राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो लालू यादव ने वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब (विश्व असमानता लैब) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर गहरी चिंता व्यक्त की है. लालू यादव ने कहा कि ये आंकड़े बेहद डरावने और चौंकाने वाले हैं. यह शोध देश में बढ़ती सामाजिक-आर्थिक असमानता को उजागर करता है. इन आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के साथ अन्याय करने का आरोप लगाया है.
देश की 88.4% संपत्ति सवर्णों के पास
लालू यादव ने कहा कि वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल संपत्ति का 88.4% हिस्सा सवर्णों के पास है, जबकि ओबीसी के पास सिर्फ़ 9% और अनुसूचित जाति-जनजाति के पास सिर्फ़ 2.6% हिस्सा है. 2013 में देश की संपत्ति में ओबीसी की हिस्सेदारी 17.3% थी, जो 2022 में घटकर 9% रह गई है. छोटे और मध्यम आकार के व्यवसाय लगातार कम होते जा रहे हैं और खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है. सरकार की गलत नीतियों के कारण किसान बर्बाद हो रहे हैं.
लालू यादव ने बताया बीजेपी क्यों नहीं कराना चाहती जातिगत जनगणना
लालू प्रसाद ने आगे कहा कि देश में ओबीसी, एससी और एसटी की आबादी लगभग 85% है, यही कारण है कि बीजेपी जातिगत जनगणना नहीं कराना चाहती. इससे हर क्षेत्र में संपन्न लोगों का प्रभुत्व उजागर हो जाएगा. रिसर्च बताती है कि देश की कुल संपत्ति का बड़ा हिस्सा लगभग 89% , आबादी में सबसे कम वाले वर्गों के पास है, जबकि देश की सबसे अधिक आबादी वाले 85% ओबीसी, एससी और एसटी के पास बाकी बचा हिस्सा है. इससे पता चलता है कि हमारे देश में सामाजिक-आर्थिक असमानता की जड़ें कितनी गहरी हैं.
ये आंकड़े और भी बद्तर होते जाएंगे : लालू यादव
लालू यादव ने कहा कि मोदी सरकार लगातार 10 वर्षों से ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के छोटे व्यवसायों को टारगेट कर खत्म कर रही है. जब तक ओबीसी, एससी और एसटी और उच्च जाति के गरीब लोग बीजेपी की भक्ति, धर्मांधता और नफ़रत बोने वाले दंगाइयों को अपना नेता मानेंगे, तो ये आंकड़े और भी बद्तर होते जाएंगे.
लालू यादव ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले 10 वर्षों में इन्होंने ओबीसी, एससी और एसटी को धर्म और छद्म राष्ट्र के बनावटी मुद्दों व बहसों में उलझा कर अपनी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक शक्ति को मजबूत और सुनिश्चित किया है. ये लोग धूर्तता के साथ ओबीसी, एससी और एसटी को सांकेतिक और दिखावटी प्रतिनिधित्व देते है ताकि देश की ये बहुसंख्यक आबादी अपने अधिकारों की वाजिब मांग ना कर सके.
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