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गंगा दशहरा पर लाखों लोगों ने लगायी आस्था की डुबकी, की पूजा-अर्चना

गंगा दशहरा पर स्नान-पूजा के लिए नदी घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. महत्वपूर्ण बात यह रही कि सौ सालों के बाद इस बार चतुर्ग्रही योग में गंगा दशहरा का पर्व मनाया गया. इस अवसर पर रविवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा-गंडक के संगम में डुबकी लगायी. भीषण गर्मी के बावजूद लोगों की गंगा मां के प्रति यह आस्था ही थी कि धूप और गर्मी की परवाह किये बगैर लाखों महिलाएं व पुरुष जिले के विभिन्न नदी घाटों पर उमड़ पड़े.

हाजीपुर. गंगा दशहरा पर स्नान-पूजा के लिए नदी घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. महत्वपूर्ण बात यह रही कि सौ सालों के बाद इस बार चतुर्ग्रही योग में गंगा दशहरा का पर्व मनाया गया. इस अवसर पर रविवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा-गंडक के संगम में डुबकी लगायी. भीषण गर्मी के बावजूद लोगों की गंगा मां के प्रति यह आस्था ही थी कि धूप और गर्मी की परवाह किये बगैर लाखों महिलाएं व पुरुष जिले के विभिन्न नदी घाटों पर उमड़ पड़े. नगर के प्रसिद्ध कौनहारा घाट पर अहले सुबह से लेकर दोपहर बाद तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. वहीं सीढ़ी घाट, पुल घाट, कदंब घाट समेत अन्य स्नान घाटों पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी. स्नान-ध्यान के बाद पूजा-अर्चना कर लोगों ने सुख-शांति और लोक कल्याण की कामना की. इस दौरान घाटों पर मंगल गीत गूंजते रहे. गंगा दशहरा हिंदू धर्म में मोक्षदायिनी मानी जाने वाली मां गंगा को समर्पित पर्व है, जो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. सनातन संस्कृति में सदियों से गंगा दशहरा पर आस्था की डुबकी लगाने की परंपरा चली आ रही है. मान्यता है कि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं. भागीरथ की तपस्या से भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था और उनकी जटाओं से बहती हुई वह धरती पर आयी थीं. इसलिए इस पर्व को मां गंगा के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार मां गंगा तीनों लोकों में बहती हैं. इसलिए उन्हें त्रिपथगामिनी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं में गंगा दशहरा पर स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य के सभी तरह के पाप, रोग, दोष और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है तथा पुण्य की प्राप्ति होती है. यह भी मान्यता है कि गंगा दशहरा को गंगा में स्नान करने से व्यक्ति को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है. हर साल इस पावन तिथि पर गंगा स्नान, पूजा और पितरों को तर्पण देने के बाद दान करने की परंपरा है. सनातन धर्म में गंगा का महत्व यह है कि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान बिना गंगाजल के संपन्न नहीं होता. जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कारों में गंगाजल का प्रयोग आवश्यक माना जाता है. इस बार गंगा दशहरा की खास बात यह रही कि इस दिन कई शुभ योग बने. इस बार गंगा दशहरा की खास बात यह रही कि इस दिन चार शुभ संयोग बने, जिससे गंगा स्नान का फल दोगुना हो गया. पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी यानी गंगा दशहरा की तिथि 16 जून, रविवार को प्रातः 2:32 बजे से शुरू होकर 17 जून, सोमवार को 4:42 बजे सुबह तक रहने के कारण उदया तिथि में रविवार को गंगा दशहरा का पर्व मनाया गया. पंडित हरिशंकर तिवारी ने बताया कि ज्योतिष गणना के अनुसार करीब सौ सालों के बाद इस बार गंगा दशहरा पर चार शुभ संयोग, अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग तथा हस्त नक्षत्र का निर्माण हुआ. हस्त नक्षत्र के अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ अमृत योग तथा सूर्योदय के साथ ही रवि योग शुरू होने के कारण इस पर्व का महत्व और बढ़ गया. साथ ही बेहद शुभ माना जाने वाला हस्त नक्षत्र भी रहा. मान्यता है कि हस्त नक्षत्र में ही गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं. इसलिए हस्त नक्षत्र में पूजा-पाठ और मांगलिक कार्य पूर्ण रूप से सफल माने जाते हैं. इस दौरान लोगों ने श्रद्धा के साथ आस्था की डुबकी लगायी. श्रद्धालुओं ने सूर्य देवता को अर्घ देने के बाद मां गंगे का ध्यान कर अर्घ दिया.

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