राजपुर. प्रखंड के सभी 19 पंचायतों में पिछले कई महीनों से योजनाओं का कामकाज पूरी तरह से बंद है. परिवार की आर्थिक तंगहाली को दूर करने के लिए यह मजदूर गांव छोड़कर शहर की ओर पलायन कर गए हैं. सरकार की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा योजना से मजदूरों को रोजगार देकर पलायन रोकने के लिए बनाया गया था. यह योजना भी फिलहाल दम तोड़ती नजर आ रही है. पंचायती राज व्यवस्था के गठन के बाद नई पंचायत सरकार के बनने के लगभग दो साल से अधिक हो जाने के बाद भी विकास का काम बहुत कम दिख रहा है. इस बार गांव के विकास के लिए कई योजनाओं का चयन किया गया था. जिसमें पक्की नाली गली, नल जल योजना, स्ट्रीट लाइट, शव दाह, ग्रामीण पार्क सहित कई योजनाओं का चयन किया गया. इन योजनाओं के चयन के बाद भी पंचायतों में विकास की गति धीमी दिख रही है. किसी भी पंचायत में विकास की रूपरेखा तैयार नहीं की गयी. मानसून आते ही इन सभी योजनाओं पर विराम लग जायेगा. ऐसे में इस बार किसी भी योजनाओं का काम नहीं हो पाया है. विभाग के तरफ से मिली जानकारी के अनुसार पंचायतों में नई सरकार बनने के बाद मुखिया एवं वार्ड सदस्य के बीच सही तालमेल नहीं होने से योजनाओं को गति नहीं मिल रही है. पंचायतीराज व्यवस्था में वार्ड सदस्य को भी काम कराने का अधिकार मिला है. ऐसे में कुछ मुखिया अपने बलबूते ही काम कराने की फिराक में है. उन पंचायतों में वार्ड सदस्य विरोध जता रहे हैं. साथ ही पंचायतों में चलने वाली योजनाओं में पंचायत सचिव, पीआरएस, आवास सहायक, विकास मित्र के अलावा कई अन्य पंचायत कर्मी है. जिनका सहयोग भी नहीं मिल रहा है. वार्ड सदस्यों का कहना है कि पिछली सरकार में ही कुछ जगहों पर काम कराने के बाद उसकी राशि का भुगतान नहीं किया गया है. फिलहाल मनरेगा योजना से कई जगहों पर तालाबों की खुदाई, जीर्णोद्धार ,बाहा की सफाई का काम हुआ है. अगर यही हाल रहा तो अगले तीन सालों में विकास के मामले में पंचायतीराज व्यवस्था दलाली के चक्कर में फिसड्डी साबित हो सकता है. मनरेगा योजना में भी इस बार मजदूरों को सौ दिन का रोजगार नहीं मिला. ऐसे में अधिकतर मजदूर रोजी रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन कर गए हैं. सरकार ने जिस मकसद से मनरेगा योजना को लागू किया था. वह फिलहाल धरातल पर नहीं दिख रहा है. सरकार के फरमान के बाद अधिकारी भले ही जांच कर रहे हैं. लेकिन इस जांच में कोई ठोस परिणाम नहीं मिल रहा है.
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