Election Results 2024 : लोकसभा चुनाव के जिस परिणाम ने सबको चौंकाया है, वो है उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 2019 के चुनाव के मुकाबले 29 सीटों का नुकसान. उत्तर प्रदेश को बीजेपी का गढ़ माना जाता है, राम मंदिर के निर्माण के बाद तो संभवत: पार्टी को यह अनुमान नहीं रहा होगा कि चुनाव में उनकी यह हालात हो जाएगी. समाजवादी पार्टी ने चुनाव में जिस तरह बाजी मारी है और अबतक की अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज की है, वो भी कई मायनों में खास है. कांग्रेस पार्टी भी एक बार उत्तर प्रदेश में पुनर्जीवित हुई है और एक सीट से छह सीट तक पहुंची है, तो आइए समझते हैं उत्तर प्रदेश का यह चुनाव क्यों है इतना खास?
किस पार्टी को कितनी मिली सीट
चुनाव परिणाम आने के बाद उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में समाजवादी पार्टी उभरी है. उत्तर प्रदेश में कुल 80 सीटें हैं, जिनमें से 37 सीटें समाजवादी परिवार को मिली हैं, वहीं बीजेपी को 33 सीटें मिलीं. कांग्रेस पार्टी को छह सीटें मिलीं, जबकि आरएलडी को 2 सीटें मिली हैं. वहीं आजाद समाज पार्टी और अपना दल को एक-एक सीटें मिली हैं. वहीं बात अगर 2019 के चुनाव की करें, तो बीजेपी को 62 सीटें मिलीं थी, कांग्रेस को एक, बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिलीं थीं. सपा को 32 सीटों का लाभ हुआ है.
किस पार्टी को कितने प्रतिशत मिला वोट
बीजेपी को 2024 के चुनाव में 41.37 प्रतिशत वोट मिले हैं, वहीं समाजवादी पार्टी को 33.59 प्रतिशत वोट मिले. कांग्रेस को 9.46 प्रतिशत वोट मिले, जबकि बसपा को 9.39 प्रतिशत वोट मिले. वहीं एक और बात ध्यान देने वाली है कि इस बार के परिणाम में कुल छह सीटों पर जीत का अंतर पांच हजार से भी कम वोट का था. बांसगांव लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के कमलेश पासवान 3150 वोट के अंतर से जीते हैं. वहीं धौरहरा सीट से समाज वादी पार्टी के आनंद भदौरिया चुनाव जीते हैं, उन्होंने मात्र 4449 वोटों के अंतर से चुनाव जीता है. फर्रुखाबाद से बीजेपी के मुकेश राजपूत 2678 वोट से जीते हैं. हमीरपुर से समाजवादी पार्टी के अजेंद्र सिंह लोधी ने 2629 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. फूलपुर सीट से बीजेपी के प्रवीण पटेल ने 4332 वोटों के अंतर से चुनाव जीता, जबकि सलेमपुर से राम शंकर राजभर ने 3573 वोटों से जीत दर्ज की.
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नुकसान की वजह
उत्तर प्रदेश में बीजेपी अगर अपनी कई सीटें हारी हैं, तो कहीं ना कहीं उसके लिए एम वाई समीकरण काफी हद तक जिम्मेदार है. जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में एक बार फिर यादवों और मुसलमानों ने एकजुट होकर समाजवादी पार्टी को वोट किया, जिसकी वजह से बीजपी को हार का सामना करना पड़ा. वहीं एक तर्क यह भी है कि प्रदेश में ठाकुरों की नाराजगी का मुद्दा काफी दिनों से चर्चा में था और इसने भी कहीं ना कहीं बीजेपी को नुकसान पहुंचाया. ठाकुरों का वोट बंटा, तो इसकी वजह से बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. वहीं एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि दलित वोटर्स बीजेपी से अलग हो गए हैं, जिसकी वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. दलित वोटर्स एक बार फिर कांग्रेस के साथ खड़े हैं, जिसकी वजह एक लाख रुपये की गारंटी भी है. वहीं कांग्रेस और सपा ने आरक्षण के मुद्दे को भी जोरदार ढंग से उठाया जिसमें यह बार-बार कहा गया कि बीजेपी आरक्षण खत्म करना चाहती है. यह बात पिछड़ों को भी खटकी और दलितों को भी.