आकांक्षा वर्मा, रांची : आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की जब बात आती है तब सबसे पहले लोगों के दिमाग में बिरसा मुंडा का नाम आता है. ये उनके संघर्ष का ही परिणाम था कि आदिवासियों के लिए विशेष कानून बना. ये उनके संघर्ष का ही परिणाम था कि उनकी मौत के बाद आजादी की ज्वाला और भड़क उठी. आज उनके याद में 15 नवंबर को हर साल जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है. प्रधानमंत्री मोदी ने खुद इसकी शुरुआत की थी. लेकिन बहुतों को ये नहीं पता होगा कि उन्होंने “उलगुलान” आंदोलन की शुरुआत क्यों और कैसे की थी. आज हम आपको इस विद्रोह के बारे में विस्तार से बताने वाले हैं कि इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई.
क्यों हुआ था “उलगुलान” आंदोलन
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1889-1900 में उलगुलान आंदोलन हुआ था. जिसका मतलब होता है महाविद्रोह. इसकी शुरुआत सिंहभूम के संकरा गांव से हुई थी. यह विद्रोह सामंती व्यवस्था, जमींदारी प्रथा और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ था. बिरसा ने मुंडा आदिवासियों को जल, जंगल की रक्षा के लिए लोगों को प्रेरित किया. इसके लिए उन्होंने उलगुलान नाम से एक आंदोलन की शुरुआत की. यह अंग्रेजी शासन और मिशनकारियों के खिलाफ था. जिसका मुख्य केंद्र खूंटी, तमाड़, सरवाडा और बंदगांव में थे.
जब जमींदारों और पुलिस का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था तब भगवान बिरसा ने इस आंदोलन की शुरुआत करने की सोची. इसके पीछे उनका मकसद आदर्श भूमि व्यवस्था को लागू करना था. यह तभी संभव था जब अंग्रेज अफसर और मिशनरी के लोग पूरी तरह हट जाएं. इसके लिए सबसे पहले उन्होंने लगान माफी के लिए आंदोलन की शुरुआत. जिससे जमींदारों के घर से लेकर भूमि का कार्य रुक गया.
इस आंदोलन का असर ये हुआ कि अंग्रेजों ने आदिवासियों को उनकी ही जमीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. जमींदार उनकी जमीन हथियाने लगे थे. जिसे पाने के लिए मुंडा समुदाय के लोगो ने आंदोलन की शुरुआत की जिसे “उलगुलान” का नाम दिया गया. अंत में अंग्रेजों ने चक्रव्यू रच कर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में रहने के दौरान ही उनकी मौत हो गयी.