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सशक्त स्थायी समिति की बैठक में नगर आयुक्त को हटाने का प्रस्ताव पास

राजनीति जनप्रतिनिधि करे, तो क्षेत्र में विकास कार्यों में प्रगति होती है. ऐसा माना जाता है, क्योंकि विपक्ष उन्हें मजबूर कर देता है. लेकिन, जब पद पर कार्यरत अधिकारी जनप्रतिनिधियों से राजनीति करने लगे, तो क्षेत्र की दुर्दशा होनी शुरू हो जाती है. ऐसा लोग कहते हैं.

सासाराम नगर. राजनीति जनप्रतिनिधि करे, तो क्षेत्र में विकास कार्यों में प्रगति होती है. ऐसा माना जाता है, क्योंकि विपक्ष उन्हें मजबूर कर देता है. लेकिन, जब पद पर कार्यरत अधिकारी जनप्रतिनिधियों से राजनीति करने लगे, तो क्षेत्र की दुर्दशा होनी शुरू हो जाती है. ऐसा लोग कहते हैं. कुछ ऐसा ही नगर निगम के साथ हो रहा है. नगर आयुक्त यतेंद्र कुमार पाल इस समय पूर्णरूप से विपक्ष की भूमिका में कार्य कर रहे हैं, क्योंकि मेयर के निर्णयों को बोर्ड में आसानी से पास कराने के बहुमत हैं और इस बहुमत के दम पर वह शहर का नक्शा बदल सकती थीं. लेकिन, पिछले करीब 18 महीनों का रिपोर्ट कार्ड देखा जाये, तो इस बहुमत का फायदा शहरियों को नहीं मिला है, क्योंकि इस बहुमत के बदले मेयर को नगर आयुक्त जैसा विपक्ष मिला है, जो उनके निर्णयों को कई-कई महीने तक पेंडिंग रखते हैं. जब दबाव ज्यादा बढ़ता है, तो नगर विकास एवं आवास विभाग को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगते हैं, जो कई-कई महीने तक नहीं आता है. अगर आता भी है, तो फिर उसे गोपनीय रख लिया जाता है. इन्हीं कार्यों से आजिज होकर मेयर काजल कुमारी की अध्यक्षता में शनिवार को सशक्त स्थायी समिति की बैठक बुलायी गयी, जिसमें नगर आयुक्त की सेवा वापसी का प्रस्ताव लाकर चर्चा की गयी. हालांकि, इस बैठक से डिप्टी मेयर सत्यवंती देवी दूर रहीं. इसके अलावा इस बैठक में अधिकारियों की ओर से किसी ने हिस्सा नहीं लिया. इस बैठक को लेकर कार्यालय स्तर से किसी भी सदस्य को नोटिस नहीं भेजा गया था. ऐसे में मेयर ने अपने स्तर से सभी सदस्यों को पत्र भेजकर बैठक में आने की सूचना दी थी.

बिना समिति के अनुमति के कराये 1.66 करोड़ रुपये का कार्य

नगर आयुक्त ने इस शहर में विकास के लिए 1.66 करोड़ से रुपये अधिक खर्च किये हैं. इस पैसे से करीब 36 योजनाओं का कार्य कराया है, जो नगर हित में बेहतर माना जा सकता है. लेकिन, इन योजनाओं के केवल अनुमोदन पर सवाल खड़ा हो रहा है, जो नगर आयुक्त के कार्यशैली को कठघरे में खड़ा कर दिया है. सदस्यों का कहना है कि नगर आयुक्त नगरपालिका अधिनियम का उल्लंघन कर जनता की चुनी हुई सरकार को चुनौती दे रहे हैं, जो नगरपालिका जैसी संस्था के लिए घातक है. समिति के सदस्य राशिद अहमद ने बैठक में चर्चा के दौरान कहा कि नगर निगम का मुख्य कार्य विकास कार्य, महत्वपूर्ण कार्य के साथ-साथ नागरिक सुविधाएं मुहैया कराना मुख्य कार्य है. इन कार्यों को सफलता पूर्वक धरातल पर उतारने की अहम भूमिका नगर आयुक्त की होती है. लेकिन, नगर आयुक्त के रवैये से शहरवासियों को कई समस्याओं से जूझना पड़ रहा है, जिसमें पेयजल, नाली-गली, साफ-सफाई, गलियों में प्रकाश की व्यवस्था महत्वपूर्ण हैं, जिनको दुरुस्त कराने का निर्णय सदस्यों ने लिया था. लेकिन, नगर आयुक्त इन निर्णयों को मूर्त रूप नहीं दे पाये.

पेयजल की समस्या दूर करने में रहे विफल

बैठक में सदस्य अंजु मौर्या ने कहा कि निगम क्षेत्र में पेयजल की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए वाटर वैट जैसी योजना का कार्य कराने का निर्णय लिया गया था. लेकिन, एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस योजना का एक भी कार्य नहीं कराया गया, क्योंकि नगर आयुक्त बुडको के मुख्यमंत्री शहरी स्वच्छ पेयजल योजना के तहत हर घर नल का जल पहुंचाने में जुटे थे, जिसका कार्य अब तक अधूरा है. इसके अलावा बोर्ड की बैठक में पेयजल की व्यवस्था के लिए 10 टैंकर खरीदने का भी निर्णय लिया गया था, जिस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी. वहीं बोर्ड ने निगम के विस्तारित क्षेत्र में बने नल-जल योजना को दुरुस्त करने का निर्णय लिया, तो नगर आयुक्त ने आचार संहिता लगने से ठीक एक दिन पहले जैसे-तैसे कर टेंडर निकाल दिया. इस पर सदस्यों को विचार करने का समय भी नहीं दिया गया. बैठक में रौशन आरा ने नगर आयुक्त पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह नगर निगम जैसी संस्था में कार्य करने के लिए सर्वथा अयोग्य हैं. इनका व्यवहार जनता व जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध अत्यंत घृणित है. हालांकि नगर निगम की योजनाओं को अटकाने और भटकाने में महारत हासिल है.

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