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अभय ने 17 सालों में मुखिया से सांसद बनने तक का तय किया सफर

वर्ष 2007 में गया के कुजापी पंचायत से मुखिया बने थे.

औरंगाबाद शहर. नवनिर्वाचित सांसद अभय कुमार सिन्हा उर्फ अभय कुशवाहा का राजनीतिक जीवन काफी रोचक रहा है. इन्होंने 17 सालों में मुखिया से सांसद बनने तक का सफर तय किया. यह राजनीति से जुड़े लोगों के लिए प्रेरणादायी भी है कि संघर्ष के पथ पर लगातार अग्रसर रहकर हर मुकाम हासिल किया जा सकता है. गया के चंदौती के मूल निवासी अभय कुशवाहा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत पंचायत की राजनीति से की थी. वर्ष 2007 में गया के कुजापी पंचायत से मुखिया बने थे. इस समय इन्हें राष्ट्रीय जनता दल द्वारा युवा प्रदेश महासचिव बनाया गया था. हालांकि 2010 में राजद को छोड़कर उन्होंने जदयू का दामन थामा था. इसके बाद वर्ष 2012 में गया का युवा जदयू जिलाध्यक्ष बनाया गया. जिलाध्यक्ष बनने के ठीक कुछ दिन बाद 2012 में ही कुजापी पंचायत से एक बार फिर मुखिया का चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. फिर बढ़ती राजनीतिक महत्वकांक्षा के मद्देनजर वर्ष 2015 में महागठबंधन से जदयू कोटे से टिकारी विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को शिकस्त दी और विजयी घोषित करने के साथ ही विधायक बने. इस समय उन्हें जनता दल यूनाइटेड द्वारा एक बड़ी जिम्मेवारी दी गई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उन्हें युवा जदयू का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद वर्ष 2020 में बेला विधानसभा से जदयू कोटे से विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. फिर उन्होंने इस लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जदयू से नाता तोड़ कर राजद के टिकट से औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा. मतदाताओं ने उन्हें साथ दिया और भारी मतों से जीत दिलायी. बढ़त के साथ बढ़ता गया महागठबंधन खेमे में उत्साह राउंड दर राउंड महागठबंधन प्रत्याशी अभय कुशवाहा को जैसे-जैसे जीत मिलती गयी, वैसे-वैसे उनके समर्थकों और खेमे में उत्साह बढ़ता गया. 10 राउंड का रिजल्ट आते-आते महागठबंधन प्रत्याशी के समर्थकों के सब्र का बांध टूट पड़ा और जीत का अंतर बढ़ने के साथ जश्न के मूड में आ गये. युवा समर्थकों ने अभय के पक्ष में नारे लगाए और एक-दूसरे को बधाई दी. नवनिर्वाचित सांसद अभय कुशवाहा को जीत की शुभकामना देने का सिलसिला भी शुरू हो गया. वहीं समर्थक और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आये और जश्न मनाया. जानकारी मिली कि महागठबंधन कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए पूर्व से ही महाभोज की व्यवस्था भी की गयी थी. विभिन्न तरह के व्यंजन की व्यवस्था थी, जिसका लुत्फ कार्यकताओं ने उठाया. मतगणना से काफी पहले से पहुंचने लगा था अधिकारियों का काफिला बेहद सख्त सुरक्षा व्यस्था के बीच समय से मतगणना शुरू हुई. हालांकि, प्रारंभ में कुछ तकनीकी कारणों से मतों की गिनती में परेशानी हुई. मतगणना से काफी पहले से ही पदाधिकारियों का काफिला पहुंचने लगा था. मतगणना स्थल पर चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा जवान नजर रख रहे थे. करीब एक घंटे पहले ही जिला निर्वाचन पदाधिकारी सह डीएम श्रीकांत शास्त्री व प्रेक्षक पहुंच गये थे. जिला निर्वाचन पदाधिकारी ने पहुंच कर व्यवस्था का जायजा लिया और आवश्यक निर्देश दिया. मतगणना के लिए बनाये टेबल की जानकारी ली. कर्मियों के योगदान की स्थिति के बारे में पूछताछ की और समय से मतगणना का कार्य प्रारंभ करने को कहा. इसके बाद एसपी स्वप्ना जी मेश्राम अन्य पुलिस पदाधिकारियों के साथ और सुरक्षा व्यवस्था की जांच की. पुलिस बलों को ड्यूटी के दौरान किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतने का निर्देश दिया टीवी से चिपके रहे लोग, जानते रहे मतगणना का हाल मतगणना को लेकर लोग टीवी से चिपके रहे. जैसे ही सुबह आठ बजे से मतगणना शुरू हुई, वैसे ही लोग टीवी के सामने बैठ गये. इसके बाद पूरे दिन टीवी से चिपके रहे और अपने लोकसभा सीट का हाल जानते रहे. साथ ही पूरे देश में महागठबंधन और एनडीए का हाल क्या रहा और उनके पक्ष में कितने वोट पड़े तथा कितनी सीटों पर जीत हासिल हुई, इन सभी वस्तुस्थिति से अवगत होते रहे. साथ ही परिवार व दोस्तों के साथ चुनावी हाल की चर्चा करते रहे. इसके अलावा संबंधित प्रत्याशियों के हार या जीत कारणों पर भी अपनी राय एक-दूसरे से शेयर की. भाजपा कार्यकर्ताओं ने हार पर किया मंथन औरंगाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार को मिली हार के बाद कार्यकर्ताओं में उदासी है. मतों की गिनती के लिए जैसे-जैसे राउंड बढ़ते गये और मतों का अंतर बढ़ता गया, वैसे-वैसे एनडीए कार्यकर्ताओं के चेहरे उदास होते चले गये. स्थिति यह रही कि मतगणना स्थल पर ही भाजपा कार्यकर्ता बैठ गये और हार की समीक्षा करने लगे. कार्यकर्ताओं ने हार पर मंथन किया और आगे आने वाले राउंड में कुछ बढ़त मिलने का भरोसा एक-दूसरे को दिलाया. हालांकि अंतत: बढ़त नहीं मिली और राजद प्रत्याशी ने जीत दर्ज की.

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