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सर्वधर्म समन्वय के प्रतीक थे महर्षि संतसेवी महाराज

महर्षि संतसेवी परमहंस महाराज के परिनिर्वाण दिवस पर मंगलवार

महर्षि संतसेवी परमहंस महाराज के परिनिर्वाण दिवस पर मंगलवार को ध्यानाभ्यास, पुष्पांजलि, भंडारा व सत्संग का आयोजन होगा. इसे लेकर कुप्पाघाट स्थित महर्षि मेंहीं आश्रम को सजाया जा चुका एवं सारी तैयारी पूरी कर ली गयी है. गुरुसेवी भगीरथ दास महाराज ने बताया कि दोपहर तीन से संध्या पांच बजे तक सत्संग का आयोजन होगा. इसमें संतों व सन्यासियों द्वारा महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला जायेगा. इससे पहले आयोजित ध्यान शिविर के लिए मधेपुरा, सहरसा, दरभंगा, बांका आदि स्थानों के साधक आश्रम पहुंचे हुए हैं. महर्षि मेंहीं परमहंस ने संतसेवी परमहंस महाराज को कहा था अपना मस्तिष्क

अखिल भारतीय संतमत सत्संग महासभा के महामंत्री दिव्य प्रकाश ने बताया कि महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज का अवतरण 20 दिसंबर 1920 को मधेपुरा जिला स्थित गम्हरिया गांव में हुआ था. 87 वर्षों तक मानव शरीर में रह कर चार जून 2007 को वे निर्वाण को प्राप्त हुए. महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के परम प्रिय शिष्य में एक थे, महर्षि मेंहीं परमहंस ने इन्हें अपना मस्तिष्क कहा था. सर्वधर्म समन्वय के प्रतीक महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज के निर्वाण दिवस पर 15 दिनों के लिए ध्यान साधना शिविर का आयोजन कुप्पाघाट भागलपुर में रखा गया है. प्रात: आठ बजे महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज के समाधि स्थल पर पुष्पांजलि कार्यक्रम होगा. इसके बाद प्रसाद सह भंडारा का आयोजन होगा. पंकज बाबा एवं संजय बाबा ने बताया कि वर्तमान आचार्यश्री महर्षि हरिनंदन परमहंस जी महाराज एवं गुरु सेवी भगीरथ दास जी महाराज के सानिध्य में सत्संग का आयोजन होगा. सफलता को लेकर रमेश बाबा, मंत्री मनु भास्कर, अमित कुमार, विशाल कुमार, सूरज कुमार आदि लगे हैं.

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महर्षि मेंहीं को ब्रह्मलीन होने के बाद संतसेवी महाराज ने संभाला था कुप्पाघाट आश्रम

संजय बाबा ने बताया कि संतमत के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी के ब्रह्मलीन हो जाने के उपरांत महर्षि संतसेवी परमहंस जी ने कुप्पाघाट, भागलपुर में आचार्यश्री की जिम्मेदारी संभाली. बिहार अखिल भारतीय संतमत सत्संग का मुख्यालय है. संतमत के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया तथा इसे नयी ऊंचाइयों पर ले गये. वे चार जून 2007 की रात इस धराधाम को विदा कह गये.

आरंभिक जीवन

महर्षि संतसेवी परमहंस माता-पिता के चौथे पुत्र थे. इनके पिताश्री बलदेव दास जी एक किसान थे. माताश्री राधा देवी एक धर्मपरायणा महिला थीं. नामकरण-संस्कार के तहत पंडितजी द्वारा इनका नाम महावीर दास रखा गया. महावीर दास बड़ी कुशाग्र बुद्धि के तथा आज्ञाकारी विद्यार्थी थे. अपनी कक्षा में ये परीक्षाओं में सदैव प्रथम अथवा द्वितीय स्थान प्राप्त किया करते थे. बाल्यावस्था में भगवान हनुमान के कट्टर भक्त थे. इनके दो-दो भाइयों तथा चाचाजी के अल्पायु में ही कालकवलित हो जाने की घटना ने इनके मन को तीव्र आघात पहुंचाया तथा इन्हें इस मर्त्यभुवन में जीवन की क्षणभंगूरता का साक्षात अनुभव कराया. अभी ये इस सदमे से उबर भी नहीं पाये थे, कि इनके पिता जी के आकस्मिक निधन ने इनके जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया. इस कारण इनकी औपचारिक शिक्षा मात्र अष्टम वर्ग तक ही हो पायी. परिवार का वहन करने हेतु ये गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ने लगे. इनके चरित्र तथा अध्ययन के प्रति इनकी रुचि देख अभिभावकों को अपने बच्चों को इन्हें सौंपने में तनिक भी झिझक न हुई.

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