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‘जब नदी बंधी’ के लेखक रणजीव नहीं रहे, शोक

नदियां एवं पानी को लेकर पिछले 40 साल से अधिक समय से काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता रणजीव नहीं रहे. आशियाना दीघा इलाके में किराये के मकान में रहने वाले रणजीव के निधन की सूचना सोमवार को उस समय मिली जब पिछले तीन दिनों से उनके घर का दरवाजा नहीं खुला.

संवाददाता, पटना नदियां एवं पानी को लेकर पिछले 40 साल से अधिक समय से काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता रणजीव नहीं रहे. आशियाना दीघा इलाके में किराये के मकान में रहने वाले रणजीव के निधन की सूचना सोमवार को उस समय मिली जब पिछले तीन दिनों से उनके घर का दरवाजा नहीं खुला. परिचितों ने बताया कि अपने भतीजे की असामायिक माैत के बाद से ही वो अवसाद में रहने लगे थे. जब उनको जानने वालों ने घर का दरवाजा खोला, तो वे मृत पाये गये. जेपी आंदोलन के दिनों से सक्रिय रहे रणजीव ने प्रसिद्ध पुस्तक ‘जब नदी बंधी’ लिखी थी. कोसी मुक्ति और गंगा मुक्ति आंदोलन में भी वे सक्रिय रहे. नदी और तटबंध कल समस्या को लेकर इन्होंने कई किलोमीटर की पदयात्रा भी की थी. मूल रूप से दरभंगा के रहने वाले रणजीव अविवाहित थे. इनके पिता सुपौल में नाैकरी करते थे, इस कारण उनकी शिक्षा सुपौल में हुई. उनकी पुस्तक ‘जब नदी बंधी’ बिहार में कोसी की स्थिति समझने के लिए पहली सबसे प्रामाणिक किताब है. कई सामाजिक संगठनों ने रणजीव के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है. रणजीव नदियों को जीते थे. फक्कड़ की तरह जीवन बिताने वाले रणजीव का कोसी में मन रमा रहता था.

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