Congress: केंद्र में एनडीए की सरकार बनना तय है. प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी तीसरी बार शपथ लेंगे. लेकिन विपक्ष का नेता कौन होगा यह बड़ा सवाल है. पिछले दो चुनाव में कांग्रेस के पास विपक्ष के नेता के तौर पर भी पर्याप्त सीटें हासिल नहीं हो पायी थी. विपक्ष का नेता पद हासिल करने के लिए सदन की कुल संख्या का 10 फीसदी सदस्य होना जरूरी है. इस बार कांग्रेस ने 99 सीटें हासिल की है और विपक्ष के नेता के तौर पर उसका अधिकार बनता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या कांग्रेस के चुनाव की कमान संभालने वाले राहुल गांधी विपक्ष के नेता बनेंगे. शनिवार को कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों ने प्रस्ताव पारित कर राहुल गांधी को लोकसभा में पार्टी का नेता नियुक्त करने का अनुरोध किया. इसपर राहुल गांधी ने विचार करने के लिए समय मांगा है. लेकिन अब भी यह सवाल बना हुआ है कि क्या विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी सबसे उपयुक्त उम्मीदवार होंगे.
संसद में राहुल की उपस्थित रही है सवालों के घेरे में
राहुल गांधी कई साल से सांसद है. देश में 10 साल यूपीए की भी सरकार रही है और वर्ष 2014 से भाजपा की सरकार है. इस दौरान राहुल गांधी की संसदीय बहस में हिस्सेदारी काफी कम रही है. साथ ही प्रश्नकाल के दौरान उनका रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. सिर्फ कुछ मौकों पर राहुल गांधी ने सदन की बहस में शामिल हुए और मीडिया की सुर्खियों में बने रहे. लेकिन विपक्ष के नेता का पद काफी महत्वपूर्ण होता है और संसदीय कामकाज में उसकी भागीदारी मायने रखती है. राहुल गांधी पर आरोप लगता रहा है कि सत्र के दौरान वे गायब रहते है और उनका ट्रैक रिकॉर्ड भी ऐसा ही रहा है. ऐसे में विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी की ताजपोशी कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है. कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि बैठक में सर्वसम्मति से राहुल गांधी से लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद संभालने का अनुरोध किया और वे संसद के अंदर इस अभियान का नेतृत्व करने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं. लेकिन विपक्ष के नेता की संसदीय कार्यवाही के दौरान मौजूदगी काफी मायने रखती है, ऐसे में राहुल गांधी को एक मजबूत विपक्ष के नेता के तौर पर साबित करने की बड़ी चुनौती होगी.
कांग्रेस को मजबूत विपक्ष के तौर पर खुद को स्थापित करना होगा
भले ही लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को अच्छी कामयाबी हासिल हुई है, लेकिन एक मजबूत विपक्ष के तौर पर कांग्रेस को स्थापित करने के लिए सहयोगी दलों की चुनौती का सामना करना होगा. इंडिया गठबंधन में शामिल कई दल नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत विकल्प के तौर पर उभर सके. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो कई क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक स्थिति कमजोर होगी. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में सपा, बिहार में राजद जैसे दल नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस अधिक मजबूत हो क्योंकि अगर कांग्रेस मजबूत होगी तो अल्पसंख्यक वोटों पर क्षेत्रीय दलों की पकड़ कमजोर होगी. क्षेत्रीय दलों के जनाधार का प्रमुख स्रोत अल्पसंख्यक मतदाताओं पर पकड़ होना है. ऐसे में कई विपक्षी दल चाहते हैं कि विपक्ष का नेता राहुल गांधी की बजाय कोई दूसरा नेता बने. इस साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में चुनाव होने हैं. हरियाणा को छोड़कर दूसरे राज्यों में कांग्रेस जीत हासिल करने के लिए दूसरे दलों पर निर्भर है. ऐसे में क्षेत्रीय दल किसी कीमत पर नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस एक मजबूत विकल्प के तौर पर स्थापित हो सके.