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kota factory 3 की शूटिंग हुई है चिलचिलाती गर्मी में ठंड के कपड़े पहनकर..

कोटा फैक्ट्री सीरीज ही नहीं बल्कि इसकी मेकिंग भी काफी दिलचस्प है. इससे जुड़े कास्ट एंड क्रू ने शेयर की कई खास बातें..

kota factory का तीसरा सीजन ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर आगामी 20 जून को दस्तक देने जा रहा है.टीवीएफ की यह सीरीज कोटा में पढ़ रहे छात्रों की की जिंदगी और उनसे जुड़ी कई समस्याओं की बात करता है. नए सीजन की मेकिंग से जुड़े कई रोचक पहलुओं पर यह आलेख 


सीरीज का शॉट लेने का तरीका है बेहद ख़ास

कोटा फैक्ट्री के सीजन एक से निर्देशक सौरभ खन्ना और दूसरे सीजन से राघव सुम्बु का नाम जुड़ा हुआ था. तीसरे सीजन में निर्देशन की जिम्मेदारी  प्रतीश मेहता ने संभाली है.इस सीरीज के निर्देशन से जुड़ी चुनौतियों के बारे में वह कहते हैं कि छह साल से मैं टीवीएफ का हिस्सा रहा हूँ , तो कोटा फैक्ट्री को बनते मैंने देखा है लेकिन वो एक दर्शक के तौर पर था,जब आप निर्देशक के तौर पर जुड़ते हैं तो आपको समझना पड़ता है कि शो को बहुत अच्छा बनने के लिए क्या माइंडसेट और एनलॉजी लगी थी. क्या क्या तैयारियां हुई थी.फिर वो तैयारी  आप अपने तरीके से करते हो. इस सीरीज का  शॉट लेने का तरीका बहुत आइकोनिक है. हर शॉट लेने के पीछे एक एनलॉजी होती  है.सीन में फोकस शिफ्ट भी कोटा फैक्ट्री में अलग तरह से वर्क करता है. उस पहलू  पर मुझे सबसे ज़्यादा काम करना पड़ा.इसके साथ कोटा की एक लैंग्वेज है राइटर ने  वो फॉलो करने की कोशिश की और मुझे भी इस पर बहुत ध्यान देना पड़ा .इन सब में राघव ने बहुत मदद की क्योंकि कोटा फैक्ट्री उसकी ही सोच है। पहले सीजन से अब तक राघव इस शो का  क्रिएटर है.


ब्लैक एंड वाइट में शूट करना नहीं है आसान

 कोटा फैक्ट्री की कई खासियत में इसका ब्लैक एंड वाइट होना एक अहम् यूएसपी है. जमीं  से जुडी कहानी को ब्लैक एंड वाइट में पेश करना. इस शो का सबसे बड़ा हुक पॉइंट है, लेकिन निर्देशक प्रतीश इसे चुनौतीपूर्ण करार देते हुए बताते हैं कि  शूटिंग के वक़्त कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना पड़ता है. जैसा कि आपको पता है कि कलर टोन सिर्फ ब्लैक एंड वाइट में ही दिखेंगे. बहुत सारे रंगों से  इस वजह से आपको शूटिंग के वक़्त दूरी बनानी पड़ती है . सबसे ज़्यादा दिक्कत रात और दिन को दिखाने में होती है , ठीक से ना किया गया तो वह एक जैसे ही दिखेंगे. जिस वजह से रात और दिन के लिए अलग – अलग तरीके से लाइटिंग करनी पड़ती है. दो तीन एलिमेंट्स और डालने पड़ते हैं ताकि आपको फर्क मालूम पड़े . 

मयूर मोरे ने रात भर जागकर किया मोनोलॉग वाला सीन किया याद 

 शो में वैभव गुप्ता की भूमिका को निभा रहे मयूर मोरे बताते हैं कि सीजन तीन में वह शूटिंग के येन मौके पर ही जुड़ पाए हैं. वह बताते हैं कि जब  कोटा 3 की स्क्रिप्ट रीडिंग हो रही थी.  मैं वहां मौजूद नहीं था,क्योंकि मैं उस वक़्त कुछ और शूट कर रहा था. मैं सीधे शूटिंग के वक़्त पहुंचा और प्रतीश से मैंने बोला कि भाई मैंने एक भी पन्ना नहीं पढ़ा है. प्रतीश ने बोला सेट पर बस पढ़कर आ जाना तब तक पढ़ लेगा ना. इस सीजन मेरे पास मोनोलॉग जल्दी आया था,लेकिन मेरे पास उसको तैयार करने के लिए समय नहीं था.मुझे  बताया गया था कि पहले शेड्यूल के खत्म होने के एक दिन पहले मोनोलॉग का सीन शूट किया जाएगा. मैंने सोचा चलो महीना भर है ,लेकिन अचानक से एक दिन प्रतीश ने बोला कि हम आखिर में करेंगे तो हम थके हुए होंगे और हम थके हुए मूड में मोनोलॉग करें, ये मैं नहीं चाहता हूं. अगर तुम रेडी हो तो हम कल कर सकते हैं. ये भी बात हुई कि तू जहाँ रुकेगा वहां से सीन कट कर आगे जोड़ लिया जाएगा ,लेकिन मैंने तय कर था कि मैं एक टेक  में ही यह मोनोलॉग दूंगा. मैंने पूरा दिन और रात उस मोनोलॉग का रिहर्सल किया.कुछ शब्द से जिन पर मैं बहुत अटकता था तो मैंने बार – बार प्रैक्टिस की.मोनोलॉग के सीन की शूटिंग के लिए  पूरा दिन रखा था क्योंकि पहले दिन मैंने एक सीन को करने में थोड़ा ज़्यादा रिटेक ले लिए  थे क्योंकि सीधे शूटिंग से जुड़ा था  , लेकिन मोनोलॉग वाला मैंने आसानी से एक टेक  में कर दिया. मुझसे ज़्यादा टेक्निकल टीम खुश थी क्योंकि जल्दी पैकअप हो गया था. उन्हें लगा था कि पूरा दिन  जाएगा.   


गर्मी में ठंडी के कपडे पहनकर हुई है शूटिंग 

सीरीज में उदय की भूमिका में नजर आ रहे आलम खान बताते हैं कि इस सीरीज की शूटिंग का सबसे दिलचस्प पहलू  ये है कि सीजन ३ की शूटिंग हमने गर्मी में की लेकिन पर्दे पर हमें ठण्ड दिखाना था,तो स्वेटर और जैकेट पहनकर हम शूट करते थे, लेकिन शॉट ओके होते ही हमें एयर कंडीशनर की तरफ भागना पड़ता था. वैसे सीजन २ की शूटिंग हमने ठण्ड में  थी, उस वक़्त  परदे पर गर्मी दिखाना था. सेकेंड सीजन में जो बाइक में मेरा सीन है , वो मैंने कपकपाती ठण्ड में किया था. उस सीन में मैंने सिर्फ बनियान पहनी है.ट्रिपल सीट बाइक चला रहा हूँ. स्पीड का ध्यान रखना है.ठंड को जाहिर नहीं करना है. कैमरे  का भी और होर्डिंग को दिखाते हुए चार पेज का डायलॉग भी बोलना था.वो मेरा सबसे चुनौतीपूर्ण दृश्य में से एक था ,लेकिन आखिरकार अच्छे से हो गया .

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