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रिम्स में मशीनों का टोटा, निजी लैब से महंगी जांच कराने को मजबूर हैं मरीज

रिम्स में एमआरआइ, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड सहित कई जरूरी मशीनों का है अभाव. सिर्फ पोर्टेबल एक्सरे मशीन से जांच की जा रही है.

रांची. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में जरूरी जांच मशीनों का टोटा है. इससे मरीजों की परेशानी बढ़ गयी है. मरीज दो से तीन गुना अधिक खर्च कर निजी लैब में जांच कराने को मजबूर हैं. मरीजों का कहना है कि यह कैसी व्यवस्था है कि इलाज रिम्स में कराना पड़ता है और जांच निजी लैब में करानी पड़ती है. हालांकि, रिम्स प्रबंधन ने आश्वासन दिया था कि आचार संहिता खत्म होने बाद मशीनों की खरीदारी कर ली जायेगी.

सबसे ज्यादा परेशानी एमआरआइ जांच कराने वाले मरीजों को हो रही है. रिम्स में एमआरआइ जांच मशीन नहीं है, जबकि प्रतिदिन न्यूरो सर्जरी, हड्डी और मेडिसिन विभाग से 15 से 20 मरीजों को एमआरआइ जांच का परामर्श दिया जाता है. इसके अलावा एक्सरे मशीन भी खराब हो गयी है. सिर्फ पोर्टेबल एक्सरे मशीन से जांच की जा रही है. ऐसे में मरीजों को रिम्स में घंटों इंतजार करना पड़ता है या फिर निजी जांच घर का सहारा लेना पड़ता है. निजी जांच घरों में एमआरआइ के लिए 5,000 से 6,000 रुपये लिए जाते हैं, जबकि रिम्स में यह जांच 2,500 से 3,000 रुपये में हो जाती थी. वहीं, जो एक्स-रे रिम्स में 70 से 150 रुपये में होते हैं, उसके लिए निजी जांच घरों में 1,200 से 1,500 रुपये देने पड़ते हैं. वहीं, रिम्स में छह अल्ट्रासाउंड मशीन की जरूरत है, जबकि तीन ही है.

बोले निदेशक

करीब पांच करोड़ रुपये की मशीन की खरीद प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है. मशीनों को भेजने का आदेश कंपनियों को दिया जा रहा है. करीब 30 एनेस्थीसिया की वर्क स्टेशन मशीन मंगायी जा रही है. इससे ऑपरेशन की रफ्तार तेज होगी. एमआरआइ जांच मशीन के लिए कंपनियां रुचि नहीं दिखा रही हैं. इसके लिए जीबी की बैठक में ही कोई समाधान निकाला जायेगा.

-डॉ राजकुमार, रिम्स निदेशकB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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