे कई तरह की समस्याओं से घिर जाते हैं. एक पूर्व समय-पूर्व शिशु जन्म, एक से अधिक शिशुओं को जन्म देना, गर्भावस्था के दौरान खराब आहार-पोषण, प्रसव पूर्व देखभाल में देरी, संक्रमण, समर्थित प्रजनन तकनीक (जैसे इन विट्रो फ़र्टीलाईज़ेशन), और उच्च ब्लड प्रेशर समय-पूर्व जन्म का जोखिम बढ़ा सकते हैं.चूंकि अनेक अंग अविकसित होते हैं, इसलिए समय-पूर्व नवजात शिशुओं को शायद सांस लेने और फ़ीडिंग में कठिनाई हो सकती है और उनके दिमाग में खून का रिसाव होने, संक्रमण तथा अन्य समस्याओं की संभावना बनी रहती है.काफी समय पहले और छोटे आकार में समय-पूर्व जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं में समस्याएं होने का ज़्यादा जोखिम रहता है, जिसमें विकास संबंधी समस्याएं शामिल हैं. कुछ समय-पूर्व शिशुओं का विकास स्थाई समस्याओं के साथ होता है, अधिकांश उत्तरजीवी शिशुओं में थोड़ी-बहुत या लंबे समय तक रहने वाली समस्याएं नहीं होती हैं.समय रहते प्रसव पूर्व देखभाल से समय-पूर्व जन्म का जोखिम कम हो सकता है.कभी-कभी समय-पूर्व जन्म को मां में कंट्रेक्श्न्स को धीमा करने या रोकने की दवाएँ देकर कुछ समय के लिए रोका जा सकता है.जब किसी शिशु के महत्वपूर्ण रूप से समय-पूर्व प्रसव की उम्मीद हो, तो डॉक्टर माता को कॉर्टिकोस्टेरॉइड के इंजेक्शन दे सकते हैं, ताकि भ्रूण के फेफड़ों के विकास में तेजी लाई जा सके और दिमाग में खून के रिसाव (इंट्रावेंट्रिकुलर हैमरेज) की रोकथाम में सहायता की जा सके.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है