गोपालगंज. राजद सुप्रीमो के गृह जिले में एनडीए की चक्रव्यूह को तोड़ने में इंडी गठबंधन भेद नहीं सके. एनडीए अपने किले को बचाने में सफल रहा. चक्रव्यूह के बीच भी अंतरकलह कम नहीं रही. इसके बाद भी वर्ष 2009 से बनाये गये एनडीए की गढ़ बरकरार रहा. एनडीए के वर्करों में जश्न का माहौल बना हुआ है. गोपालगंज की सीट को लेकर एनडीए काफी आश्वस्त रहा. जबकि इंडी गठबंधन की ओर से भाजपा – जदयू को घेरने के लिए हर कोशिश की गयी. जनता का मूड. मोदी की गारंटी भी एनडीए की जीत के लिए बड़ा फैक्टर बना है. डॉ आलोक कुमार सुमन के क्षेत्र में नहीं रहने का आरोप लगा भी लोगों ने उनको वोट देकर जिले की कमान को दोबारा सौंप दिया. यहां बता दें कि यूपीए-2 की सरकार ने ब्राह्मण बाहुल्य जिला होने के बाद भी गोपालगंज को 2009 में सुरक्षित कर दिया. उसके बाद से यह सीट जदयू व भाजपा के खाते में ही रही है. 2009 में जदयू ने पूर्णमासी राम को उम्मीदवार बनाया. वे जीते. 2014 में भाजपा से जदयू अलग होकर चुनाव लड़ी. तब भाजपा के जनक राम चुनाव जीते. उसके बाद भाजपा व जदयू जब साथ आये, तो 2019 में डॉ आलोक कुमार सुमन सांसद बने. वर्ष 2019 में जदयू व भाजपा एक साथ चुनाव मैदान में थे. तब एनडीए की ओर से जदयू के डॉ आलोक कुमार सुमन को प्रत्याशी बनाया. डॉ आलोक कुमार सुमन को कुल 562424 वोट मिले. जबकि राजद के उम्मीदवार सुरेंद्र राम को 281716 वोट मिले. एनडीए ने 283818 वोटों से चुनाव जीते थे. जबकि नोटा 51660 को मिले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में गोपालगंज की सीट से बीजेपी के जनक राम विजयी रहे. उनको 4 लाख 78 हजार 773 वोट मिले थे. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को 2 लाख 86 हजार 936 वोटों से हराया था. दूसरे नंबर पर रहीं कांग्रेस की डॉ ज्योति भारती को 1 लाख 91 हजार 837 वोट मिले थे. वहीं जदयू से अनिल कुमार को तीसरे पोजिशन पर संतोष करना पड़ा.
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