लखनऊ: यूपी (UP News) सरकार ने छोटी गंडक नदी को पुनर्जीवित कर दिया है. सिंचाई विभाग ने गुर्रा नदी की ढाल को कम करके गर्मी में राप्ती नदी में लगातार बहाव बनाया है. इससे गोरखपुर के 27, देवरिया के 6 गांव की लगभग 60 हजार की आबादी, पशु, पक्षियों को लाभ पहुंचा है. यूपी में मृतप्राय हो चुकी नदियों को पुनर्जीवित करने के क्रम में गाजियाबाद की हिंडन, मुरादाबाद की रामगंगा और वाराणसी की असि नदी को भी पुनर्जीवित करने का काम तेज हो गया है. लखनऊ में कुकरैल नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार अवैध निर्माणों को ध्वस्त कर रही है.
खत्म हो चुका था छोटी गंडक का अस्तित्व
प्रदेश सरकार (UP News) में जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप सिंचाई विभाग ने छोटी गंडक नदी को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास किए हैं. नदी के सेक्शन की पुनर्स्थापना का कार्य शुरू किया गया है. नदी को मूल स्वरूप में लाने की प्रक्रिया के दौरान ही भूजल स्तर नदी में आने लगा और सिंचाई विभाग की पहल कारगर व सफल साबित हुई है. उन्होंने बताया कि छोटी गंडक एक घुमावदार भूजल आधारित नदी है. जो नेपाल के परसौनी जनपद नवलपरासी से उद्गमित होकर भारत में लक्ष्मीपुर खुर्द ग्राम सभा महराजगंज यूपी में प्रवेश करती है.
250 किलोमीटर लंबी है गंडक नदी
गंडक नदी (UP News) महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया में लगभग 250 किमी की लंबाई में बहती हुई बिहार के सीवान जिले के गोठानी के पास घाघरा नदी में मिल जाती है. छोटी गंडक के भारत में प्रवेश करने के बाद शुरू के लगभग 10 किमी लंबाई में अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका था. जिसके कारण नदी सेक्सन में पूरी तरह से सिल्टेड व संकुचित होकर कृषि कार्य किया जाने लगा. छोटी गंडक नदी को पुनर्जीवित (Revived River Information) करने के साथ ही भू-गर्भ जल को भी बढ़ाने में मदद मिली है.
गुर्रा की बाढ़ से 35 हजार की आबादी को मिलेगी निजात
इसके अलावा गुर्रा नदी (Revived River) से बाढ़ के समय होने वाली क्षति को कम करके गोरखपुर के 20 व देवरिया के 6 ग्रामों की 35 हजार आबादी को सुरक्षित किया गया है. गुर्रा नदी का उद्गम स्थल जनपद गोरखपुर में प्रवाहित राप्ती नदी से ग्राम-रूदाइन मझगंवा, तहसील बांसगांव व ग्राम सेमरौना, तहसील-चौरी चौरा है. उद्गम स्थल से गुर्रा नदी का ढाल राप्ती नदी के ढाल से अधिक होने के कारण बाढ़ एवं ग्रीष्म ऋतु में पानी का बहाव समानुपातिक नहीं होने से बाढ़ अवधि में गुर्रा नदी से भारी तबाही की संभावना बनी रहती थी. वहीं दूसरी ओर गर्मी के मौसम में राप्ती नदी के सूख जाने के कारण आबादी, पशु पक्षियों, जीव-जंतुओं, कृषि कार्य के लिए पीने का पानी नहीं मिलने से जन-जीवन प्रभावित होता था.