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Bihar Lok Sabha Election Result 2024: ‘पाटलिपुत्र’ में नीतीश की खूब चली, ‘हस्तिनापुर’ में बढ़ी भूमिका

Bihar Lok Sabha Election Result 2024 चुनाव के पहले एनडीए की कमजोर कड़ी माने जा रहे जदयू उम्मीदवारों को नीतीश कुमार के चेहरे पर वोट मिला.

अजय कुमार

Bihar Lok Sabha Election Result 2024 ‘पाटलिपुत्र’ में नीतीश कुमार की खूब चली. अब ‘हस्तिनापुर’ को भी उनके समर्थन की जरूरत होगी. लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद हम कह सकते हैं कि केंद्र में सरकार बनाने में नीतीश कुमार की भूमिका किंगमेकर की हो गयी है. हालांकि, चुनाव के पहले एनडीए की कमजोर कड़ी माने जा रहे जदयू उम्मीदवारों को नीतीश कुमार के चेहरे पर वोट मिला. एनडीए के साझीदार जदयू को 16 सीटें मिली थीं. भाजपा खुद 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. पांच सीटों पर उसके उम्मीदवार पिछड़ गये. पिछले चुनावों के अनुभवों के आधार पर दावा किया जा रहा था कि इस बार भी भाजपा की जीत का स्ट्राइक रेट सौ प्रतिशत होगा.

लोजपा (आर) ने पांच, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने एक-एक सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. इस चुनाव में राज्य के राजनीतिक रंगमंच पर उभरे तेजस्वी प्रसाद यादव को वोटरों ने एक तरह से  ‘भाव’ नहीं दिया. राजद ने 23 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन मतों की गिनती से लेकर परिणाम आने तक उसके उम्मीदवार डबल डिजिट में पहुंचने के लिए संघर्ष करते रहे.

इस चुनाव में कोई मुद्दा नहीं दिख रहा था. कोई लहर जैसी बात भी नहीं दिख रही थी. वोटर मुखर नहीं थे. पर चुनाव नतीजों में उनकी मुखरता खुल कर अभिव्यक्त हुई. नीतीश कुमार के साथ अति पिछड़ी जातियों और महिला वोटरों ने न सिर्फ जदयू, बल्कि एनडीए उम्मीदवारों के समर्थन में छककर वोट दिया. चुनाव प्रचार के दौरान रोजगार और नौकरी के सवाल पर परस्पर दावे-प्रतिदावे किये जा रहे थे. 

एक तरफ नीतीश कुमार थे, जिन्होंने राज्य में शिक्षकों की भर्ती और आनेवाले समय में नौकरी व रोजगार के सिलिसले  को बनाये रखने की बात कही, तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव दावा कर रहे थे कि नीतीश कुमार के साथ 17 महीने के कार्यकाल के दौरान उनकी ही पहल पर शिक्षकों की नियुक्ति हुई. लेकिन, मतदाताओं ने तेजस्वी के दावे को स्वीकार नहीं किया. चुनाव नतीजों से यह तथ्य उभरकर सामने आया कि वोटरों ने नौकरी और रोजगार के सवाल पर नीतीश कुमार की बातों पर अधिक भरोसा किया.

अब यह साफ हो गया है कि केंद्र में बनने वाली एनडीए की सरकार में नीतीश कुमार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जायेगी. भाजपा को अब बिहार से नीतीश और आंध्रप्रदेश से चंद्रबाबू नायडू काे अधिक हिस्सेदारी देनी होगी. सीटों के समीकरण के हिसाब से इन दोनों दलों के नेताओं के बिना केंद्र में एनडीए सरकार का चलना मुश्किल होगा. बिहार में नीतीश कुमार की सरकार को लेकर एनडीए के भीतर अंदरखाने में कई तरह की चर्चाएं चल रही थीं. इस नतीजे से उन चर्चाओं पर भी विराम लगेगा. यही नहीं, जहां तक बिहार की बात है, नीतीश कुमार एनडीए के अंदर बड़े भाई की भूमिका अदा करेंगे.

तेजस्वी के लिए चुनाव के सबब

चुनाव में राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश की और उसके हिसाब से उम्मीदवारों को टिकट भी दिये. पर चुनाव परिणाम में उनके प्रयास नाकाम हो गये. यह ठीक है कि 2019 के संसदीय चुनाव में राजद का खाता भी नहीं खुला था, लेकिन इस बार पार्टी की दावेदारी अपनी सीटों को डबल डिजिट में पहुंचाने की थी. ऐसे में राजद नेतृत्व को यह सोचना होगा कि यादव वर्चस्व को कम करते हुए दूसरे सामाजिक समूहों का भरोसा कैसे जीता जाये? कुछ कुशवाहा और प्रतीकात्मक तौर पर कुछ दूसरी जातियों को टिकट दे देने भर से पार्टी व्यापक समुदाय का भरोसा अर्जित नहीं कर सकती है.

शाहाबाद के पुराने गढ़ में उलटफेर

इस चुनाव में एनडीए के नेताओं ने शाहाबाद में चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि महागठबंधन ने नक्सलियों से हाथ मिला लिया है. दरअसल, वे भाकपा (माले) के उम्मीदवारों के बारे में ऐसा कह रहे थे. माले (लिबरेशन) लंबे समय तक अंडरग्राउंड रही थी. शाहाबाद या कहें तो मगध के गांव में सामाजिक भेदभाव, निम्न जातियों पर सामंती शक्तियों के उत्पीड़न और इज्जत-प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ी. आरा सीट से 1989 के संसदीय चुनाव में इंडियन पीपुल्स फ्रंट ने जीत हासिल की थी. यह फ्रंट माले के प्रभाव वाला छतरी संगठन था. करीब साढ़े तीन दशक बाद माले ने आरा और काराकाट में अपनी जीत दर्ज की.

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