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न ट्यूशन न कोचिंग, जुड़वा भाइयों ने क्रैक किया जेइइ एडवांस

यह कहानी बोड़ेया स्थित एक मुहल्ला में रहनेवाले मनोज कुमार अग्रवाल और ममता अग्रवाल के दो बेटों की है. दोनों को इसी वर्ष जेइइ एडवांस में सफलता मिली है.

बोड़ेया के स्वयं और अमय अग्रवाल की सफलता की प्रेरणादायी कहानीरांची (मनोज सिंह). करीब 100 वर्गफीट की एक किराना दुकान. 500 वर्गफीट का घर. घर के अंदर छोटे-छोटे कमरे. जहां एक बिस्तर और एक-दो कुर्सी के अलावा कुछ नहीं रखा जा सकता है. लेकिन, इसी घर से जुड़वा भाइयों ने इंजीनियरिंग की सबसे कठिन परीक्षा जेइइ एडवांस में एक साथ सफलता हासिल की है. घर की स्थिति से बयां करती है कि मेहनत और प्रतिभा हो, तो संसाधन सफलता की राह में रोड़ा नहीं बनता है. यह कहानी बोड़ेया स्थित एक मुहल्ला में रहनेवाले मनोज कुमार अग्रवाल और ममता अग्रवाल के दो बेटों की है. दोनों को इसी वर्ष जेइइ एडवांस में सफलता मिली है. एक बेटे स्वयं अग्रवाल को कैटेगरी रैंक 2507 है, तो दूसरे बेटे अमय अग्रवाल को 2737 रैंक मिला है. दोनों भाई अब देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेंगे. अपने सपने को उड़ान देंगे. उनका मानना है कि यदि मन लगाकर कोई काम किया जाये, तो सफलता जरूरी मिलेगी. इसके लिए लगातार मेहनत जरूरी है.

नहीं है सोशल मीडिया अकाउंट

दोनों भाई बताते हैं कि 2016 में फेसबुक अकाउंट बना था, लेकिन कुछ माह बाद ही उसे छोड़ दिया. ना ही व्हाट्सऐप पर एक्टिव हैं, न ही इंस्टाग्राम पर. मोबाइल का इस्तेमाल सिर्फ कुछ ऑनलाइन जानकारी के लिए करते हैं. दोनों भाइयों ने बोड़ेया रोड स्थित विद्या विकास पब्लिक स्कूल से 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास की है. दोनों परीक्षाओं में 95 फीसदी से अधिक अंक मिले थे. पिछले वर्ष भी जेइइ एडवांस में एक भाई को सफलता मिली थी, लेकिन रैंक अच्छा नहीं होने के कारण एडमिशन नहीं लिया.

14 घंटे पढ़ाई और तीन-चार घंटा दुकान में

दोनों भाइयों ने बताया कि पिछले दो वर्षों से प्रतिदिन नियमित 14 घंटे पढ़ाई करते थे. सुबह में तीन-चार घंटा पिता के काम में हाथ बंटाते हैं. पिता जी की एक छोटी सी किराना की दुकान है. दोनों भाइयों ने बताया कि पढ़ाई के लिए पिताजी ने कभी पैसों की कमी नहीं होने दी. सफलता में घर वालों के साथ-साथ स्कूल का भी पूरा सहयोग रहा. इनकी दादी कहती है कि दोनों भाई रात के दो-तीन बजे तक पढ़ाई करते थे. मुझे रात में नींद नहीं आती है. इस कारण इनके साथ देर रात तक बैठी रहती थी. उनको कुछ जरूरत होती थी, तो पूरा करती थी.

सिविल सेवा या आइआइएम है लक्ष्य

दोनों भाई बताते हैं कि किसी भी आइआइटी से स्नातक करने के बाद सिविल सेवा या आइआइएम में जाने की अच्छी है. देखते हैं पहले चार साल में क्या होता है. यह तो सिर्फ एक पड़ाव है. वहीं जो बच्चे आइआइटी की तैयारी करना चाहते हैं, उनको समयबद्ध तरीके से प्रयास करना चाहिए. इस परीक्षा की तैयारी को लेकर गंभीर होना होगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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