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वन सुरक्षा आंदोलन की मिसाल है हिसीम-कदला पहाड़

पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर खास : 1980 के दशक में यहीं से शुरू हुआ व झारखंड के साढ़े चार सौ गांवों में फैला

दीपक सवाल, कसमार, बोकारो जिले के कसमार प्रखंड में पश्चिम बंगाल और रामगढ़ जिले से सटा हिसीम-कदला पहाड़ है. इस पर मुख्यतः चार गांव बसे हुए हैं. इसकी आबादी लगभग आठ हजार है. इनमें तीन गांव आदिवासी बहुल है. किसी समय इस पर नक्सलियों का प्रभाव था. इस वजह से यहां विकास कार्य भी काफी प्रभावित हुआ, पर इन सबसे अलग यहां के ग्रामीणों ने पहाड़ पर वन सुरक्षा आंदोलन के रूप में एक बड़ी सामाजिक क्रांति की शुरुआत कर अलग नया कुछ करने की शुरुआत कर दी.

1980 के दशक में यहां से शुरू हुआ वन सुरक्षा आंदोलन अब झारखंड (खासकर उत्तरी छोटानागपुर) के लगभग 450 गांवों में फैल गया है. नतीजा सैकड़ों वन फिर से आबाद होने लगे हैं. इस काम में कई लोगों का अहम योगदान रहा है, पर हिसीम गांव के जगदीश महतो इस आंदोलन के नायक बनकर उभरे. आंदोलन को बनाये रखने के लिए अपने खेत, मवेशी और पत्नी के गहने तक बेच डाले. विरोधियों व लकड़ी तस्करों ने कई बार इन पर हमला किया, दुर्व्यवहार किया, पर हिम्मत नहीं हारी. कारवां बनता गया और देखते ही देखते आंदोलन पूरे उत्तरी छोटानागपुर में फैल गया. आज लगभग साढ़े चार सौ गांवों में ग्राम स्तरीय वन सुरक्षा समितियों का गठन कर इसे व्यापक रूप दिया गया है. हजारों महिला-पुरुष वनों को बचाने व दोबारा आबाद करने के लिए डटकर खड़े हैं.

हिसीम से 1984 में शुरू हुआ अभियान

हिसीम-कदला पहाड़ पर वन सुरक्षा आंदोलन की विधिवत शुरुआत 1984 में हुई थी. यहां काफी बड़ा वन क्षेत्र है. ग्रामीण इस पर निर्भर थे. धीरे-धीरे अवैध कारोबारियों की बुरी नजर इस पर पड़ी. फिर तो पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलने का जो सिलसिला शुरू हुआ, थमने का नाम नहीं लिया. कुछ स्थानीय ग्रामीण भी लकड़ी तस्करों के साथ मिले हुए थे. एक समय ऐसा भी आया जब जंगल लगभग पूरी तरह से उजड़े चुका था. इससे परेशान पहाड़ पर बसे चारों गांवों (हिसीम, केदला, त्रियोनाला व गुमनजारा) के जागरूक ग्रामीणों की बैठक हिसीम के मध्य विद्यालय परिसर में अक्तूबर 1984 में हुई. इस दौरान हर हाल में वनों की सुरक्षा का निर्णय लिया गया. कमेटी बनायी गयी. शुरुआत में विष्णुचरण महतो कमेटी के अध्यक्ष बनाये गये. कुछ समय बाद हिसीम के जगदीश महतो को इसकी बागडोर सौंपी गयी. बाद में अन्य गांवों को भी इससे जोड़ने की मुहिम चली. अंततः कामयाबी मिली. आंदोलन के विस्तार के क्रम में ही समिति का नामकरण पहले उत्तरी छोटानागपुर वन सुरक्षा समिति और फिर केंद्रीय वन-पर्यावरण सुरक्षा सह प्रबंधन समिति किया गया. जगदीश महतो पिछले करीब तीन दशक से लगातार इस कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं. अभियान को मुकाम तक ले जाने वालों में हिसीम-कदला पहाड़ के देवशरण हेंब्रम, आनंद कुमार महतो, झरीराम महतो, काशीनाथ सोरेन, जलेश्वर महतो, श्रीकांत महतो, गोलक महतो के अलावा तलहटी पर बसे पाड़ी गांव के गंगाधर महतो आदि का विशेष सहयोग रहा.

पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधने की हुई शुरुआत

वन सुरक्षा आंदोलन की गति बनाए रखने के लिए समिति द्वारा कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये गये. इनमें वार्षिक महासम्मेलन का आयोजन विशेष रूप से शामिल था. शुरुआती कुछ वर्षों तक इसका आयोजन काफी भव्य स्तर पर हिसीम में ही हुआ. दिशोम गुरु शिबू सोरेन समेत अन्य कई शख्सियत इसमें शामिल हुए. इसी कड़ी में पेड़ों में रक्षा सूत्र बांधने का कार्यक्रम भी हुआ. सबसे पहले हिसीम के जंगल में ही श्रावण पूर्णिमा के दिन इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी. हिसीम समेत आसपास के अन्य गांवों के सैकड़ों महिला-पुरुषों ने गाजे-बाजे के साथ जंगल जाकर पेड़ों में राखी बांधी और उसकी सुरक्षा का संकल्प लिया. उसके बाद तो प्रायः वर्ष इसका आयोजन अलग-अलग जंगलों में होने लगा. यह आयोजन वनों को बचाने में काफी कारगर साबित हुआ. खासकर महिलाओं का एक नया रिश्ता जंगल से जुड़ गया.

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